वजन कम करने से डायबिटीज न सिर्फ रुक सकता है, बल्कि रिवर्स भी हो सकता है। सोमवार को यूरोपियन सोसायटी ऑफ कार्डियोलॉजी के वार्षिक सम्मेलन में शोधकर्ताओं ने यह बड़ा दावा किया है। इससे संबंधित अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता और यूनिवर्सिटी ऑफ कैंब्रिज तथा यूनिवर्सिटी ऑफ मिलान के प्रोफेसर ब्रायन फेरेंस का कहना है, 'हम हमारे जीन्स के साथ पैदा होते हैं। इसलिए जीवन की शुरुआत में यह पता लगाना संभव है कि आगे चलकर किसे डायबिटीज होने के चांस ज्यादा हैं। हमने अध्ययन यह जानने के लिए किया कि क्या मौजूदा बॉडी मास इंडेक्स और आनुवांशिक खतरे को एकसाथ रखते हुए डायबिटीज के हाई रिस्क वाले लोगों की पहचान की जा सकती है। उसके बाद इसे रोकने के प्रयासों पर फोकस किया जा सकता है।'

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  1. ज्यादा बीएमआई से होती है शुगर - स्टडी
  2. वजन कम करना है जरूरी - स्टडी
  3. क्या है रिवर्स डायबिटीज?

अध्ययन में वैज्ञानिकों ने यूनाइटेड किंगडम के 4 लाख 45 हजार 765 लोगों को शामिल किया गया था। इनकी औसत उम्र 57.2 वर्ष थी और 54 प्रतिशत प्रतिभागी महिलाएं थीं। शोधकर्ताओं ने 69 लाख वंशाणुओं का इस्तेमाल करते हुए इन लोगों में वंशागत डायबिटीज के खतरे का आंकलन किया। बीएमआई के आंकलन के लिए इन लोगों के वजन और लंबाई को मांपा गया। आनुवंशिक खतरे के लिहाज से प्रतिभागियों को पांच समूहों में विभाजित किया गया। वहीं, बीएमआई के आधार पर भी पांच अलग समूह बनाए गए। फॉलोअप के दौरान 65.2 वर्ष की औसत उम्र होने तक कोई 31 हजार 298 प्रतिभागी टाइप 2 डायबिटीज से पीड़ित हुए।

अध्ययन के मुताबिक, सबसे ज्यादा बीएमआई (औसतन 34.5 किलो प्रति दो मीटर) वाले समूह के प्रतिभागियों में डायबिटीज होने का खतरा सबसे कम बीएमआई वाले समूह (औसतन 21.7 किलो प्रति दो मीटर) से 11 गुना ज्यादा था। वैज्ञानिकों ने बताया कि बीएमआई ज्यादा होने की वजह से इन लोगों में यह खतरा आनुवंशिकता पर निर्भर नहीं था। इस आधार पर प्रोफेसर फेरेंस ने कहा, 'ये परिणाम संकेत देते हैं कि आनुवंशिकी की अपेक्षा (ज्यादा) बीएमआई से डायबिटीज होने का खतरा कहीं ज्यादा बड़ा है।'

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इसके बाद शोधकर्ताओं ने सांख्यिकीय मेथड का इस्तेमाल कर यह जाना कि अगर ज्यादा बीएमआई वाले लोगों का वजन लंबे वक्त तक ज्यादा रहे तो उनमें डायबिटीज की संभावना और अधिक बनती है या नहीं। इसमें पता चला कि बढ़े हुए बीएमआई का डायबिटीज के खतरे पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। इस पर प्रोफेसर सेरेंस का कहना है, 'यह बताता है कि एक सीमा से ज्यादा बीएमआई पार करने के बाद लोगों में डायबिटीज का खतरा उसी सीमा पर जाकर स्थिर हो जाता है। इससे फर्क नहीं पड़ता कि वे कितने समय तक ओवरवेट रहे।'

प्रोफेसर ने आगे कहा, 'इन परिणामों से संकेत मिलता है कि अगर बीएमआई को असामान्य ब्लड शूगर बनने वाली सीमा से नीचे रखते हुए (वजन को) नियंत्रित किया जाए तो डायबिटीज के ज्यादातर मामलों से बचा जा सकता है। इसका मतलब है कि डायबिटीज को रोकने के लिए नियमित रूप से ब्लड शूगर और बीएमआई का आंकलन करते रहना होगा। जब ब्लड शूगर या ग्लूकोज डेवलेप होना शुरू हो जाएं तो वजन कम करना ज्यादा जरूरी हो जाता है। यह भी संभव है कि स्थायी क्षति होने से पहले ही समय रहते वजन कम करने से रिवर्स डायबिटीज की स्थिति आ जाए।'

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आसान भाषा में कहें तो इसका मतलब डायबिटीज के समाधान से है। यहां स्पष्ट कर दिया जाए कि रिवर्स डायबिटीज का मतलब डायबिटीज का खत्म होना नहीं है। रिवर्स डायबिटीज टाइप 2 डायबिटीज के सुधार की एक लंबी प्रक्रिया है। इसमें इंसुलिन सेंसिटिविटी को इंप्रूव होने में काफी समय लगता है। इस बीमारी से जो पीड़ित अपना एचबीए1सी (हीमोग्लोबिन ए1सी) 42 मिलीमोल/मोल्स करने में कामयाब रहते हैं और ऐसा करने में किसी तरह के मेडिकेशन का सहारा नहीं लेते, उनके डायबिटीज को रिवर्स डायबिटीज या समाधित मधुमेह कहा जाता है। इस स्थिति में मरीज इस बीमारी के खतरे से काफी हद तक दूर हो जाते हैं।

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