कोविड-19 महामारी के दौर में लाखों लोग जहां कोरोना वायरस से संक्रमित होने के चलते आइसोलेशन में रह रहे हैं। एकाकीपन की यह अवधि ज्यादा बड़ी संख्या में लोगों में डर, चिंता और अवसाद की वजह बन रही है और वे समाज-परिवार से अलग-थलग पड़ गए हैं। हाल में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कई बार कहा है कि इस वैश्विक महामारी के चलते दुनियाभर में डिप्रेशन और एंग्जाइटी के मामले वैश्विक मानसिक संकट के रूप में उभर कर आएंगे, जिसके लिए सरकारों को अभी से तैयारी करनी होगी। क्लिनिकल अध्ययन बताते हैं कि चिंता और अवसाद के कारण हमारे शरीर में अस्थि खनिज घनत्व (बोन मिनरल डेंसिटी) में कमी हो जाती है। अब एक नए अध्ययन में बताया गया है कि ज्यादा समय तक आइसोलेशन में जाने के चलते ऐसे लोगों को बोन लॉस या हड्डियां कमजोर होने की समस्या का सामना करना पड़ सकता है।

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चीन की अकेडमी साइंसेज के शेंजान इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस टेक्नोलॉजी और अन्य सहयोगियों ने इस सवाल का जवाब ढूंढने की कोशिश की है कि आखिर कैसे एंग्जाइटी और डिप्रेशन हमारी हड्डियों में जरूरी खनिज की कमी कर सकते हैं। इन वैज्ञानिकों ने मस्तिष्क के अगले भाग से लेकर हाइपोथेलिमस के बीच एक सेंट्रल न्यूरल सर्किट का पता लगाया है, जो पेरिफेरल सिम्पथैटिक नर्वस सिस्टम के जरिये दीर्घकालिक तनाव से होने वाले बोन लॉस में हस्तक्षेप की भूमिका निभाता है। यह जानकारी इस महीने जर्नल ऑफ क्लिनिकल इनवेस्टिगेशन नामक मेडिकल पत्रिका में प्रकाशित हुई है। 

अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पाया है कि आइसोलेशन यानी अलग रहना चिंता के स्तर को बढ़ाता है, जिसके चलते इन्सानों में बोन लॉस की समस्या देखने को मिल सकती है। इस संबंध में बायोकेमिकल विश्लेषण बताता है कि ज्यादा समय तक आइसोलेट होकर रहने से शरीर में मौजूद एक प्राकृतिक केमिकल नॉरेपिनेफ्रिन की मात्रा बढ़ती है और सीरम में ऑस्टियोजेन मार्कर्स की संख्या घटती है। ज्यादा एंग्जाइटी और बोन फॉर्मेशन में आई कमी के निरीक्षण के दौरान शरीर में इस तरह के बदलाव लगातार देखे गए हैं।

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आइसोलेशन से हड्डियों को होने वाले इस नुकसान के दावे को सही साबित करने के लिए वैज्ञानिकों ने चूहों पर आधारित अध्ययन मॉडल का इस्तेमाल किया। इसमें चूहों को हल्के दीर्घकालिक तनाव से इस तरह प्रभावित किया गया कि जिसका अनुमान लगाना मुश्किल होता है। चार से आठ हफ्तों में चूहों में एंग्जाइटी से जुड़ा उल्लेखनीय व्यवहार देखने को मिला। दूसरे समूह के चूहों, जिन्हें आइसोलेशन में नहीं रखा गया था, के बोन मिनरल डेंसिटी के मुकाबले इन चूहों में इसकी काफी कमी हो गई थी। वैज्ञानिकों के मुताबिक, इससे तनाव से होने वाली एंग्जाइटी और बोन लॉस के आपस के संबंध की पुष्टि हुई है।

बोन लॉस क्या है?
हमारे हड्डियां कॉलेजन नामक प्रोटीन से बनी होती हैं, जोकि अस्थि के लिए एक लचीला फ्रेमवर्क में बना होता है। हड्डी में कैल्शियम फोस्फेट और कैल्शियम कार्बोनेट भी होता है। साथ ही कई खनिज होते हैं जो हड्डियों को ताकत और मजबूती देते हैं। कैल्शियम और कॉलेजन के मिश्रण से हड्डी को मजबूती और फ्लेक्सिबिलिटी मिलती है। हड्डी का लचीलापन इसे टूटने से बचाता है और कैल्शियम इसे मजबूत करता है। वहीं, हड्डी भी कैल्शियम के भंडारगृह की तरह काम करती है। यह बहुत कम लोग जानते हैं कि शरीर का 99 प्रतिशत कैल्शियम हड्डियों और दांतों में ही होता है। बाकी का कैल्शियम रक्त में मिल जाता है।

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पुरानी हड्डी के सोखने की क्षमता और नई हड्डी बनने के पीछे कई फैक्टर काम करते हैं। इनमें से कुछ पर लोगों का नियंत्रण होता है, जिनका संबंध आहार से है। लेकिन कुछ चीजें नियंत्रण में नहीं होती, जैसे कि बढ़ती उम्र। बताया जाता है कि 30 साल की उम्र के बाद नए बोन फॉर्मेशन की प्रक्रिया धीमी होने लगती है। इससे आगे चलकर बोन लॉस या हड्डियां कमजोर होने की शुरुआत होती है। आहार में कैल्शियम की कमी, एक्सरसाइज न करना और विशेष प्रकार की दवाएं (जैसे कॉर्टिकोस्टेरॉयड) लेने से यह समस्या बढ़ सकती है।

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