मानव शरीर की रचना को समझने में सदियों का समय लगा है। तब जाकर इसमें मौजूद ऑर्गन और 200 से ज्यादा हड्डियों का पता चला है। लेकिन इतने लंबे वक्त की वैज्ञानिक छानबीन के बाद भी लगता है कि अभी हमारे शरीर में और भी कुछ खोजा जाना बाकी है। दरअसल, नीदरलैंड के वैज्ञानिकों ने मानव शरीर में दो लंबे सालिवरी ग्लैंड यानी लार-ग्रंथि की खोज करने का दावा किया है। अभी तक 'अनजान' रहे ये ऑर्गन गले के उसे हिस्से के पास मिले हैं, जहां नेजल कैविटी मिलती है। यह जगह खोपड़ी के निचले हिस्से के बीचोंबीच स्थित है। प्रतिष्ठित अमेरिकी अखबार दि न्यूयॉर्क के मुताबिक, अगर इस जानकारी की पुष्टि होती है तो लार (या थूक) के स्रोत के रूप में इन ग्रंथियों की खोज करीब 300 सालों में अपनी तरह का पहली शिनाख्त होगी।

शरीर रचना (एनेटमी) की कोई भी आधुनिक किताब तीन प्रकार की लार ग्रंथियों के बारे में बताती है। एक कान के पास, दूसरी जबड़े से नीचे वाली और तीसरी जीभ के नीचे पाई जाती है। लेकिन अब नीदरलैंड कैंसर इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों का कहना है कि इन ग्रंथियों की संख्या चार हो सकती है। एनवाईटी के मुताबिक, इस खोज से जुड़ा अध्ययन हाल में मेडिकल पत्रिका रेडियोथेरेपी एंड ऑन्कोलॉजी में प्रकाशित हुआ है। इसमें अध्ययन के एक शोधकर्ता और सर्जन डॉ. मैथिज वॉल्सटर का कहना है, 'अब हमें लगता है कि एक चौथा सालिवरी ग्लैंड भी है।'

उधर, अन्य मेडिकल विशेषज्ञ और शोधकर्ता इस अध्ययन के सैंपल साइज के छोटे होने का हवाला देते हुए परिणामों पर सीधे यकीन करने से बच रहे हैं। कुछ वैज्ञानिक परिणामों पर यकीन करने के बजाय हैरानी जताते हैं। लेकिन डॉ. वॉल्सटर और उनके सहयोगी इन परिणामों को लेकर आश्वस्त नजर आते हैं। उनका मत है कि इनके आधार पर अज्ञात आंतरिक मानव अंगों यानी सालिवरी ग्लैंड्स को लेकर शोध तो होना ही चाहिए। वे ऑन्कोलॉजी की प्रैक्टिस करने वाले डॉक्टरों और शोधकर्ताओं के लिए इसे महत्वपूर्ण मानते हैं। रेडिएशन थेरेपी करते समय डॉक्टर इसका खास ख्याल रखते हैं कि इलाज के दौरान ग्लैंड डैमेज न हों। अगर एक भी स्टेप गलत हो जाए तो इससे इनके नाजुक ऊतकों को नुकसान हो सकता है।

डॉ. वॉल्सटर और उनके सहयोगी शोधकर्ताओं को इन ग्लैंड का तब पता चला जब वे मशीन की मदद से कुछ मृत कैंसर पीड़ितों के स्कैन सैंपलों की जांच कर रहे थे। यह मशीन ज्यादा विस्तृत जानकारी के साथ ऊतकों को विजुलाइज कर सकती है। स्कैनिंग सैंपलों को ध्यान से देखते हुए शोधकर्ताओं ने नोटिस किया कि दिमाग के बीचोंबीच दो 'अज्ञात स्ट्रक्चर' मौजूद हैं। ये दोनों स्ट्रक्चर पतले और कुछ इंच लंबे थे और उन ट्यूब के साथ लटके हुए थे, जो कान को गले से जोड़ती हैं। इस बनावट ने वैज्ञानिकों को उलझन में डाल दिया। ऐसे इनके बारे में जानने के लिए उन्होंने ऊतकों को शवों से अलग किया। गहन जांच करने पर पता चला कि इन ऊतकों के ग्लैंड बोर जीभ के नीचे स्थित सालिवरी ग्लैंड से मिलते हैं। ये नए ग्लैंड लंबी खाली नलियों से जुड़े थे। इससे यह शोधकर्ताओं को संकेत गया कि शायद ये ग्लैंड नलियों में तरल पदार्थ भरने का काम कर रहे थे। 

