केराटोकोनस - Keratoconus in Hindi

Dr. Ajay Mohan (AIIMS)MBBS

July 12, 2019

March 06, 2020

केराटोकोनस
केराटोकोनस

मानव आंख कॉर्निया (नेत्रपटल) के अंदर से देख पाती है, यह आंख का बाहरी पारदर्शक लेंस और एक तरह से आंख का “विंडशील्ड” होता है। आमतौर पर कॉर्निया की आकृति गुंबद या एक गेंद के जैसी होती है। लेकिन कभी-कभी कॉर्निया की संरचना इतनी मजबूत नहीं होती कि वह इस गोल आकृति को बनाए रखे। इस वजह से कॉर्निया में बाहर की तरफ उभार आ जाता है और इसकी आकृति एक कोन (शंकु) के जैसी बन जाती है। इस स्थिति को केराटोकोनस कहा जाता है।

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केराटोकोनस क्या है - What is Keratoconus in Hindi

केराटोकोनस क्या होता है?

केराटोकोनस एक आंख संबंधी विकार है, जिसमें कॉर्निया की मोटाई कम होती रहती है और इसकी आकृति में लगातार बदलाव आते रहते हैं। कॉर्निया आंख की बाहरी परत होती है और काफी पतली और पूरी तरह से पारदर्शक होती है। सामान्य रूप से कॉर्निया की आकृति गुंबद या गोल होती है। केराटोकोनस रोग में कॉर्निया लगातार पतला होता रहता है और कमजोर होकर बाहर की तरफ उभर जाता है, जिसकी वजह से उसकी आकृति गोल की बजाए शंकु के आकार की हो जाती है।

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केराटोकोनस के लक्षण - Keratoconus Symptoms in Hindi

केराटोकोनस से क्या लक्षण होते हैं?

इसके लक्षण आमतौर पर किशोरावस्था या वयस्कता के शुरुआती सालों में दिखाई देते हैं। केराटोकोनस की स्थिति लगातार 10 से 20 सालों तक लगातार बदतर होती रहती है। अधिक उम्र वाले वयस्कों में आमतौर पर केराटोकोनस गंभीर नहीं हो पाता है। केराटोकोनस की गंभीरता लगातार बढ़ती रहती है, इसलिए इस से ग्रस्त व्यक्तियों को बार-बार अपना चश्मा बदलवाने की आवश्यकता पड़ती है। 

जैसे ही केराटोकोनस की गंभीरता बढ़ती रहती है, तो इसके लक्षण भी बदलते रहते हैं जैसे: 

  • धुंधला दिखना
  • ठीक से दिखाई ना देना
  • तेज रौशनी के प्रति अतिसंवेदनशीलता महसूस होना (अधिक तेज रौशनी सहन ना कर पाना)
  • आंखों में चमक (Glare) पड़ना, जिसके कारण रात के समय ड्राइविंग करने में परेशानी होती है।
  • बार-बार आंखों की जांच करवाकर चश्मा चेंज करवाने की जरूरत पड़ना
  • अचानक से दृष्टि प्रभावित हो जाना या धुंधला दिखने लगना

डॉक्टर को कब दिखाना चाहिए?

यदि लगातार देखने की क्षमता प्रभावित हो रही है, तो आपको आंखों के विशेषज्ञ डॉक्टर (ओफ्थल्मोलॉजिस्ट या ऑप्टोमेट्रिस्ट) को दिखा लेना चाहिए। लगातार दृष्टि प्रभावित होना, आंख की आकृति में असाधारण रूप से घुमाव या मोड़ आने के कारण हो सकता है, जिस स्थिति को एस्टिग्मेटिज्म कहा जाता है। डॉक्टर आंख के सामान्य परीक्षण (रुटीन आई इग्जाम) के दौरान भी केराटोकोनस के संकेत व लक्षणों की जांच कर सकते हैं।

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केराटोकोनस के कारण व जोखिम कारक - Keratoconus Causes & Risk Factors in Hindi

केराटोकोनस क्यों होता है?

