कोविड-19 संकट के चलते संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियों और अन्य संगठनों की तरफ से नई चेतावनियां दी गई हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और एड्स की बीमारी रोकथाम के लिए संयुक्त राष्ट्र की शाखा यूएन-एड्स ने कहा है कि अगर कोविड-19 महामारी के दौरान अन्य प्रकार की स्वास्थ्य सेवाओं में आ रही कठिनाइयों को दूर नहीं किया गया तो दुनियाभर में एड्स से जुड़ी बीमारियों के चलते 2020-21 के बीच पांच लाख लोगों की मौत हो सकती है। इन पीड़ितों में अफ्रीका के सब-सहारा रेगिस्तान के टीबी (ट्यूबरकुलोसिस) के मरीज भी शामिल हैं। वहीं, कुछ गणितीय मॉडलों के तहत के किए गए अध्ययनों के आधार पर अन्य संगठनों की तरफ से मलेरिया से होने वाली मौतों में इजाफा होने की आशंका जताई गई है, खासतौर भारत के संदर्भ में।

एड्स संबंधी पांच लाख मौतें होने का खतरा
खबर के मुताबिक, कोविड-19 की वजह से स्वास्थ्य सेवाओं के बाधित होने की बात करते हुए डब्ल्यूएचओ और यूएन-एड्स द्वारा संचालित एक विशेष समूह ने कहा है कि छह महीनों तक एंटी-रेट्रोवायरल थेरेपी में अवरोध आने से एड्स संबंधी मौतों का आंकड़ा 2008 जितना हो सकता है। समूह ने कहा कि उस समय सब-सहारा में इस बीमारी से जुड़ी नौ लाख 50 हजार से ज्यादा मौतें हुई थीं। समूह ने कहा कि इसलिए दुनियाभर की सरकारों और साझेदारों को अभी कार्रवाई करनी होगी।

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हालांकि समूह द्वारा जारी किए गए बयान में केवल सब-सहारा अफ्रीका को लेकर चिंता जताई गई है, लेकिन भारत के संदर्भ में भी इस चिंता का महत्व है, क्योंकि दुनियाभर में टीबी की बीमारी के एक-चौथाई मरीज यहीं हैं और उनकी संख्या दुनिया में सबसे ज्यादा है। भारत के लिए यह इसलिए भी चिंताजनक होनी चाहिए कि हाल के दिनों में यहां टीबी और एचआईवी/एड्स के इलाज में दिक्कतें आने की कई शिकायतें आई हैं।

मलेरिया की मौतों में भी हो सकती है बढ़ोतरी
वहीं, कुछ गणितीय मॉडलों के तहत किए गए अध्ययनों में सामने आया है कि कोविड-19 संकट में स्वास्थ्य सेवाओं के बाधित होने के चलते टीबी और एड्स के मरीजों के साथ-साथ मलेरिया से होने वाली मौतों में भी बढ़ोतरी देखने को मिल सकती है। ऐसे में स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि चूंकि अब लॉकडाउन में राहत दी जा रही है, लिहाजा यह जरूरी है कि इन बीमारियों से जुड़ी स्वास्थ्य सेवाओं को पहले की तरह सामान्य किया जाए।

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मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, दक्षिण-पूर्व एशिया में डब्ल्यूएचओ की निदेशक पूनम खेत्रपाल ने कहा है, 'कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई के साथ हमें अन्य स्वास्थ्य सेवाओं का जारी रहना भी सुनिश्चित करना होगा। अतीत में बीमारियों के चलते पैदा हुए स्वास्थ्य संकट बताते हैं कि स्वास्थ्य व्यवस्था के बाधित होने से उन बीमारियों की मौतें नाटकीय रूप से बढ़ सकती हैं, जिनका इलाज वैक्सीन और अन्य प्रकार के उपचार से संभव है।'

जॉन्स होपकिन्स यूनिवर्सिटी और इम्पेरियल कॉलेज एविनिर हेल्थ के सहयोग से इंटरनेशनल यूनियन अगेन्स्ट ट्यूबरकुलोसिस एंड लंग डिसीज द्वारा किए गए इन गणितीय अध्ययनों में अंदेशा जताया गया है कि लॉकडाउन के चलते भारत में 2020 से 2025 के बीच टीबी की बीमारी से अतिरिक्त 40,685 मौतें हो सकती हैं। इस मामले में दूसरे नंबर पर केन्या है, जहां इस अवधि में 1,157 मौतें हो सकती हैं। वहीं, तीसरे नंबर पर उक्रेन जहां टीबी से 137 मौतें होने की आशंका है। यह बताता है कि इस मामले में भारत और अन्य देशों के बीच का अंतर कितना बड़ा है। अध्ययन में कहा गया है कि भारत ने 2025 तक टीबी-मुक्त होने का लक्ष्य रखा है, लेकिन कोविड-19 के चलते प्राथमिकताएं बदल सकती हैं, जिनका असर इस लक्ष्य से संबंधित परिणाम पर पड़ सकता है।

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इसी तरह, एक अन्य मॉडल में मलेरिया की मौतों की संख्या दोगुनी होने की आशंका जताई गई है। इन आशंकाओं को लेकर मैकगिल इंटरनेशनल टीबी सेंटर के निदेशक मधुकर पाई ने कहा है, 'एचआईवी के मरीजों के लिए सबसे बड़ा खतरा यह है कि उन्हें दिए जाने वाले एंटी-रेट्रोवायरल की खुराक में कमी आ सकती है। वहीं, भारत में मलेरिया प्रभावित इलाकों में बच्चों में तेज बुखार का पता लगाने के लिए टेस्ट करने में दिक्कतें आ सकती हैं, जिससे मलेरिया की मौतों में बढ़ोतरी होने की आशंका है।'


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