कुत्तों में पेट फूलने की समस्या आम है। उम्र बढ़ने के साथ यह समस्या कुत्तों में अधिक देखने को मिलती है। यह समस्या कई बार खतरनाक रूप भी ले लेती है, जो मौत का कारण भी बन सकती है। कुत्तों के पेट में अधिक हवा इकट्ठा हो जाने के चलते यह समस्या होती है। हवा का दबाव कई बार इतना अधिक हो जाता है ​कि यह पेट के ऊतकों को भी क्षति पहुंचाना प्रारंभ कर देता है। पेट में अधिक मात्रा में हवा भर जाने की स्थिति में डायाफ्राम भी संकुचित होना शुरू हो जाता है, जो सांस लेने में समस्या पैदा करने लगता है। कई मामलों में देखने को मिलता है कि पेट में अधिक हवा के इकट्ठा हो जाने की स्थिति में रक्तस्राव भी प्रभावित होने लगता है। रक्त का थक्का जमना शुरू हो जाता है, जिसकी वजह से हृदय में आवश्यक मात्रा में रक्त पहुंच नहीं पाता है जो बड़ी समस्याएं उत्पन्न कर देता है।

यदि रक्त का परिसंचरण लंबे समय तक प्रभावित रहता है तो शरीर सदमें में जा सकता है। यदि समय रहते चिकित्सकीय देखभाल उपलब्ध नहीं हो तो यह मौत की वजह भी बन सकता है। आंकड़े बताते हैं कि जिन प्रभावित पशुओं को उपचार मिल भी जाता है, उनमें से भी 30 फीसदी को अपनी जान गंवानी पड़ सकती है।

  1. कुत्तों में पेट फूलने की समस्या के क्या हैं प्रमुख कारण - Kutto me Pet Foolne ki Samsya ke Pramukh Karan kya hain?
  2. कुत्तों में ब्लोटिंग की समस्या (जीडीवी) के लक्षण - Kutto me Pet Foolne ki Samsya (GDV) ke Lakshan
  3. कुत्तों में पेट फूलने की समस्या का इलाज - Kutto me Bloting ki Samasya ka Ilaaj
  4. कुत्तों में ब्लोटिंग की समस्या का निदान - Kutto me Pet Foolne ki Samsya ka Nidaan
  5. कुत्तों में पेट फूलने की समस्या का उपचार - Kutto me Bloting ki Samasya ka Upchar

यह विकार किन वजहों से होता है, इसके कारण स्पष्ट नहीं हैं। इस बारे में भी कोई स्पष्टता नहीं है कि पेट में मरोड़ इस समस्या की ओर इशारा करता है, लेकिन इसे पूरी तरह से नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।

  • ग्रेट डेंस और सेंट बर्नार्ड्स जैसी कुत्तों की प्रजातियों में पेट फूलने की बीमारी होने की समस्या अधिक रहती है।
  • कुल मिलाकर देखा जाए तो गहरी छाती और अधिक ऊंचाई वाले कुत्तों की प्रजातियों में इस बीमारी के होने की आशंका अधिक रहती है। इसका मतलब यह नहीं है कि छोटी नस्लों वाली प्रजातियां इससे पूरी तरह से सुरक्षित हैं। कई मामलों में चिहुआहुआ जैसी प्रजातियों में भी इस समस्याओं से ग्रसित पाई जाती हैं।
  • मादाओं की अपेक्षा नरों में इस बीमारी के होने का खतरा अधिक होता है, अधिक उम्र वालों में इसका खतरा सबसे ज्यादा होता है।
  • अब तक के मामलों के आधार पर कहा जा सकता है (हालांकि, यह निर्णायक नहीं है) कि जो कुत्ते दिन में केवल एक बार भोजन करते हैं साथ ही उनके भोजन में ठोस मात्रा की अधिकता होती है, वह इससे ज्यादा प्रभावित होते हैं। इसके साथ ही जल्दी-जल्दी भोजन करने और भोजन के तुरंत बाद खेलने वाले कुत्तों में भी इसका खतरा अधिक रहता है।
  • जीडीवी की समस्या आनुवंशिक भी देखी गई है। मतलब जिन कुत्तों के माता-पिता में कभी भी जीडीवी की समस्या रही हो, उनके बच्चों में भी इसके होने की आशंका बनी रहती है।
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कुछ लक्षणों को देखकर कुत्तों में इस गंभीर बीमारी की पहचान की जा सकती है। इस बीमारी में पशु काफी दर्द की स्थिति में होता है। पशु की शारीरिक प्रतिक्रियाओं से इसकी पहचान आसानी से की जा सकती हैं। आइए जानते हैं कि आखिर वह कौन से लक्षण हैं जो कुत्तों में यह गंभीर बीमारी होने की ओर संकेत देते हैं।

