नवजात बच्चों को अंधापन देने वाले एंटीबायोटिक प्रतिरोधी बैक्टीरियल संक्रमण (एआरबीआई) को एक प्राकृतिक उपचार से ठीक किया जा सकता है। इंग्लैंड की किंग्सटन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने कहा है कि इस नेचुरल ट्रीटमेंट के तहत एक सामान्य आई ड्रॉप से एंटीबायोटिक-रेसिस्टेंट बैक्टीरियल इन्फेक्शन को प्रभावी तरीके से दूरी किया जा सकता है। वैज्ञानिकों की मानें तो यह ट्रीटमेंट इतना प्रभावशाली है कि इससे किसी प्रकार की जलन या इरिटेशन तक नहीं होती।

नवजात बच्चों को अंधापन देने वाले बैक्टीरिया का नाम नाइसीरिया गोनोरियाई है। बताया जाता है कि इस जीवाणु से गोनोरिया नामक सेक्शुअली-ट्रांसमिटेड इन्फेक्शन हो सकता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि जिन एंटीबायोटिक्स की मदद से इसे खत्म किया जाता रहा है, वे अब इस संक्रमण को कम नहीं कर पा रहे हैं। उन्होंने कहा कि ऐसे मामले बढ़ते जा रहे हैं, जिनमें बैक्टीरिया एंटीबायोटिक्स देने पर प्रतिरोधी रेस्पॉन्स देता है। यह संक्रमण गर्भवती महिला से उसके बच्चे को हस्तांतरित हो सकता है, जिससे बच्चे की आंख को नुकसान पहुंच सकता है और इलाज न मिलने पर बच्चा स्थायी रूप से अंधा भी हो सकता है।

ऐसे में किंग्सटन यूनिवर्सिटी की एक रिसर्च टीम मोनोकैप्रिन नाम एक एंटीमाइक्रोबायल एजेंट (पदार्थ) पर काम कर रही है, जो गोनोरिया संक्रमण का एक एंटीबायोटिक ट्रीटमेंट हो सकता है। इन विशेषज्ञों को यकीन है कि इस एजेंट में बढ़ते एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस को टार्गेट करने की क्षमता के है और इसे दुनिया में कहीं भी आसानी से सस्ते दाम पर उपलब्ध कराया जा सकता है। ऐसी जगहों पर भी जहां मेडिकेशन सुविधा की उपलब्धता मुश्किल है।

किंग्सटन यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. लॉरी स्नाइडर बताती हैं, 'एंटीमाइक्रोबायल रेजिस्टेंस के चलते बैक्टीरिया के अलग-अलग स्ट्रेन (या प्रकारों) के खिलाफ एंटीबायोटिक्स कम प्रभावी होते जाते हैं। ऐसे में भावी ग्लोबल स्वास्थ्य सेवा के लिहाज से वैकल्पिक उपचारों की अहमियत बढ़ती जा रही है। हमारा शोध ऐसे किफायती और आसानी से उपलब्ध होने वाले ट्रीटमेंट पर केंद्रित है, जिसके खिलाफ बैक्टीरिया प्रतिरोधी क्षमता हासिन न कर पाए।'

शोधकर्ताओं को यह क्षमता मोनोकैप्रिन में दिखाई दी है। यह एक मोडिफाई फैटी एसिड (मोनोग्लिसराइड) है। वैज्ञानिकों ने बाकायदा डेमोन्स्ट्रेशन कर नाइसीरिया गोनोरियाई बैक्टीरिया के खिलाफ इसके प्रभाव को साबित किया है। इसके बाद मोनोकैप्रिन पर हुए रिसर्च और उसके परिणामों को जानी-मानी मेडिकल पत्रिका साइंटिफिक रिपोर्ट्स ने प्रकाशित किया है। इसमें अध्ययन में शामिल रिसर्च टीम ने बताया है कि कैसे एक आई ड्रॉप फॉर्मुलेशन की मदद से बिना किसी इरिटेशन के मोनोकैप्रिन को गोनोरिया के खिलाफ इस्तेमाल किया जा सकता है।

मोडिफाई फैटी एसिड के रूप में मोनोकैप्रिन पर बात करते हुए प्रोफेसर स्नाइडर बताते हैं, 'हमें इसमें एक ताकतवार एजेंट (या पदार्थ) मिला है जो आंखों के संक्रमणों को क्लियर करने के साथ एक प्रिवेंटिव ट्रीटमेंट के रूप में काम कर सकता है। इस बैक्टीरिया के खिलाफ प्रस्तावित अन्य वैकल्पिक उपचारों से इरिटेशन होने की शिकायतें मिली हैं और उन्हें केवल रोकथाम के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।'

प्रोफेसर ने आगे बताया, 'हमने एक स्थूल आई ड्रॉप तैयार किया है जो उपचार को आंख की सतह तक ही रखता है और लंबे समय तक प्रभावी बना रह सकता है, वह भी ऐसे कॉम्पोनेंट्स की मदद से जो आसानी से उपलब्ध हैं। मोनोकैप्रिन आधारित आई ड्रॉप को विशेष परिस्थितियों के लिए स्टोर करने की जरूरत नहीं है। यह लंबे समय तक टिकी रहती है और आंख को किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचाती जो काफी महत्वपूर्ण है।' रिपोर्ट के मुताबिक, मोनोकैप्रिन संबंधी फॉर्मुलेशन को अभी तक सांड की आंख पर आजमाया गया है। इस प्रयोग के परिणाम सफल रहे हैं, लिहाजा अब आई ड्रॉप को मानव परीक्षणों में इस्तेमाल किया जाएगा। इसके अलावा, रिसर्च टीम उन प्राकृतिक उत्पादों की भी खोज कर रही है, जिनमें मोनोकैप्रिन उच्च मात्रा में पाया जाता है। इन उत्पादों से यह एंटीमाइक्रोबायल एजेंट कैसे निकाला जाए, इस पर भी विचार किया जा रहा है।

डॉ. स्नाइडर का कहना है मोनोकैप्रिन एक उदाहरण है कि कैसे प्रकृति से प्राप्त चीजों को उन कई मेडिकल कंडीशन के इलाज में इस्तेमाल के लिए तब्दील किया जा सकता है, जिन्हें अब तक एंटीबायोटिक्स की मदद से ठीक किया जाता रहा है। उन्होंने बताया, 'एक बार इस (ट्रीटमेंट) कैंडिडेट को टेस्ट ट्यूब के जरिये आइडेंटिफाई करने के बाद हमारे सामने चुनौती थी कि फैटी एसिड की घुलनशीलता को आई ड्रॉप में कैसे बदला जाए ताकि उसे किसी बच्चे की आंख में डालने लायक बनाया जा सके। अब हमने यह काम कर लिया है। अगला कदम यह साबित करना है कि यह जीवित मानव आंख पर काम कर सकता है। अगर यह (प्रयास भी) सफल रहा तो हम दवा निर्माताओं के साथ बात करने के बारे में सोच सकते हैं। इस उम्मीद के साथ कि जल्दी ही भविष्य में मरीजों को यह ट्रीटमेंट दे सकें।'

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