कोरोना संक्रमण को लेकर पिछले दिनों बार-बार ये सवाल उठा कि आखिर ये एंटीबॉडीज कितने दिनों तक शरीर में सक्रिय रहती हैं? अब एक नई रिसर्च में शोधकर्ताओं ने दावा किया है कि कोविड-19 बीमारी से मरीज के ठीक होने के बाद उसके शरीर में 60 दिन से अधिक समय तक एंटीबॉडीज मौजूद रहती हैं जो वायरस के खिलाफ इम्यूनिटी देती हैं।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक यह ताजा रिसर्च दिल्ली के साकेत स्थित निजी अस्पताल मैक्स और सीएसआईआर के इंस्टीट्यूट फॉर जिनोमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायोलॉजी ने साथ मिलकर की है। लगभग पांच महीने तक चली इस स्टडी में यह पता चला है कि एंटीबॉडी 60 दिन से ज्यादा समय तक वायरस के खिलाफ इम्यूनिटी देने का काम करती है।

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इस स्टडी के नतीजों को 'सार्स-सीओवी-2 एंटीबॉडी सेरोप्रेवलेंस (आबादी में रोगाणु का स्तर) और स्थिरता तृतीयक देखभाल अस्पताल-सेटिंग में' का नाम दिया गया है जो MedRxiv पत्रिका में प्रीप्रिंट के तौर पर उपलब्ध है। इस अध्ययन के निष्कर्ष, हाल ही में प्रकाशित एक अध्ययन के विपरीत हैं जिसमें यह दिखाया गया था कि कोविड-19 मरीज के शरीर में एंटीबॉडीज 50 दिन से भी कम समय के लिए होती हैं।

कैसे की गई रिसर्च?
मैक्स अस्पताल और सीएसआईआर ने अपनी इस संयुक्त रिसर्च के दौरान कोविड-19 के 780 लोगों को शामिल किया जिनका टेस्ट किया गया और बाद में फॉलोअप भी। इसमें से 448 हेल्थकेयर वर्कर्स थे जबकि 332 अन्य मरीज थे। ये सभी लोग अप्रैल से अगस्त 2020 के बीच कोविड टेस्टिंग के लिए अस्पताल आए थे। 

अस्पताल में एंडोक्रिनोलॉजी, डायबिटीज और मेटाबॉलिज्म के प्रमुख निदेशक डॉ. सुजीत झा ने बताया, यह भारत की पहली ऐसी प्रारंभिक रिपोर्ट है जो इस बात का प्रमाण देती है कि एक बार सार्स-सीओवी-2 वायरस के खिलाफ एंटीबॉडीज शरीर में बन जाती हैं तो उसके बाद यह 60 दिनों से अधिक समय तक शरीर में बनी रहती हैं। हालांकि सेरोपॉजिटिव (Sero Positive) लोगों का फॉलोअप अभी भी जारी है और आगे के परिणाम से कोविड-19 संक्रमण के खिलाफ इम्यून प्रतिक्रिया की सही और सटीक जानकारी मिल सकेगी। इतना ही नहीं इससे कोरोना वैक्सीन के निर्माण में भी मदद मिलेगी।

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आधे मरीजों में अधिक समय तक रहे एंटीबॉडी
रिपोर्ट के मुताबिक अस्पताल में परीक्षण किए गए रोगियों में से आधे मरीजों में वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी पायी गई थी। शोधकर्ताओं ने पाया कि हेल्थकेयर वर्कर्स के बीच 16.5% संचयी सेरोप्रिविलेंस (Sero Prevalence) था जबकि जर्नल फ्लू-क्लिनिक में आने वाले लोगों में 23.5% सेरो प्रिविलेंस देखने को मिला।

सीएसआईआर-इंस्टीट्यूट फॉर जिनोमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायोलॉजी में पीएचडी स्कॉलर सलवा नौशीन बताती हैं, अध्ययन में पाया गया कि फॉलोअप के दौरान 19 लोगों के शरीर में कम से कम 40 दिनों तक एंटीबॉडी बनी रही  जबकि 12 व्यक्तियों के शरीर में लगातार 50 दिनों तक एंटीबॉडी मौजूद रही। इसके साथ ही 4 व्यक्ति ऐसे थे, जिन्हें 60 दिनों तक फॉलोअप किया गया और उनमें 60 दिनों से अधिक समय तक सफलतापूर्वक एंटीबॉडी मौजूद रही।

रिसर्च के जरिए शोधकर्ताओं ने पाया कि 67 प्रतिशत सेरो पॉजिटिव मामले असिम्प्टोमैटिक (लक्षणहीन) थे। इससे पता चलता है कि वैसे लोग जिन्हें यह पता भी नहीं होता कि वे वायरस के संपर्क में आ चुके हैं उन लोगों के शरीर में भी एंटीबॉडी विकसित हो सकती है। वहीं, अस्पताल कर्मचारियों में सेरो प्रिवेलेंस अप्रैल में 2.3% से बढ़कर जुलाई में 50.6% हो गया।

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सीएसआईआर-इंस्टीट्यूट फॉर जिनोमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायोलॉजी में वरिष्ठ प्रधान वैज्ञानिक डॉ. शांतनु सेनगुप्ता का कहना है “यह स्टडी आबादी में बीमारी के बोझ का आकलन करने में असिम्प्टोमैटिक वाहकों का क्या महत्व है इस ओर भी इशारा करती है.. इस अध्ययन का उद्देश्य अस्पताल और सामान्य आबादी में सेरोप्रिवेलेंस का अनुमान लगाना और स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं में एंटीबॉडी की स्थिरता का निर्धारण करना था।”

आखिर क्या है एंटीबॉडी?

एंटीबॉडी को इम्यूनोग्लोबुलिन भी कहा जाता है। यह शरीर द्वारा उत्पन्न प्रोटीन है, जो एंटीजन नामक बाहरी हानिकारक तत्वों से लड़ने में मदद करता है। शरीर में एंटीजन प्रवेश करने के बाद प्रतिरक्षा तंत्र को एंटीबॉडीज बनाने के लिए उत्तेजित करते हैं। एंटीबॉडीज एंटीजन के साथ जुड़ जाते हैं या एंटीजनक को बांध देते हैं। इसके साथ ही एंटीबॉडीज एंटीजन को निष्क्रिय भी करते हैं। एक स्वस्थ व्यस्क के शरीर में हजारों की संख्या में एंटीबॉडी होते हैं।

एंटीबॉडी विशेष तरह की सफेद रक्त कोशिकाओं से स्रावित होने वाले Y आकार के प्रोटीन होते हैं। इनमें वायरस और बैक्टीरिया जैसे रोगाणुओं को पहचानने की क्षमता होती है। व्यक्ति के शरीर में मौजूद हजारों प्रकार के अलग-अलग एंटीबॉडीज विशेष तरह के रोगाणुओं से बचाव का कार्य करते हैं। 


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