शोध में शामिल नीदरलैंड कैंसर इंस्टीट्यूट के रेडिएशन ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ. वाउटर वोगल बताते हैं, 'यह पता नहीं चल पाया है कि ये ग्लैंड अपनी रचना के साथ कैसे छिपे रहे। इनकी लोकेशन तक आसानी से पहुंचना मुश्किल है। इसके लिए आपको काफी सेंसिटिव इमेजिंग की जरूरत है।' शरीर में मौजूद बाकी सालिवरी ग्लैंड त्वचा के नजदीक स्थित होती हैं। उन्हें आसानी से ढूंढा और निकाला जा सकता है। चौथे ग्लैंड पेयर के साथ ऐसा करना काफी मुश्किल है। ये ग्रंथियां खोपड़ी के निचले हिस्से में सिकुड़ी हुई अवस्था में हैं। बहरहाल, इन ग्लैंड की खोज से जुड़े परिणाम रेडिएशन थेरेपी के लिहाज से किस प्रकार महत्वपूर्ण हैं, इस पर बात करते हुए डॉ. वोगल कहते हैं, 'शायद इससे यह पता चल सके कि सिर और गर्दन के कैंसर के इलाज में रेडिएशन थेरेपी देने से मरीजों का मुंह हमेशा सूख क्यों जाता है और निगलने से जुड़ी समस्याएं सामने आती हैं। (क्योंकि) इन अज्ञात ग्लैंड्स के बारे में डॉक्टरों को नहीं पता था।'

लेकिन इन बातों से सभी अन्य विशेषज्ञ सहमत नहीं हैं। अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ पिनसेल्वेनिया के रेडियोलॉजिस्ट डॉ. अलवंद हसनखानी इन अज्ञात ग्लैंड्स को सीधे 'नए ऑर्गन' मानने से हिचकते हैं। पहले से ज्ञात तीन सालिवरी ग्लैंड का जिक्र करते हुए वे कहते हैं, 'छोटी-छोटी कोई 1,000 सालिवरी ग्लैंड मुंह और गले वाले हिस्से में छितरी (फैली) हुई होती हैं। वे काफी पतली होती हैं। भारी ग्लैंड की अपेक्षा उन्हें स्कैनिंग या इमेजिंग से ढूंढना बहुत मुश्किल होता है। हो सकता है डच शोधकर्ताओं ने तस्वीरें लेने के बेहतर तरीके से इन्हीं छोटी-छोटी ग्लैंड्स का पता लगाया हो।' 

डॉ. हसनखानी के अलावा रटगर्स यूनिवर्सिटी की पैथोलॉजिस्ट डॉ. वलेरी फिट्जहग और ड्यूक यूनिवर्सिटी में रेडिएशन ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ. योने मोवेरी भी कहती हैं कि एक ही क्लिनिकल डेटा इस तरह का दावा करने का पर्याप्त आधार नहीं हो सकता है। उनका कहना है कि वे इस विषय पर और आंकड़ों के आने का इंतजार करेंगी। डॉ. फिट्जहग का कहना है कि जिन कैंसर मरीजों को अध्ययन में शामिल किया गया था, उनमें आबादी के लिहाज से ज्यादा विविधता नहीं थी। लगभग सभी लोग प्रोस्टेट कैंसर या यूरेथ्रल ग्लैंड कैंसर के मरीज थे और 100 लोगों के समूह में केवल एक महिला शामिल थी। हालांकि डॉ. फिट्जहग और डॉ. मोवेरी, डॉ. वॉल्सटर और उनके सहयोगी वैज्ञानिकों की खोज को खारिज नहीं कर रही हैं।

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