कोविड-19 महामारी के बीच सरकार ने दवाओं के दामों को नियंत्रित करने के संबंध में हाल में कई कदम उठाए हैं। लेकिन देश में दवाओं की कीमत से जुड़े नियंत्रक नेशनल फार्मास्यूटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी (एनपीपीए) ने 'हेपारिन' नाम की एक महत्वपूर्ण दवा की कीमत में 50 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी करने की इजाजत दे दी है। इस संबंध में एनपीपीए द्वारा जारी निर्देश के मुताबिक, देश की दवा कंपनियां इस साल के अंत यानी 31 दिसंबर तक हेपारिन के दाम में 50 प्रतिशत की बढ़ोतरी बनाए रख सकती हैं। इस फैसले ने मेडिकल जानकारों के बीच कई तरह के सवाल खड़े कर दिए हैं।

हेपारिन क्या है और क्यों जरूरी है?
हेपारिन खून को पतला करने वाला एक ब्लड थिनर ड्रग है। जिन लोगों के पैरों, हृदय और अन्य अंगों में रक्त के जमाव यानी ब्लड क्लॉटिंग की समस्या आती है, उनके लिए यह दवा काफी जरूरी है। थक्के के रूप में जमा रक्त को पतला कर यह दवा मरीजों को हार्ट अटैक, स्ट्रोक और पल्मोनरी एम्बोलिज्म जैसी गंभीर बीमारियों से बचाती है। कई अन्य गंभीर बीमारियों से ग्रस्त मरीजों को भी यह ड्रग दिया जाता है। इनमें किडनी की बीमारी भी शामिल है, जिसमें मरीज को डायलिसिस की जरूरत पड़ती है।

हेपारिन इस समय कोविड-19 की रोकथाम के लिए भी काफी महत्वपूर्ण है। गौरतलब है कि कोरोना वायरस के संक्रमण की चपेट में आने वाले कई मरीजों में ब्लड क्लॉटिंग की समस्या देखने में आई है। दुनियाभर के मेडिकल विशेषज्ञों के अलावा सरकारों ने भी शरीर के अलग-अलग अंगों में खून के थक्कों के बनने को कोविड-19 का लक्षण माना है। यही कारण है कि भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय ने कोरोना वायरस के इलाज से जुड़ी क्लिनिकल मैनेजमेंट गाइडलाइंस में हेपारिन को शामिल किया है।

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आपूर्ति में कमी
ब्लड थिनर होने के चलते कोविड-19 के इलाज में हेपारिन एक जरूरी दवा बन जाती है। लेकिन यह देखने में आया है कि महामारी के दौरान इसकी आपूर्ति में कमी महसूस की गई है। इसकी वजह है ड्रग को बनाने में इस्तेमाल होने वाले कच्चे माल यानी एक्टिव फार्मास्यूटिकल इनग्रेडिएंट (एपीआई) की कीमत हुई बढ़ोतरी। अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी एक रिपोर्ट में यह जानकारी दी है। उसने विशेषज्ञों की एक समिति के हवाले से बताया है कि सितंबर 2018 के बाद से एपीआई के दाम में 200 प्रतिशत से भी ज्यादा की बढ़ोतरी हो चुकी है। उधर, कंपनियां एक तय सीमा से ज्यादा दाम नहीं बढ़ा सकतीं, जबकि एपीआई के दाम बढ़ते जा रहे हैं। इसके चलते कंपनियों का कहना रहा है कि भारत में अब हेपारिन का निर्माण और बिक्री फायदे का सौदा नहीं रह गया है।

