मल्टीपल माइरोमा बोन मैरो कैंसर का एक ऐसा प्रकार है, जिसका इलाज फिलहाल उपलब्ध नहीं है। इस कंडीशन में हड्डियों में अनेक छेद (पर्फोरेटिड बोन) हो जाते हैं, जिसके साथ जीना पीड़ित के लिए बहुत मुश्किल होता है। मल्टीपल माइरोमा होने के चलते हड्डियों में अनेकों छेद होने से पलंग पर पलटी मारने से भी उनके फैक्चर होने या टूटने का खतरा बढ़ जाता है। शोधकर्ताओं ने इसकी वजह और संभावित इलाज का पता लगाने की कोशिश की है। खबर है कि नॉर्वे की नॉर्विजियन यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी के वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि कुछ विशेष प्रकार के शुगर की कमी बोन मैरो कैंसर के साथ-साथ बोन पर्फोरेशन यानी हड्डियों में छेद होने की समस्या का कारण हो सकते हैं और इनकी उचित मात्रा इस समस्या को धीमा कर सकती है। इन विशेषज्ञों ने चूहों पर किए अध्ययन के आधार पर यह दावा किया है। इस अध्ययन के परिणाम मेडिकल पत्रिका 'ब्लड' में प्रकाशित हुए हैं।

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बोन मैरो या अस्थि मज्जा एक स्पंजी ऊतक है, जो शरीर की लंबी हड्डियों में पाया जाता है, जैसे जांघ और कूल्हे की हड्डी। इस टिशू में मौजूद स्टेम सेल्स कई प्रकार की रक्त कोशिकाएं बनाने के लिए जिम्मेदार होते हैं। इनमें श्वेत रक्त कोशिका, लाल रक्त कोशिका और प्लेटलेट्स जैसी महत्वपूर्ण सेल्स शामिल हैं। इन स्टेम सेल्स में होने वाले कैंसर को बोन मैरो कैंसर कहा जाता है। ल्यूकेमिया और मल्टीपल माइलोमा बोन मैरो कैंसर के दो प्रकार बताए जाते हैं। ल्यूकेमिया में श्वेत रक्त कोशिकाओं की संख्या असामान्य तरीके से बढ़ती है। वहीं, मल्टीपल माइलोमा में प्लाज्मा सेल्स (श्वेत रक्त कोशिकाओं का एक प्रकार) का स्तर असामान्य हो जाता है। इस कंडीशन की मुख्य वजह का अभी तक पता नहीं चल पाया है। जानकार इतना जरूर बताते हैं कि अगर परिवार में किसी को मल्टीपल माइलोमा रहा हो तो इससे अन्य अगली पीढ़ी को भी यह बीमारी होने का खतरा बढ़ जाता है। पुरुषों और 35 साल से ज्यादा उम्र के लोगों पर यह खतरा ज्यादा होता है।

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क्या कहता है अध्ययन?
मेडिकल विशेषज्ञ बताते हैं कि मानव हड्डियां लगातार नष्ट और पुनर्निर्मित होती रहती हैं। यह काम ऑस्टियोक्लास्ट और ऑस्टियोब्लास्ट नामक दो विशेष सेल्स द्वारा किया जाता है। हड्डियों के नष्ट और बनने की प्रक्रिया को बोन रीमॉडलिंग कहा जाता है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि हड्डियों का स्वास्थ्य अच्छा बना रहे। लेकिन मल्टीपल माइलोमा होने पर ऑस्टियोक्लास्ट यानी हड्डियों को खाने वाली कोशिकाओं की संख्या बहुत ज्यादा बढ़ जाती है। इससे बोन रीमॉडलिंग प्रक्रिया का संतुलन बिगड़ जाता है। इसके चलते बोन लॉस और हड्डी कमजोर होने की समस्या सामने आती है। साथ ही, मल्टीपल माइलोमा के चलते प्लाज्मा सेल्स में एक ही प्रकार के एंटीबॉडी का प्रॉडक्शन जरूरत से ज्यादा होने लगता है। हालांकि ये एंटीबॉडी शरीर को संक्रमणों से नहीं बचाते और केवल बॉडी स्पेस को ज्यादा घेरने का काम करते हैं।

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अध्ययन में शोधकर्ताओं ने बोन पर्फोरेशन और नॉन-बोन पर्फोरेशन वाले मल्टीपल माइलोमा मरीजों के शरीर से एंटीबॉडी निकाले और उन्हें हड्डियों को खाने वाली कोशिकाओं में मिलाया। इस प्रयोग में उन्होंने पाया कि जब ऑस्टियोक्लास्ट की कोशिकाएं बोन पर्फोरेशन वाले मरीजों के एंटीबॉडी के संपर्क में आईं तो वे और ज्यादा बढ़ गईं। लेकिन बिना बोन पर्फोरेशन वाले मरीजों के एंटीबॉडी के साथ संपर्क में आने पर ऐसा नहीं हुआ। यह भी पता चला कि बोन लॉस वाले मरीजों की हड्डियों में दो प्रकार के शुगर - गैलेक्टोज और सिएलिक एसिड - की कमी थी। इन शुगर का संबंध हड्डियों की कमजोरी से है या नहीं, यह जानने के लिए वैज्ञानिकों ने चूहों पर परीक्षण किए। उन्हें अलग-अलग प्रकार के शुगर वॉटर (शर्करा जल) दिए गए। इनमें से केवल एक वॉटर से बोन लॉस की समस्या कम होने की अपेक्षा की गई थी। शोधकर्ताओं ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि उनकी यह अपेक्षा गलत साबित नहीं हुई। उनके द्वारा तैयार शुगर वॉटर सलूशन या घोल से न सिर्फ बोन पर्फोरेशन में कमी आई, बल्कि (बोन मैरो) कैंसर का बढ़ना भी कम हो गया। वे अब अगले चार-पांच साल क्लिनिक ट्रायलों के तहत इस घोल को आजमाने की योजना बना रहे हैं।

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