दुनिया भर के 200 से ज्यादा देश अब तक कोविड-19 संक्रमण की चपेट में आ चुके हैं। यह संक्रमण बहुत तेजी से एक इंसान से दूसरे इंसान में फैलता है। वैसे तो यह वायरस सभी उम्र के लोगों को प्रभावित करता है लकिन 65 वर्ष की आयु से ऊपर के लोग और जिन लोगों को पहले से ही कोई बीमारी है, उन्हें अगर यह वायरल इंफेक्शन हो जाए तो उनमें बीमारी के लक्षणों के बेहद गंभीर होने का खतरा अधिक रहता है।

डॉक्टरों ने स्पष्ट रूप से कहा है कि उच्च रक्तचाप, मधुमेह, हृदय रोग, फेफड़े की बीमारी और कैंसर जैसे गंभीर बीमारियों से पहले से ही पीड़ित मरीजों में कोविड-19 के गंभीर लक्षणों का खतरा अधिक है। हाल ही में डॉक्टरों ने पाया है कि जिन लोगों में आंत की सूजन की बीमारी (इन्फ्लेमेट्री बाउल डिजीज आईबीडी) है वह भी संक्रमण के गंभीर खतरे में हैं। इंसानों में आईबीडी 2 तरह का होता है: क्रोहन डिजीज और अल्सरेटिव कोलाइटिस। ये क्रॉनिक इम्यून इन्फ्लेमेटरी डिजीज होते हैं जो पेट में दर्द, दस्त और वजन घटने का कारण बनते हैं।

इस लेख में हम आपको आईबीडी रोगियों पर सार्स-सीओवी-2 कोरोना वायरस (कोविड-19 का वायरस) के प्रभाव के बारे में बताएंगे। इसके साथ यह भी बताएंगे कि किस प्रकार से आंत में सूजन से परेशान रोगी खुद को कोविड-19 के महामारी के दौरान सुरक्षित रख सकते हैं।

  1. IBD रोगियों को कोविड-19 से बचाने के लिए क्या करना चाहिए?
  2. इंफ्लेमेटरी बाउल डिजीज (IBD) के मरीज पर कोविड-19 का प्रभाव
  3. क्या आईबीडी रोगियों में कोविड-19 संक्रमण के गंभीर लक्षण विकसित होने को खतरा है?
  4. कोविड-19 महामारी के दौरान आईबीडी के किन रोगियों को इंडोस्कोपी की जरूरत होती है?
इंफ्लेमेटरी बाउल डिजीज के मरीज पर नए कोरोना वायरस का क्या असर होता है, जानें के डॉक्टर

डॉक्टरों के अनुसार, आईबीडी रोगियों को महामारी के दौरान भी अपना उपचार जारी रखना चाहिए। खासकर इन्फ्लिक्सीमैब जैसी दवाएं जिसे आमतौर पर ऑटोइम्यून बीमारियों के प्रबंधन के लिए दिया जाता है। हालांकि, अगर आईबीडी रोगियों में बुखार, खांसी और सांस लेने में तकलीफ जैसे कोविड-19 के लक्षण दिखने लगें तो उन्हें अमेरिकन गैस्ट्रोइंट्रोलॉजिकल असोसिएशन द्वारा दिए गए निम्न सुझावों का पालन करना चाहिए।

  • अपने गैस्ट्रोइंट्रोलॉजिस्ट से बात करके थियोफ्यूरिन्स, मेथोट्रेक्सेट और टोफासिटिनिब जैसी दवाओं को बंद कर देना चाहिए।
  • एंटी-टीएनएफ, यूस्टेकिनुमाब, वेडोलिज़ुमैब जैसे बायोलॉजिकल थेरेपी को कुछ दिनों के लिए बंद कर देना चाहिए।
  • जब तक कोविड-19 के संभावित लक्षण पूरी तरह से सही न हो जाए तब तक किसी भी प्रकार की वैकल्पिक सर्जरी यहां तक कि एंडोस्कोपी को भी कुछ दिनों के लिए टाल दें।
  • आपातकालीन सर्जरी की स्थिति में सबसे पहले कोविड-19 संक्रमण की जांच के लिए स्क्रीनिंग कराएं।
  • कोविड-19 के लक्षणों के पूर्णरूप से सही होने के बाद ही सभी उपचारों और दवाओं को पुनः आरंभ करें।

इसके साथ ही ये कुछ सामान्य उपाय हैं जिनका पालन कर आप कोविड-19 संक्रमण से खुद को बचा सकते हैं।

  • वायरस के संक्रमण से बचे रहने के लिए नाक और मुंह को मास्क (कपड़े, सर्जिकल या एन-95) से ढकें। ध्यान रखें कोविड-19 संक्रमित रोगी के छींकने या खांसने से निकलने वाली बूंदों में ही वायरस मौजूद रहता है।
  • नियमित अंतराल पर अपने हाथों को साबुन और पानी से 20 सेकंड तक धोते रहें। भोजन करने से पहले और बाद में हाथों को अच्छी तरह से धोना न भूलें। इससे यह सुनिश्चित होगा कि आपके हाथ साफ हैं और आप अपने भोजन के माध्यम से कोई भी वायरस शरीर के भीतर प्रवेश नहीं करने दे रहे हैं।
  • घर की उन सतहों को जिनको बार बार छूने की जरूरत होती है, जैसे कि दरवाजें के हैंडल, स्विच आदि को कीटाणुरहित करते रहें।
  • गर्म पानी से अच्छी तरह धोए बिना फलों और सब्जियों का सेवन न करें।
  • कच्चे भोजन के सेवन से बचें। भोजन को अच्छी तरह से पका कर ही खाएं।
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नया कोरोना वायरस सार्स-सीओवी-2, शरीर की कोशिकाओं में प्रवेश करने के लिए एंजियोटेंसिन-कनवर्टिंग एंजाइम 2 (एसीई2) रिसेप्टर्स का उपयोग करते हैं। एसीई 2 रिसेप्टर्स फेफड़ों, आंतों, किडनी, रक्त वाहिकाओं और आंत की परतों के बाहरी कोशिकाओं में प्रचूर मात्रा में मौजूद रहते हैं।