आंख में मौजूद छोटे प्रोटीन के छोटे-छोटे फाइबर को कोलीजन कहा जाता है, जो कॉर्निया को सामान्य आकृति में बनाएं रखने में मदद करता है। जब ये फाइबर कमजोर पड़ जाते हैं, तो ये कॉर्निया की सामान्य आकृति को बनाए नहीं रख पाते और परिणामस्वरूप कॉर्निया कोन के आकार का बन जाता है।

कॉर्निया कमजोर पड़ जाने या फिर कॉर्निया में किसी प्रकार की क्षति होने के कुछ अनुवांशिकी कारण भी हो सकते हैं, इसीलिए यह समस्या कभी-कभी परिवार में एक से अधिक सदस्यों में पाई जाती है। इसके अलावा अल्ट्रावॉयलेट (पराबैंगनी) किरणों के संपर्क में आना, आंखों को अत्यधिक मलना, ठीक से फिट ना होने वाले कॉन्टेक्ट लेंस लगाना और लंबे समय से आंख में परेशानी होना।

केराटोकोनस होने का खतरा कब बढ़ता है?

स्वास्थ्य संबंधी कुछ समस्याएं हैं, जो केराटोकोनस होने के जोखिम बढ़ा देती हैं:

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केराटोकोनस का परीक्षण - Diagnosis of Keratoconus in Hindi

केराटोकोनस का परीक्षण कैसे किया जाता है?

केराटोकोनस का परीक्षण करने के लिए डॉक्टर कॉर्निया का परीक्षण करते हैं और यह पता लगाते हैं कि कॉर्निया कितना बाहर की तरफ निकल गया है। परीक्षण की पुष्टि करने के लिए कई अलग-अलग टेस्ट भी किए जा सकते हैं। हालांकि केराटोकोनस का परीक्षण करने के लिए ज्यादातर मामलों में टोपोग्राफी टेस्ट किया जाता है। 

टोपोग्राफी टेस्ट की मदद से आंख की ऊपरी सतह की जांच करके उसमें टेढ़ापन की जांच की जाती है और कॉर्निया का रंगीन मैप तैयार किया जाता है। केराटोकोनस के कारण इस मैप की आकृति में काफी बदला आ जाते हैं, जिसकी मदद से डॉक्टर इस रोग का परीक्षण कर पाते हैं। 

इसके अलावा कुछ अन्य तकनीकें भी आ गई हैं, जिनकी मदद से टोपोग्राफी से भी कम समय में केराटोकोनस का पता लगाया जा सकता है। लेजर सर्जरी करने वाले डॉक्टर आमतौर पर लेजर विजन सर्जरी करने से ये टेस्ट करवाने की सलाह देते हैं।

केराटोकोनस का इलाज - Keratoconus Treatment in Hindi

केराटोकोनस का इलाज कैसे किया जाता है?

यदि केराटोकोनस अधिक गंभीर नहीं है, तो कुछ प्रकार के चश्मे व नरम कॉन्टेक्ट लेंस आदि का उपयोग करने से मदद मिल सकती है। लेकिन यह रोग लगातार बढ़ता रहता है और कॉर्निया पतला होता रहता है, जिस कारण से इसकी आकृति लगातार असाधारण होती रहती है। ऐसी स्थिति में चश्मे व कॉन्टेक्ट लेंस अधिक लंबे समय तक केराटोकोनस के लक्षणों को दूर रखने में मदद नहीं कर पाते हैं।

केराटोकोनस के इलाज में निम्न उपचार प्रक्रियायएं शामिल हो सकती हैं:

थेरेपी

कॉर्नियल क्रॉस लिंकिंग:
इस प्रक्रिया में कॉर्निया में रिबोफ्लेविन (Riboflavin) की बूंदें डाली जाती हैं और अल्ट्रावॉयलेट किरणों का इस्तेमाल भी किया जाता है। कॉर्नियल क्रॉस लिंकिंग की मदद से केरोटोकोनस के शुरुआती चरणों में ही कॉर्निया में बढ़ रहे टेढ़ेपन को स्थिर करके लगातार बढ़ रही दृष्टि हानि को रोक दिया जाता है। 

