अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का भारत दौरा दोनों देशों के चिकित्सा क्षेत्र के लिहाज से महत्वपूर्ण माना जा रहा है। मंगलवार को राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच कई मुद्दों पर बातचीत हुई जिसमें हेल्थ सेक्टर प्रमुख रूप से शामिल रहा। खबरों के मुताबिक, बैठक में दोनों नेताओं ने मेडिकल क्षेत्र में साथ-साथ काम करने को लेकर सहमति जताई। बताया गया है कि इस दौरान जेनेरिक दवाओं और मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने पर समझौता हुआ है।

भारत में मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं बड़ी चिंता के रूप में उभर कर आई हैं। ऐसे में अमेरिका से हुए समझौते के चलते इस चिंता से उबरने में मदद मिल सकती है। मीडिया रिपोर्टों में बताया गया है कि इस समझौते के तहत भारत को अमेरिका में मानसिक स्वास्थ्य को लेकर हो रहे अध्ययनों और चिकित्सा अनुभवों से काफी कुछ सीखने को मिल सकता है। इससे यहां के चिकित्सकों को यह जानने को मिलेगा कि अमेरिका ने कैसे अपने यहां मेंटल हेल्थ के इलाज को बेहतर बनाया है। 

(और पढ़ें - सुप्रीम कोर्ट के छह जज स्वाइन फ्लू से पीड़ित)

भारत में मानसिक विकार के कितने मामले?
स्वास्थ्य के क्षेत्र से जुड़ी जानी-मानी पत्रिका 'द लांसेट' में प्रकाशित एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, बीते तीन दशकों में भारत में मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े मामलों में तीन गुना वृद्धि हुई है। रिपोर्ट से पता चलता है कि 1990 में जहां मानसिक विकार के मरीजों में तीन प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई, वहीं साल 2013 आते-आते यह दर छह प्रतिशत तक हो गई है। इसके अलावा, मानसिक विकार से जुड़े 80 प्रतिशत मामलों का पता ही नहीं चलता, क्योंकि अधिकतर लोग इन विकारों की रिपोर्ट दर्ज नहीं कराते और न ही इलाज करवाना जरूरी समझते हैं।

भारतीय जेनेरिक दवाओं को अमेरिकी बाजार में मिलेगी जगह
बहरहाल, भारत-अमेरिका के बीच हुए 'समझौता पत्र' के तहत दवाओं की बिक्री को लेकर भी फैसला लिया गया है। इसके मुताबिक, अब भारतीय जेनेरिक दवाओं को अमेरिका के बाजार में जगह मिलेगी। इससे वहां भारतीय जेनेरिक दवाओं के व्यापार को बढ़ावा मिलेगा। साथ ही भारत में मानसिक स्वास्थ्य को लेकर अपनाई जा रही पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों और दवाइयों का भी प्रसार किया जा सकेगा।

दरअसल वैश्विक स्तर पर देखा जाए तो अमेरिकी में जेनेरिक दवाओं का बड़ा बाजार है। वहीं, भारत उन शीर्ष देशों में शामिल है, जहां सबसे ज्यादा जेनेरिक दवाओं का उत्पादन होता है। इस समझौते के बाद कहा जा रहा है कि इससे भारतीय जेनेरिक दवाएं को अमेरिका के बाजार में बढ़ावा तो मिलेगा ही, साथ ही साथ भारतीय उपभोक्ताओं को भी इससे फायदा होगा।

(और पढ़ें- वैज्ञानिकों ने खून की एक बूंद से कैंसर बायोमेकर्स की पहचान करने वाला नैनोसेंसर विकसित किया)

जेनेरिक दवाएं क्या होती हैं?

किसी भी बीमारी का इलाज ढूंढने के लिए वैज्ञानिक और शोधकर्ता तमाम तरह के शोध और अध्ययन करते हैं। तब जाकर एक रसायन (साल्ट) तैयार होता है। यह साल्ट लोगों तक आसानी से पहुंचे, इसलिए इसे दवा की शक्ल दी जाती है। दवा की शक्ल मिलने के बाद इस साल्ट को फार्मास्यूटिकल कंपनियां अलग-अलग नामों से बेचती हैं। लेकिन जिस साल्ट से दवा बनी है, उसका जेनेरिक पूरी दुनिया में वही रहता है। मिसाल के लिए सिल्डेन्फिल, जो पूरी दुनिया में वायग्रा के नाम से मशहूर है।

भारत में बढ़गी एपिडेमियोलॉजी और लेबोरेटरी की क्षमता
गौरतलब है कि भारत और अमेरिका के बीच कैंसर को लेकर काफी रिसर्च पहले से हो रहा है। साथ ही, इस बीमारी के बचाव और रोकथाम के लिए भी सहयोग के स्तर पर काफी काम किया जा रहा है। नए समझौते के तहत इसी क्रम में भारत में ग्लोबल डिजीज डिटेक्शन की स्थापना की जाएगी ताकि इसके संलाचन से एपिडेमियोलॉजी और लेबोरेटरी की क्षमता और उसकी ताकत को बढ़ाया जा सके।

(और पढ़ें- पांच साल पहले गर्भवती हुई महिला ने ब्रेस्ट कैंसर के चलते अब दिया बच्चे को जन्म, जानें कैसे)

ऐप पर पढ़ें
cross
डॉक्टर से अपना सवाल पूछें और 10 मिनट में जवाब पाएँ