अगर बचपन में बच्चे को किसी तरह का सदमा लगे, कोई मानसिक आघात पहुंचें या फिर किसी तरह की विपरीत परिस्थितियों का सामना करना पड़े तो उस बच्चे को जीवनभर कार्डियोवस्कुलर यानी हृदय से जुड़ी बीमारियां और समय से पहले मौत का खतरा अधिक होता है। इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि उस पीड़ित बच्चे की वयस्क होने पर सेहत कितनी ही अच्छी क्यों न हो।  

जर्नल ऑफ द अमेरिकन हार्ट एसोसिएसन में प्रकाशित एक स्टडी में यह बात सामने आयी है। इस रिसर्च के मुताबिक वैसे बच्चे जिन्हें बचपन में कठिनाईयों और विपत्तियों का सामना करना पड़ा, फिर चाहे वह शाब्दिक दुर्व्यवहार जैसे- गाली-गलौज हो, शारीरिक दुर्व्यवहार जैसे- मारपीट हो या फिर भावनात्मक दुर्व्यवहार हो, वैसे बच्चों में जीवन में आगे चलकर हृदय से जुड़ी बीमारियां (कार्डियोवस्कुलर डिजीज) होने का खतरा 50 प्रतिशत अधिक था, उन बच्चों की तुलना में जिन्हें बचपन में किसी तरह के मानसिक आघात का सामना कम या नहीं करना पड़ा। 

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इतना ही नहीं वैसे बच्चे जिन्हें कम मानसिक आघात या सदमे का सामना करना पड़ा उन बच्चों में भी मिडिल अडल्टहुड यानी 20 से 40 साल की उम्र में मौत का खतरा 60 प्रतिशत अधिक था। अनुसंधानकर्ताओं की मानें तो वैसे लोग जिन्हें बचपन में गंभीर विपत्तियों का सामना करना पड़ता है उनके अंदर जैविक और स्वभाव से जुड़ी कई तरह की प्रतिक्रियाएं होती हैं जिन्हें अब तक पूरी तरह से समझा नहीं जा सका है। 

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3,600 लोगों पर की गई यह स्टडी अपने तरह की पहली स्टडी है जिसमें बचपन में पारिवारिक वातावरण और माहौल का वयस्क होने पर हृदय से जुड़ी बीमारी और मौत से क्या संबंध है इस बारे में बताया गया है। स्टडी की मानें तो वैसे लोग जिन्हें बचपन में किसी भी तरह का दुर्व्यवहार झेलना पड़ता है उन्हें जीवनभर स्ट्रेस रहता है, वे डिप्रेशन में चले जाते हैं, बेचैनी (ऐंग्जाइटी) महसूस करने लगते हैं और इससे बाहर निकलने के लिए कम उम्र में ही अनहेल्दी आदतें अपना लेते हैं जैसे- धूम्रपान करना, खान-पान की गलत आदतें आदि। इन सबकी वजह से हाई ब्लड प्रेशर, मोटापा, डायबिटीज और सूजन-जलन (इन्फ्लेमेशन) जैसी समस्याएं हो जाती हैं और फिर ये सारे जोखिम कारक मिलकर हृदय रोग (कार्डियोवस्कुलर डिजीज) का कारण बनती हैं।

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इस लॉन्ग टर्म स्टडी में हालांकि यह बात भी सामने आयी कि ऊपर बताए गए इन जोखिम कारकों (रिस्क फैक्टर्स) को कंट्रोल कर भी लिया जाए तब भी बचपन में मिले तनाव और आघात का असर इतना अधिक होता है कि मिडिल एज यानी 45 से 50 साल की उम्र का होते-होते उन लोगों में हृदय रोग और समय से पहले मौत का खतरा, उन लोगों की तुलना में अधिक होता है जिनका बचपन बिना किसी मानसिक आघात के बीतता है।

