भारत समेत दुनियाभर में पार्किंसन की बीमारी से परेशान लाखों मरीजों के लिए नई उम्मीद जगी है। देश की राजधानी दिल्ली में एक प्रोफेसर ने एक ड्रग मॉलिक्यूल की खोज की है, जिसे पार्किंसन के इलाज की दिशा में महत्वपूर्ण माना जा रहा है। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, दिल्ली यूनिवर्सिटी (डीयू) के रसायनशास्त्र विभाग के प्रोफेसर डीएस रावत और उनकी टीम ने इस ड्रग मॉलिक्यूल को खोजा है। गौरतलब है कि पार्किंसन का अभी तक कोई इलाज नहीं ढूंढा जा सका है। दुनियाभर में इस बीमारी से करीब एक करोड़ लोगों को कई तरह की दिक्क्तों का सामना करना पड़ता है।

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दवा का हुआ प्री-क्लीनिकल ट्रायल
खबरों के मुताबिक, प्रोफेसर डीएस रावत और उनकी टीम से जुड़े लोग पिछले आठ सालों से इस मॉलिक्यूल पर काम कर रहे थे। बताया जा रहा है कि उनके द्वारा खोजे गए ड्रग मॉलिक्यूल का प्री-क्लीनिकल ट्रॉयल पूरा हो चुका है। आगे के रिसर्च के लिए दवा को एक अमेरिकन फार्मा कंपनी को भेजा गया है। उम्मीद जताई जा रही है कि बाकी का अध्ययन जल्दी ही पूरा जाएगा और दवा बाजार में उपलब्ध होगी।

मलेरिया के लिए भी बना चुके हैं दवा
प्रोफेसर डीएस रावत ने बताया कि इससे पहले उन्होंने और उनकी टीम ने मलेरिया के लिए भी दवा बनाई थी। इस संबंध में उनके शोध को साल 2012 में एसीएस मेडिसिनल केमिस्ट्री लेटर में प्रकाशित भी किया गया था।

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वहीं, 1987 में भी उनकी एक और रिपोर्ट प्रकाशित हुई थी। उसमें बताया गया था कि मलेरिया के इलाज में क्लोरोक्यूनिस दवा का इस्तेमाल किया जाता है, जिसे पार्किंसन बीमारी में भी प्रयोग किया जा सकता है। प्रोफेसर रावत बताते हैं, 'उस समय इस पर किसी ने काम नहीं किया। हालांकि हमारे कम्पाउंड मलेरिया के इलाज में इस्तेमाल हो रहे क्लोरोक्वीन से बेहतर थे। इसी को आधार बनाकर हम आगे बढ़े।'

क्या है पार्किंसन बीमारी?
पार्किंसन रोग तंत्रिका तंत्र यानी नर्वस सिस्टम में तेजी से फैलने वाला एक डिसऑर्डर है, जो व्यक्ति की गतिविधियों को प्रभावित करता है। यह शरीर में धीरे-धीरे विकसित होता है। मेडिकल विशेषज्ञों के मुताबिक, यह रोग कभी-कभी केवल एक हाथ में होने वाले कम्पन से शुरू होता है, लेकिन जब कंपकंपी सबसे मुख्य संकेत बन जाती है तो यह विकार अकड़न या धीमी गतिविधियों का कारण भी बन सकता है।

पार्किंसन बीमारी के लक्षण
इस बीमारी के लक्षण और संकेत हर व्यक्ति में अलग-अलग हो सकते हैं। शुरुआती संकेत कम हो सकते हैं, जैसे।

पार्किंसन बीमारी में कैसे प्रभावित होता है शरीर
पार्किंसन में व्यक्ति का शरीर कई तरह से प्रभावित होता है। इस रोग के दौरान मस्तिष्क में मौजूद कुछ तंत्रिका कोशिकाएं धीरे-धीरे खराब होने लगती हैं और बाद में नष्ट हो जाती हैं। इस समस्या की जानकारी देते हुए myUpchar से जुड़ीं डॉक्टर अर्चना निरूला ने बताया कि हमारे दिमाग में एक 'डिपामाइन' नामक हार्मोन होता है, जो कि तंत्रिका तंत्र और दिमाग के बीच संदेश भेजने का काम करता है। इसके चलते ही हम गतिविधियों को ठीक प्रकार कर पाते हैं। लेकिन पार्किंसन बीमारी के समय मस्तिष्क में मौजूद न्यूरॉन्स मर जाते हैं, जिसके कारण डिपामाइन हार्मोन का स्तर कम हो जाता है। इससे मस्तिष्क तक संदेश भेजने वाली प्रक्रिया में रुकावट आने लगती हैं, जिससे यह समस्या आती है।

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कैसे करें बचाव
डॉक्टर अर्चना बताती हैं कि सामान्य तौर पर यह बीमारी एक निश्चित आयु यानी 60 वर्ष के व्यक्ति को प्रभावित करती हैं। वहीं, अगर बचाव की बात करें तो ऐसा कोई विकल्प मौजूद नहीं है, लेकिन जीविन शैली में सकारात्मक परिवर्तन के जरिए समय से पहले इस बीमारी को रोका जा सकता है। इसके लिए हेल्दी डाइट लें और नियमित रूप से व्यायाम करें। इसके अलावा यह बीमारी आनुवंशिक रूप से भी हो सकती है। इसलिए शारीरिक परीक्षण के जरिये इसका पता लगाकर भविष्य में इससे बचा जा सकता है।

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