जर्मनी के फ्रेडरिच लोफलर इंस्टीट्यूट के शोधकर्ताओं के मुताबिक, कुत्ते की एक प्रजाति रकून नए कोरोना वायरस सार्स-सीओवी-2 के इन्सानों के बीच फैलने का संभावित माध्यम (इंटरमीडिएट होस्ट) हो सकती है। इन वैज्ञानिकों ने अध्ययन के आधार पर कहा है कि चीन में खेतों में रकून डॉग्स लाखों की संख्या में रखे जाते हैं और यह प्रजाति कोरोना संक्रमण के प्रति संवेदनशील है। शोधकर्ताओं की मानें तो वायरस की चपेट में आने के बाद हो सकता है उन्होंने अपनी प्रजाति के अन्य कुत्तों में इस वायरस को फैला दिया हो। अध्ययन से जुड़े वैज्ञानिक थॉमस मेटनलेटर और उनके सहयोगियों का कहना है, 'चीन हर साल 50 लाख रकून कुत्तों के जरिये पूरी दुनिया के लिए फर का उत्पादन करता है। इसलिए संभव है कि कोविड-19 महामारी के फैलने में रकून कुत्तों की कोई छिपी भूमिका हो, जिसका अब तक जिक्र नहीं किया गया था।' हालांकि इस दावे से जुड़ा अध्ययन अभी तक किसी मेडिकल जर्नल में प्रकाशित नहीं हुआ है। इसकी समीक्षा होनी बाकी है। फिलहाल इसे मेडआरकाइव पर पढ़ा जा सकता है।

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यह पहली बार नहीं है जब किसी कोरोना वायरस के इन्सानों में फैलने के पीछे रकून डॉग्स को इंटरमीडिएट होस्ट बताया गया है। रिपोर्टों से पता चलता है कि साल 2002-03 में फैले कोरोना वायरस सार्स-सीओवी-1 के ह्यूमन ट्रांसमिशन के संदर्भ में रकून कुत्तों का जिक्र होता रहा है। इन रिपोर्टों में यह भी बताया गया है कि रकून कुत्तों के शरीर में एनजियोटेंसिन-कनवर्टिंग एंजाइम 2 यानी एसीई2 रिसेप्टर (प्रोटीन) होता है, जिसके कारण सार्स-सीओवी-1 और सार्स-सीओवी-2 कोरोना वायरस शरीर में घुसने की क्षमता रखते हैं। हालांकि अभी तक ऐसी स्टडी नहीं की गई थी, जिसमें नियंत्रित परिस्थितियों और सेरोलॉजिक सर्विलेंस के तहत रकून कुत्तों में सार्स-सीओवी-1 या सार्स-सीओवी-2 का संक्रमण होने की जांच की गई हो।

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लेकिन अब एक ऐसा अध्ययन सामने आया है। ऐसे में यह जानना दिलचस्प हो सकता है कि आखिर जर्मन वैज्ञानिकों ने किस आधार पर रकून डॉग्स को कोरोना वायरस का संभावित इंटरमीडिएट होस्ट बताया है। दरअसल, इन शोधकर्ताओं ने इसके लिए नौ रकून डॉग्स को नए कोरोना वायरस से संक्रमित किया और फिर उसके 24 घंटों बाद तीन अतिरिक्त रकून डॉग्स को उनसे इंट्रोड्यूस कराया। प्रयोग के दौरान शुरू में इन तीनों जानवरों के आरटी-क्यूपीसीआर टेस्ट और एंटीबॉडी टेस्ट नेगेटिव निकले। बाद में वायरस से संक्रमित किए जाने के छह दिन बाद छह जानवरों की रिपोर्ट पॉजिटिव आई। वहीं, जिन तीन अन्य रकून कुत्तों को उनसे मिलाया गया था, उनमें से दो अन्य भी सार्स-सीओवी-2 से संक्रमित पाए गए। तीसरा रकून इसलिए संक्रमित नहीं हुआ, क्योंकि उसके पड़ोस के पिंजरे में रखे कुत्ते नेगेटिव थे।

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अध्ययन के दौरान यह स्पष्ट रूप से देखा गया कि किसी संक्रमित रकून में कोरोना वायरस के संक्रमण के लक्षण नहीं थे और न ही किसी में विषाणु से हुए बड़े नुकसान का पता चला। हालांकि हिस्टोपैथोलॉजी आधारित विश्लेषण में पता चला कि संक्रमण के चौथे दिन में तीन रकूनों की नाक के आसपास हल्की सूजन दिखाई दी थी। यही स्थिति एक और कुत्ते में आठवें दिन और एक अन्य में 12वें दिन दिखी थी। शोधकर्ताओं ने बताया कि इसके अलावा सभी जानवरों में कोई और लक्षण दिखाई नहीं दिए। लेकिन उनका कहना है कि संक्रमित होने की सूरत में इन जानवरों के फर में सार्स-सीओवी-2 की मौजूदगी हो सकती है, लिहाजा इस खतरे पर नजर रखने की जरूरत है।


उत्पाद या दवाइयाँ जिनमें कोविड-19: जर्मनी के इन वैज्ञानिकों को क्यों लगता है कि रकून प्रजाति के कुत्ते नए कोरोना वायरस के इंटरमीडिएट होस्ट हो सकते हैं? है

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