राजस्थान में कोटा का जेके लोन अस्पताल, मासूम बच्चों के लिए वरदान कम और श्मशान ज्यादा बना गया है। सुनिश्चित व्यवस्थाओं के अभाव के चलते अब तक 111 बच्चों की मौत हो चुकी है। हैरानी की बात तब है जब यह अस्पताल विशेष रूप से नवजात बच्चों के लिए बना है। बावजूद इसके अस्पताल में मासूमों की मौत का सिलसिला बदस्तूर जारी है।

हालांकि, मौत के कारणों को खंगालने बैठे तो तमाम जांच और मेडिकल रिपोर्ट में ठंड को इसके लिए दोषी ठहराया गया, लेकिन क्या सिर्फ ठंड की वजह से एक अस्पताल में इतन बच्चों की मौत होना संभव है?

राजस्थान की गहलोत सरकार की रिपोर्ट में (जांच कमेटी) पता चलता है कि अस्पताल, सुविधाओं के नाम पर शून्य था। अस्पताल में नवजात बच्चों को रखने के लिए भी पर्याप्त जगह नहीं थी। इसके अलावा अन्य रिपोर्ट बताती है कि अस्पताल की स्थिति खंडहर जैसी है। आंकड़ों के आधार पर देखें तो जेके लोन अस्पताल में आश्वयक मशीनों में से 60 प्रतिशत काम करने की स्थिति में ही नहीं थीं।

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इसके अलावा, अस्पताल में ऑक्सीजन की सप्लाई सेंट्रलाइज होनी चाहिए, लेकिन जेके लोन अस्पताल में सिलेंडर के जरिए बच्चों को ऑक्सीजन दिया जा रहा था। 12 बेड पर 25 बच्चों का इलाज किया जा रहा था। मतलब एक बेड पर दो या उससे अधिक बच्चों को इलाज, यानि संभव है कि ऐसी स्थिति में इंफेक्शन (संक्रामक) का जोखिम बढ़ सकता है। शायद इस तरह से सरकार की लापरवाही और अस्पताल प्रशासन की बदइंतजामी बच्चों की मौत का कारण हो सकती है।

डॉक्टर की राय
myUpchar से जुड़ी डॉक्टर शहनाज जफर के मुताबिक, चूंकि एनआईसीयू (नवजात की देखभाल की जगह) एक संवेदनशील जगह है। ऐसी जगह पर बच्चों को इस तरीके (एक बेड पर दो या 3 बच्चे) से रखना एक प्रकार से संक्रामक बीमारियों को बढ़ाता है, जो एक वजह हो सकती है। इसके अलावा कई अन्य वजहें हो सकती हैं, जो बच्चों की मौत का कारण बनी होंगी, जैसे-

  • ठीक ढंग से ऑक्सीजन की व्यवस्था ना होना
  • नोसोकॉमियल इंफेक्शन (अस्पताल से बच्चों को होने वाला संक्रमण)
  • अस्पताल में साफ-सफाई का ना होना
  • अस्पताल में जरूरी मशीनों की कमी (जैसे- लाइफ सेविंग ड्रग्स, एंडोट्रैकियल ट्यूब और एम्बु बैग)

नोसोकॉमियल इंफेक्शन
दरअसल, एनआईसीयू के अंदर गंभीर स्थिति के बच्चों को रखा जाता है। अगर ऐसी जगह पर जरूरी मशीनों और कुछ दवाओं की कमी है तो यह एक बड़ी वजह हो सकती है। इसके अलावा डॉक्टर शहनाज बताती है कि बच्चों में नोसोकॉमियल इंफेक्शन भी मृत्यु का कारण हो सकता है। दरअसल नोसोकॉमियल इंफेक्शन, बच्चों में अस्पताल के जरिए फैलने वाला एक संक्रमण है। यह एनआईसीयू में फैली गंदगी के कारण नवजात बच्चों में फैल सकता है।

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एनआईसीयू में अधिक देखभाल की जरूरत
डॉक्टर शहनाज जफर बताती हैं कि अस्पताल में और विशेषकर एनआईसीयू में सेंट्रलाइज ऑक्सीजन सप्लाई होती है और यह बेहतर इलाज के लिए जरूरी है, लेकिन जैसा कि रिपोर्ट से पता चला है कि कोटा के जेके लोन अस्पताल में सेंट्रल ऑक्सीजन लाइन नहीं है, जिससे बच्चों को बेहतर या जरूरी इलाज नहीं मिल पाया।

डॉक्टर के मुताबिक आईसीयू में सभी तरह की व्यवस्थाओं का होना जरूरी है, क्योंकि मरीजों को अत्यधिक देखभाल की आवश्यकता होती है। इस स्थिति में 15 से 30 मिनट के बीच मरीज के ब्लड प्रेशर (बीपी) बॉडी टेम्परेचर और ऑक्सीजन लेवल की जांच की जाती है। अगर ऐसी जगह पर व्यवस्थाओं की कमी है तो यह एक चिंता का विशेष है।

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कुल मिलाकर रिपोर्ट के आधार पर देखा जाए तो जेके लोन अस्पताल की व्यवस्था बेहद खराब थी, जहां बच्चों का इलाज किया जा रहा था। अस्पताल में इलाज संबंधी सामान का उपलब्ध ना होना मासूमों की जान पर भारी पड़ा, जो सौ से अधिक बच्चों की मौत का संभव कारण हो सकता है।

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