सर्जरी

यदि आंख के कॉर्निया में स्कार ऊतक बन गए हैं, कॉर्निया अत्यधिक पतला  पड़ गया है, सही चश्मा लगाने के बाद भी ठीक से दिखाई नहीं देता है या फिर आप किसी भी प्रकार के कॉन्टेक्ट लेंस नहीं लगा पा रहे हैं, तो ऐसी स्थिति का इलाज करने के लिए डॉक्टर सर्जरी करवाने का सुझाव देते हैं। केराटोकोनस का इलाज करने के लिए कई प्रकार की सर्जिकल प्रक्रियाएं उपलब्ध हैं, जिनका चुनाव केराटोकोनस की गंभीरता और कॉर्निया में उभार की जगह के अनुसार किया जाता है।

सर्जिकल प्रक्रियाओं में निम्न शामिल हो सकते हैं, जैसे:

  • कॉर्नियल इन्सर्ट्स (Corneal inserts):
    इस सर्जरी प्रक्रिया के दौरान डॉक्टर छोटी, पारदर्शक और चंद्रमा की आकृति वाली प्लास्टिक रिंग (इंट्राकॉर्नियल रिंग सेगमेंट) कॉर्निया में लगा देते हैं। यह रिंग कोन की आकृति वाले कॉर्निया को चौड़ा कर देता है, कॉर्निया की सामान्य आकृति को बनाए रखता है और दृष्टि में सुधार करता है।
    कॉर्नियल इन्सर्ट्स की मदद से कॉर्निया की आकृति को काफी हद तक सामान्य स्थिति में ला दिया जाता है, लगातार बढ़ते केराटोकोनस को रोक दिया जाता है और कॉर्निया ट्रांसप्लांट करवाने की संभावनाओं को भी कम किया जा सकता है। इस सर्जरी की मदद से कॉन्टेक्ट लेंस आसानी से फिट हो जाती हैं और उनको लगाने से अधिक परेशानी भी नहीं होती है। कॉर्नियल इन्सर्ट्स को निकाला भी जा सकता है, इसलिए इस प्रक्रिया का उपयोग आमतौर पर कुछ समय के लिए ही किया जाता है।
     
  • कॉर्नियल ट्रांसप्लांट:
    यदि कॉर्निया में स्कार बन गए हैं या फिर कॉर्निया बहुत पतला पड़ गया है तो ऐसी स्थिति में डॉक्टर कॉर्नियल ट्रांसप्लांट करने पर विचार करते हैं। कॉर्नियल ट्रांसप्लांट प्रक्रिया को "केराटोप्लास्टी" भी कहा जाता है। इस प्रक्रिया में मरीज की आंख से पूरे कॉर्निया को निकाल देते हैं और डोनर (अंग दान करने वाला व्यक्ति) से प्राप्त कॉर्निया को लगा देते हैं।
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केराटोकोनस की जटिलताएं - Keratoconus Complications in Hindi

केराटोकोनस का इलाज कैसे किया जाता है?

कुछ स्थितियों में कॉर्निया में सूजन आ सकती है, जिससे अचानक कम दिखने लगता है और कॉर्निया में स्कार भी बन जाते हैं। यह आमतौर पर ऐसी स्थिति के कारण होता है, जिसमें कॉर्निया का अंदरुनी हिस्सा क्षतिग्रस्त हो जाता है और आंख के अंदर का द्रव कॉर्निया में आने लग जाता है। इस स्थिति को हाइड्रोप्स (Hydrops) कहा जाता है।

केराटोकोनस के कुछ गंभीर चरणों में कॉर्निया में गंभीर रूप से स्कार (खरोंच जैसे निशान) बनने लग जाते हैं खासतौर पर उस जगह पर जहां से कोन की आकृति बनी होती है। कॉर्निया में स्कार होने से दृष्टि गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त हो जाती है और इसमें कॉर्नियल ट्रांसप्लांट सर्जरी करवाने की आवश्यकता पड़ती है।