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शिकागो के नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी के फीनबर्ग स्कूल ऑफ मेडिसिन में फोर्थ ईयर मेडिकल स्टूडेंट जैकब पीयर्स इस स्टडी के मुख्य अनुसंधानकर्ता हैं और जैकब की मानें तो, 'बचपन में अगर बच्चे को किसी तरह का सदमा या मानसिक आघात लगे तो उनके लिए सही तरीके से तनाव को हैंडल करना मुश्किल हो जाता है। हमारी जांच इस बात को दिखाती है कि कई और रिस्क फैक्टर्स हैं जिन्हें हमने अपनी स्टडी में शामिल नहीं किया जो जीवन में बाद के सालों में हृदय से जुड़ी बीमारियां का कारण बनते हैं।'

स्टडी में शामिल सभी प्रतिभागियों की उम्र 18 से 30 साल के बीच थी और इन लोगों को करीब 30 साल तक फॉलो किया गया। स्टडी के दौरान यह बात सामने आयी कि इनमें से करीब 20 प्रतिशत प्रतिभागियों को बचपन में आघात का सामना करना पड़ा और जीवन में आगे चलकर उन्हें सेहत से जुड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ा। अमेरिका के बोस्टन स्थित हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के टी एच चैन स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के प्रफेसर कैरेस्टन सी कोनन कहते हैं, इस स्टडी के नतीजे इस बात को साबित करते हैं कि हृदय से जुड़ी बीमारियां (कार्डिवस्कुलर डिजीज) सिर्फ बुढ़ापे में होने वाली समस्या नहीं है बल्कि इसका संबंध बचपन से जुड़े अनुभवों से है। 

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यह जानने के लिए स्टडी में शामिल प्रतिभागियों का बचपन में पारिवारिक वातावरण कैसा था उनसे कई तरह के सवाल पूछे गए जैसे- बचपन में आपके माता-पिता या परिवार के किसी वयस्क सदस्य ने कितनी बार आपसे कहा कि वे आपसे प्यार करते हैं, आपकी केयर करते हैं और आपका समर्थन करते हैं? बचपन में आपके माता-पिता या परिवार के किसी और वयस्क सदस्य ने कितनी बार आपकी बेइज्जती की, आपके साथ गाली-गलौज की, आप पर हाथ उठाया या आपको डराया-धमकाया? 

कोनन कहते हैं, बचपन में विपत्तियों और कठिनाइयों की स्थिति और हृदय रोग के बीच क्या रिलेशन है इसे पारंपरिक रिस्क फैक्टर्स के साथ समझा जा सकता है। लेकिन इन सभी का मौत से क्या संबंध है इस बारे में स्पष्ट व्याख्या नहीं की गई है। ऐसा इसलिए है क्योंकि बचपन एक ऐसा समय होता है जब बच्चे के मस्तिष्क का विकास नाजुक स्थिति में होता है। ऐसे समय में अगर बच्चे को स्ट्रेस या तनाव का सामना करना पड़े तो मस्तिष्क में हार्मोन सक्रिय हो जाता है और इसका संबंध भी हृदय रोग (कार्डियोवस्कुलर डिजीज) से है। 

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इन सबके बीच बेहतर और विस्तृत अप्रोच के जरिए वैसे बच्चों का इलाज किया जा सकता है जिन्हें बचपन में मानसिक आघात से जुड़े अनुभवों का सामना करना पड़ा। इस बात के तो पुख्ता सबूत हैं कि बचपन में किसी भी तरह की विपत्ति या कठिनाई का वयस्क होने पर मानसिक सेहत पर बुरा असर पड़ता है लेकिन शारीरिक सेहत पर इसका क्या असर पड़ता है इस बारे में इस स्टडी में बताया गया है। स्टडी के नतीजे इस बात की ओर जरूर इशारा करते हैं कि बचपन में अगर माता-पिता की सहभागिता या हस्तक्षेप बच्चे की लाइफ में हो तो इसका उनके जीवन में बाद के सालों में कैसा असर होता है।

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