भारत में डायबिटीज बीमारी को लेकर हुए एक हालिया शोध में कहा गया है कि भारतीयों के संदर्भ में इस बीमारी के टाइप 2 को कम से कम चार और अन्य श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है। शोध से जुड़े वैज्ञानिकों का कहना है कि इससे डॉक्टरों को डायबिटीज के मरीजों की दवाएं कम करने में मदद मिलेगी। साथ ही, डायबिटीज के मरीजों में अंधापन, किडनी डैमेज या नर्व डैमेज की समस्या को रोकने के लिए अन्य दवाएं देने में सहूलियत होगी।

  1. स्टडी के अनुसार टाइप 2 डायबिटीज के प्रकार
  2. टाइप 2 डायबिटीज क्या है?

मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, इंडिया-स्कॉटलैंड पार्टनरशिप फॉर प्रिसिजन मेडिसिन इन डायबिटीजन नामक यह स्टडी बीएमजे ओपन डायबिटीज रिसर्च एंड केयर पत्रिका में प्रकाशित हो चुकी है। अध्ययन का मुख्य केंद्र टाइप 2 डायबिटीज रहा, जिसे चार और अलग-अलग कैटिगरी में बांटा गया है। ये चारों श्रेणी इस प्रकार हैं-

  • सिवियर इंसुलिन डिफिशिएंट डायबिटीज (एसआईडीडी)
  • इंसुलिन रेजिस्टेंट ओबेस डायबिटीज (आईआरओडी)
  • कंबाइंड इंसुलिन रेजिस्टेंट एंड डेफिशिएंट डायबिटीज (सीआईआरडीडी)
  • माइल्ड एज-रिलेटिड डायबिटीज (एमएआरडी)

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स्कॉटलैंड की यूनिवर्सिटी ऑफ डन्डी के स्कूल ऑफ मेडिसिन के वैज्ञानिकों ने टाइप 2 डायबिटीज के करीब 20 हजार मरीजों का विश्लेषण करने के बाद इसके वर्गीकरण की बात कही है। बताया गया है कि इन चार वर्गीकृत श्रेणियों में से दो प्रमुख रूप से भारतीयों से जुड़ी हैं। ये दोनों श्रेणी हैं आईआरओडी और सीआईआरडीडी। इसके बाद वैज्ञानिकों ने भारत की जनसंख्या पर आधारित एक अन्य प्रतिनिधि अध्ययन में इन परिणामों को दोहराया।

इससे मिले परिणामों के आधार पर अध्ययन की प्रमुख लेखिका और डायबिटीज विशेषज्ञ डॉ. आरएम अंजना ने बताया, 'अब तक हम सभी प्रकार के टाइप 2 डायबिटीज को एक ही तरीके से ट्रीट कर रहे थे। इस अध्ययन से भारतीयों में अलग-अलग टाइप 2 डायबिटीज का पता चलता है।' वहीं, एक अन्य वरिष्ठ मुधमेह विशेषज्ञ डॉ. वी मोहन ने कहा कि इस अध्ययन से डॉक्टरों को डायबिटीज से जुड़ी जटिलताओं का अनुमान लगाने में मदद मिलेगी और उन पर बेहतर फोकस करना संभव होगा। एक और एक्सपर्ट और यूनिवर्सिटी ऑफ डन्डी के डॉ. कॉलिन पालमेर ने कहा, 'डायबिटीज के अन्य उप-प्रकारों (सबटाइप) की पहचान करने से डॉक्टरों को मरीजों के लिए विशेष मेडिकशन चुनने में मदद मिल सकती है।'

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यह मधुमेह का सबसे आम रूप है। टाइप 2 डायबिटीज के चलते खून में शुगर का लेवल बहुत ज्यादा बढ़ जाता है। यह बीमारी आम तौर पर वृद्धों में ही पाई जाती है। लेकिन कम उम्र और कभी-कभी बच्चों में भी यह रोग पनप सकता है। इस बीमारी के लक्षण रक्त में शूगर की मात्रा पर निर्भर करते हैं। टाइप 2 मधुमेह के प्रभाव में बहुत ज्यादा प्यास लगती है, बार-बार पेशाब आता है, सुस्ती और थकान रहती है, नींद ज्यादा आती है, धुंधला दिखता है, भूख ज्यादा लगती है और वजन तेजी से कम होने लगता है।

टाइप 2 डायबिटीज को ठीक करना संभव नहीं है। इसे कुछ विशेष प्रकार के उपचार से केवल नियंत्रित किया जा सकता है। इसमें स्वस्थ भोजन, व्यायाम और समय-समय पर शूगर की जांच की अहम भूमिका होती है। कुछ मरीजों को दवाएं भी लेनी पड़ सकती हैं। अगर खून में शूगर का लेवल कम न हो तो भविष्य में हृदय, किडनी, नसों, आंखों, मसूड़ों आदि से जुड़ी स्वास्थ्य समस्याएं होने लगती हैं।

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