इंफ्लेमेटरी बाउल डिजीज (IBD) के मरीज की आंत में सूजन और जलन की वजह से एसीई2 की मात्रा अधिक हो जाती है। इस कारण से, वायरस का ऐसे रोगियों पर प्रभाव काफी अधिक हो सकता है। यही कारण है कि स्वस्थ व्यक्तियों की तुलना में आईबीडी पीड़ितों में कोविड-19 संक्रमण के लक्षण और गंभीर हो सकते हैं।

आईबीडी और कोविड-19 दोनों ही रोगों से पीड़ित रोगियों के आंत में लंबे वक्त तक वायरस रह सकता है। वहीं अन्य रोगियों में वायरस  फेफड़ों और अन्य अंगों में जगह बनाता है। श्वसन के कोई लक्षण न होने के बाद भी ऐसे आधे से अधिक रोगियों में मल के सैंपल कोविड-19 संक्रमित पाए गए।

डॉक्टरों के मुताबिक आईबीडी रोगियों को इम्यूनोसप्रेसिव थेरेपी करानी होती है ऐसे में उनमें जोखिमों को खतरा अधिक रहता है। आईबीडी के निम्न रोगियों में कोविड-19 संक्रमण के गंभीर लक्षण विकसित होने का खतरा होता है।

  • आंतों के सूजन वाले रोगी जिन्हें इम्यूनोस्प्रेसिव एजेंट या बायोलॉजिक थेरेपी लेनी पड़ती है।
  • जिन रोगियो में आईबीडी एक्टिव अवस्था में है और वे कुपोषण के भी शिकार हैं।
  • आईबीडी संक्रमित बुजुर्ग मरीज।
  • आईबीडी के जिन मरीजों को नियमित रूप से अस्पताल जाने की जरूरत पड़ती है।
  • वे मरीज जो न सिर्फ आईबीडी से पीड़ित है साथ ही उन्हे उच्च रक्तचाप और मधुमेह जैसे रोग भी हैं।
  • आईबीडी पीड़ित गर्भवती महिलाएं।
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किसी भी आईबीडी रोगी में नैदानिक या चिकित्सीय इंडोस्कोपी करने से पहले डॉक्टरों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ऐसा करना बहुत ही आवश्यक है या नहीं। यहां ध्यान रखने वाली बात ये है कि इंडोस्कोपी संक्रमण के संचरण का एक माध्यम भी हो सकता है। इस प्रक्रिया के दौरान खांसने और जी मिचलाने जैसी समस्याओं के चलते बड़ी संख्या में एरोसोल उत्पन्न होते हैं।

यह तय करना मुश्किल है कि रोगी में आईबीएस के लक्षण दिख रहे हैं या ​फिर यह कोविड-19 के गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल के लक्षण क्योंकि आमतौर इस दौरान रोगी में खूनी दस्त, पेट दर्द, बुखार और शरीर में बढ़े हुए सूजन जैसे लक्षण देखने को मिलते हैं जो कि दोनों ही रोगों में हो सकते हैं।

कोविड-19 संक्रमण के दौरान इंडोस्कोपी केवल निम्नलिखित स्थितियों में ही किया जाना चाहिए:

  • आंतों के सूजन की बीमारी के नए मामलों का पता लगाने के लिए जिसमें रोगी में मध्यम या गंभीर लक्षण नजर आ रहे हों।
  • जिन आईबीडी रोगियों में अचानक ही अल्सरेटिव कोलाइटिस के गंभीर लक्षण दिखने शुरू हो गए हों। इसके साथ ही निदान की पुष्टि करने और उपचार के लिए तत्काल प्रभाव से इंडोस्कोपी की आवश्यकता हो।
  • आईबीडी के जिन रोगियों में सब एक्यूट इंटेसटाइनल ऑब्स्ट्रक्शन (ब्लॉकेज) दिख रहा हो और ऐसी स्थिति में तत्काल इंडोस्कोपी या स्टेंटिंग की आवश्यकता हो।
  • जिन आईबीडी रोगियों में कोलेंजाइटिस (पित्त नली में सूजन) के लक्षण दिख रहे हों और उन्हें तत्काल इंडोस्कोपी रेट्रोग्रेड कोलैंगियो पेंक्रियाटोग्राफी (ईआरसीपी) की आवश्यकता होती है। इस उपचार से पित्त नली में रुकावट को सही किया जा सकता है।
  • जिन आईबीडी रोगियों में पीलिया के लक्षण नजर आ रहे हों और उन्हे इंडोस्कोपी दिया जाना अनिवार्य हो गया हो।
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