  • इस बीमारी में देखने को मिलता है कि कुत्ते के गले में जैसे कुछ फंसा हो, जिसे वह बार-बार निकालने की कोशिश करता है। हालांकि, वह उल्टी करने में सक्षम नहीं होगा।
  • पेट अपेक्षाकृत अधिक बढ़ जाता है। अगर पेट को छुआ जाए तो कठोरता का अनुभव होगा।
  • सांस का तेज चलना, हांफना।
  • बेचैनी
  • मुंह से भारी मात्रा में लार टपकना।

उपरोक्त लक्षणों की पहचान न होने और समय पर उपचार न मिलने की स्थिति में मौत का खतरा बढ़ जाता है। अगर आप देखें कि कुत्ते का पेट अचानक खराब हो गया है और वह परेशान दिख रहा है, तो उसे तुरंत डॉक्टर के पास ले जाएं। शीघ्र उपचार जीडीवी में महत्वपूर्ण है और देरी करना खतरनाक साबित हो सकता है।

यदि कुत्ते में पेट फूलने के लक्षण देखने को मिल रहे हैं तो सबसे पहले उसे पशु चिकित्सक के पास ले जाएं। जांच के बाद य​ह स्पष्ट हो जाएगा कि समस्या की मुख्य वजह क्या है? जल्दी उपचार शुरू हो जाने की स्थिति में बीमारी पर काबू पाना आसान होता है।

  • सबसे पहले चिकित्सक पशु के खून की जांच करता है। साथ ही एक्स-रे जैसे परीक्षण कर यह जानने का प्रयास करता है कि बीमारी की मुख्य वजह क्या है? चिकित्सक के लिए यह जानना भी आवश्यक होता है कि यह बीमारी आनुवंशिक तो नहीं है।
  • एक्स-रे में ब्लोट की समस्या स्पष्ट रूप से दिख जाती है। ब्लोट की समस्या के चलते आसपास के अंगों पर भी प्रभाव पड़ता नजर आता है। उपचार का पहला लक्ष्य पेट पर पड़ रहे दबाव को कम करना है।
  • इसके लिए गले में एक उपकरण डालकर पेट के भीतर पंप करने का प्रयास करते हैं। पेट में मरोड़ होने की​ स्थिति में उपकरण का पेट के भीतर जाना मुश्किल होता है। ऐसी स्थिति में चिकित्सक एक खोखली नली पेट में डालकर अंदर के दबाव को कम करने का प्रयास करता है।
  • यदि समस्या का कारण वॉल्वुलस (पेट या आंत के मरोड़ के कारण उत्पन्न समस्या) है तो इसमें आपातकालीन सर्जरी की आवश्यकता होती है। इसमें गैस्ट्रोपेक्सी नामक प्रक्रिया को प्रयोग में लाया जाता है, जो पेट में होने वाले मरोड़ को होने से रोकता है। यह प्रक्रिया आसान नहीं है, इसमें भी पेट के अंदर उतकों को क्षति पहुंचने का खतरा बना रहता है।
  • बीमारी के उपचार में देरी होने की स्थिति में कुत्ता सदमे में जा सकता है। सदमे का उपचार करना भी आवश्यक होता है। ऐसे में कोशिश की जाती है कि शरीर में तरल पदार्थों की मात्रा बनी रह सके। उपचार के दौरान कुत्ते को स्थिर अवस्था में रखना एक बड़ी चुनौती होती है।

आम तौर पर देखने को मिलता है कि बीमारी के उपचार के दौरान करीब 30 फीसदी कुत्तों की मौत हो जाती है। जो सर्जरी से बच जाते हैं, उन्हें गैस्ट्रोपेक्सी से उबरने में कई सप्ताह लग जाते हैं। सर्जरी के बाद चिकित्सक दर्द निवारक दवाओं और एंटीबायोटिक्स की सलाह देते हैं। कुत्ते को अधिक से अधिक आराम देने की सलाह दी जाती है। ऐसे खाद्य पदार्थ देने की सलाह दी जाती है जो पेट में गैस न बनाए और दबाव होने से रोकें।

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  • एक साथ भारी भोजन के स्थान पर समय-समय पर थोड़ा-थोड़ा खाना दें।
  • यह सुनिश्चित करें कि आपका कुत्ता पर्याप्त मात्रा में पानी पी रहा है।
  • खाना साफ सुथरे स्थान पर दें। यह सुनिश्चित करें कि कुत्ते के खाने के दौरान आसपास दूसरे कुत्ते मौजूद न हों।
  • घर के बना हुआ और तरल युक्त खाना ही दें।
  • बड़े नस्ल के कुत्तों को खाने से ठीक पहले और बाद में शारीरिक गतिविधि कराने से बचें।
  • ब्लोट के लक्षण दिखते ही उपचार के​ लिए चिकित्सक से मिलें
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