ऐसे में एनपीपीए को आगे आकर ड्रग्स (प्राइसिंग कंट्रोल) ऑर्डर, 2013 के तहत अपने विशेष अधिकार का इस्तेमाल कर दवा के दाम में बढ़ोतरी करनी पड़ी है। वह ऐसा पहले भी कर चुका है। दिसंबर 2019 में एनपीपीए ने 21 अलग-अलग ड्रग्स के दाम में 50 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी की थी। इनमें ट्यूबरकुलोसिस के इलाज में इस्तेमाल होने वाली बीसीजी वैक्सीन से लेकर विटामिन सी, एंटी-मलेरिया ड्रग क्लोरोक्वीन, कुष्ठ रोग की दवा डैप्सोन और कुछ एंटीबायोटिक्स दवाएं शामिल थीं।

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हालांकि, हेपारिन के दाम में की गई बढ़ोतरी के तार चीन से भी जुड़ते हैं। देश की फार्मा कंपनियों के मुताबिक, हेपारिन के एपीआई के लिए भारत चीन पर काफी ज्यादा निर्भर है। फार्मा उद्योग जगत के जानकारों का यह भी कहना है कि हेपारिन के एपीआई के लिए भारत के पास चीन के अलावा कोई विकल्प भी नहीं है और ऐसा कई अन्य दवाओं से जुड़े एपीआई के साथ भी है। भारत में बनने वाली कई जरूरी एंटीबायोटिक्स और विटामिन दवाओं के एपीआई के लिए कंपनियां चीन पर ही निर्भर हैं। यहां तक की पैरासिटामोल जैसे बेहद महत्वपूर्ण और चर्चित दर्दनिवारक ड्रग के लिए भी एपीआई चीन से ही आता है। जाहिर है हेपारिन के बढ़े दाम के लिए चीन के हालात कहीं न कहीं जिम्मेदार हैं।

क्या है वजह?
दवा कारोबार से जुड़े लोगों का कहना है कि कोरोना संकट के दौरान बीते तीन से छह महीनों में चीन ने एपीआई के दामों में 20 से 35 फीसदी की वृद्धि की है। कोविड-19 संकट से निपटने के लिए चीन ने जब अपने यहां लॉकडाउन लागू करना शुरू किया तो उसका असर उसके आयात पर भी पड़ा। इस कारण कई उत्पादों के साथ दवा निर्माण के लिए जरूरी एपीआई के एक्सपोर्ट पर भी रोक लग गई। ऐसे में भारत में कुछ जरूरी दवाओं की कमी न हो जाए, इसलिए मार्च में सरकार ने उनके आयात पर रोक लगाना शुरू कर दिया था। दवा उद्योग के जानकारों का कहना है कि वुहान में लॉकडाउन लगने के बाद वहां के आयात व्यापार पर असर हुआ है। कई चीनी फर्मों और कंपनियों को जबर्दस्त आर्थिक नुकसान झेलना पड़ा है। अब यही कंपनियां नुकसान की भरपाई के लिए अपने यहां से सप्लाई होने वाले उत्पादों के दामों में बढ़ोतरी कर रही हैं।

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साफ है कि एपीआई की लागत में लंबे समय से हो रही वृद्धि और कोविड-19 के चलते लगाए गए लॉकडाउन के असर की वजह से हेपारिन के दाम में बढ़ोतरी की गई है। अब देखना यह है कि क्या आने वाले समय में अन्य दवाओं के दामों में भी बढ़ोतरी देखने को मिल सकती है। फिलहाल इस संबंध में अहम जानकारी यह है कि बीते दो महीनों के दौरान कई दवा कंपनियों के प्रतिनिधियों ने एनपीपीए के अधिकारियों के साथ मुलाकात की है और हेपारिन की तर्ज पर दवाओं के दाम बढ़ाने की अपील की है। इनमें कुछ सिफारिशें ऐसे एंटीबायोटिक्स और विटामिन ड्रग्स को लेकर की गई हैं, जिनके एपीआई चीन से ही आते हैं।


उत्पाद या दवाइयाँ जिनमें कोविड-19: 'हेपारिन' दवा के दाम में 50 फीसदी की बढ़ोतरी, इलाज से जुड़े प्रोटोकॉल में है शामिल, जानें क्या हैं इस फैसले के मायने है

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