मेडिकल क्षेत्र के जानकार बताते हैं कि आंत (गट) और मस्तिष्क एक-दूसरे से निकटता के साथ कनेक्ट होते हैं। दिमाग में होने वाली कोई भी परेशानी (मसलन तनाव या चिंता) आंत को प्रभावित करती है। ऐसा होने पर आंत सिग्नल भेजकर मस्तिष्क को बताती है कि उसे परेशानी हो रही है। अब यूनाइटेड किंगडम की प्रतिष्ठित कैंब्रिज यूनिवर्सिटी और अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के वैज्ञानिकों ने अध्ययन के आधार पर कहा है कि वास्तव में गट माइक्रोब्स (आंत में मिलने वाले सूक्ष्म जीवाणु या बैक्टीरिया) ही होते हैं, जो इम्यून सिस्टम को प्रशिक्षित कर मस्तिष्क को संक्रमणों से बचाते हैं। यह नई जानकारी जानी-मानी मेडिकल पत्रिका नेचर में प्रकाशित हुई है।

हमारा दिमाग तीन प्रकार की झिल्लियों (मेम्ब्रेन) से घिरा हुआ है। इन्हें मेनिन्जीज (मस्तिष्कावरण) कहा जाता है, जो नुकसान पहुंचाने वाले माइक्रोब्स से मस्तिष्क को बचाने का काम लगातार करते रहते हैं। इसके अलावा, हमारा दिमाग उन रक्त वाहिकाओं से भी घिरा होता है, जिन्हें ब्लड-ब्रेन बेरियर द्वारा सील किया जाता है। यह सेमी-परमिएबल (प्रवेश योग्य) मेम्ब्रेन होती हैं, जो चुनिंदा विलेय पदार्थों को प्रवेश या आने देने की अनुमति देती है। वहीं, सबसे बाहरी मस्तिष्कावरण झिल्ली ड्यूरा मेटर में बड़े साइनस (एक प्रकार के छेद) होते हैं, जो रक्त को खून तक धीरे-धीरे पहुंचाते हैं। ये खुली जगहें और दिमाग से उनकी नजदीकी ही ड्यूरा मेटर को रोगाणुओं के खतरे में डालती है। यह जानकारी इस लिहाज से महत्वपूर्ण है कि पिछले अध्ययनों में बताया गया है कि मस्तिष्क में मैक्रोफेज (इननेट इम्यून सिस्टम की कोशिकाएं) और टी सेल्स होते हैं।

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मस्तिष्क को संक्रमणों से बचाने में गट माइक्रोब्स की भूमिका के बारे में जानने के लिए अध्ययन में चूहों और मानव शव के ऊतकों का इस्तेमाल किया गया था। ड्यूरा मेटर की जांच करने के दौरान शोधकर्ताओं को उनमें आईजीए एंटीबॉडी का पता चला है। अध्ययन के शोधकर्ताओं का कहना है कि यह अपनेआप में नई जानकारी थी, क्योंकि इससे पहले इस तरह की कोई खोज नहीं की गई थी। आईजीए एक ऐसा एंटीबॉडी है, जो मानव शरीर में कई जगह मौजूदा होता है। आंसूओं और बलगम में भी। मस्तिष्क को गट से मिलने वाली प्रोटेक्शन में माइक्रोबायोम के प्रभावों को समझने के लिए शोधकर्ताओं ने स्वस्थ चूहों की रोगाणु-मुक्त चूहों (उनके माइक्रोबायोम के बिना) से तुलना की। इसमें उन्हें पता चला कि दूसरे समूह के चूहों के मेनिन्जीज में आईजीए लगभग गायब था। इन जर्म-फ्री चूहों में गट माइक्रोबायोटा को उन माइक्रोब्स के साथ फिर से बनाया गया, जो केवल गट में ही रह सकते हैं और कहीं और जाने के लिए मूव नहीं करते। ऐसा कर वैज्ञानिकों ने पाया कि चूहों के मेनिन्जीज में आईजीए फिर से बन गए थे।

यही प्रयोग जब चूहों के स्किन माइक्रोबायोटा में किया गया तो उसमें गट माइक्रोबायोटा जैसे परिणाम नहीं मिले। इससे वैज्ञानिकों ने जाना कि मस्तिष्क की आईजीए इम्यूनिटी में गट माइक्रोब्स की भूमिका होती है। मेनिन्जीज में मौजूद आईजीए एंटीबॉडीज के डीएनए और इन्टेस्टाइन के एक हिस्से में समानता पाई गई, जिससे वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया कि इन दोनों के सोर्स एक ही हो सकते हैं। लैब में कृत्रिम तरीके से आंतों में घुसकर यह देखा गया कि गट और मेनिन्जीज दोनों में इम्यून रेस्पॉन्स था, जिससे गट और मस्तिष्क के बीच के इस संबंध की और पुष्टि हुई।

मेनिन्जीज को प्रोटेक्ट करने में आईजीए की भूमिका को समझने के लिए शोधकर्ताओं ने आखिरकार चूहों के दो समूहों (सामान्य स्वास्थ्य और जीन मैनिप्युलेशन वाले) के मेनिन्जीज को फंगस से संक्रमित किया। उन्होंने देखा कि जिन चूहों का इम्यून सिस्टम स्वस्थ था, उनमें फंगस के खिलाफ मजबूत आईजीए रेस्पॉन्स पैदा नहीं हुआ। वहीं, जिन चूहों में पर्याप्त आईजीए नहीं था, उनमें फंगस इन्फेक्शन ब्रेन तक पहुंच गया, जिससे उनकी मौत हो गई। इससे यह भी जानने में आया कि दिमाग के साइनेस में एंटीबॉडी बनने का काम लगातार चलता रहता है, न कि केवल संक्रमण के समय ऐसा होता है। हालांकि एंटीबायोटिक्स देने से चूहों के मेनिन्जीज में आईजीए की कमी हुई थी, जिससे संकेत मिला कि माइक्रोब्स की संख्या में अस्थायी कमी भी शरीर के इम्यून सिस्टम को प्रभावित कर सकती है।

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