मेइज सिंड्रोम एक मूवमेंट डिसऑर्डर है। इसका मतलब है कि शरीर के किसी हिस्से में सामान्य तरह से गतिविधि न होना। इसे क्रेनियल डिस्टोनिया या ओरल फेशियल डिस्टोनिया के नाम से भी जाना जाता है। डिस्टोनिया एक ऐसा विकार है, जिसमें व्यक्ति की मांसपेशियां अनियंत्रित रूप से सिकुड़ जाती हैं।

मेइज सिंड्रोम दो तरह के डिस्टोनिया का मिश्रण है पहला - आंख से जुड़ा डिस्टोनिया (ब्लेफरोस्पैजम) और दूसरा मुंह, जीभ या जबड़े से जुड़ा डिस्टोनिया (ओरोमैंडिब्यूलर)। इस विकार में तेज दर्द होता है, ऐसे में व्यक्ति को पलकें व जबड़े खोलने में परेशानी होती है।

मेइज का नाम हेनरी मेइज के नाम पर रखा गया था, जिन्होंने 1910 में पहली बार इस बीमारी के लक्षणों की पहचान की थी। इसके लक्षण आमतौर पर 40 से 70 वर्ष की आयु के बीच शुरू होते हैं और यह पुरुषों की तुलना में महिलाओं में अधिक सामान्य है।

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मेइज सिंड्रोम के लक्षण

इस बीमारी के संकेतों और लक्षणों में शामिल हो सकते हैं :

ब्लेफरोस्पैजम की समस्या किसी चमकदार रोशनी, थकान, वायु प्रदूषण या तनाव के कारण हो सकता है। यह पहले एक आंख को प्रभावित करती है, इसके बाद धीरे-धीरे दूसरी आंख को भी प्रभावित करने लगती है।

थोड़े समय के बाद, मांसपेशियों का सिकुड़ना और ऐंठन बार-बार परेशान करते लगता है, जिसके कारण व्यक्ति को अपनी पलकें खोलने में दिक्कत आने लगती है। मेइज सिंड्रोम से ग्रस्त व्यक्तियों की आंखें बंद होने के कारण उनमें अंधेपन का जोखिम बढ़ जाता है। इसके अलावा उनकी आंखों में नमी की कमी हो जाती है।

ओरोमैंडिबुलर डायस्टोनिया में जबड़े और जीभ की मांसपेशियों में सिकुड़न के कारण मुंह खोलने या बंद करने में मुश्किल हो सकती है। इसके अलावा दांत पीसने जैसे समस्या भी हो सकती है। जबड़े से संबंधित अन्य लक्षण :

  • चेहरे पर दर्द का भाव
  • नाक-भौं चढ़ाना जैसे चेहरे पर क्रोध
  • ठुड्डी का इस्तेमाल करने के लिए जोर लगाना
  • जबड़े की जगह हिल जाना
  • जबड़े में दर्द
  • सिरदर्द
  • जीभ, गले और श्वसन पथ में ऐंठन होना। सांस की नली में ऐंठन होने से सांस लेने में तकलीफ हो सकती है।

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मेइज सिंड्रोम का कारण

इस बीमारी के कारणों के बारे में अभी तक कोई जानकारी इकट्ठा नहीं हुई है। हालांकि, डॉक्टरों का मानना है कि इसके पीछे कई आनुवंशिक और पर्यावरणीय कारक हो सकते हैं। कुछ शोधकर्ताओं का मानना है कि मस्तिष्क का वह हिस्सा, जो मांसपेशियों के कार्य और सीखने की क्षमता को नियंत्रित व उनमें समन्वय बनाए रखता है, में किसी दोष के कारण यह विकार हो सकता है। मस्तिष्क में इस दोष को बेसल गैन्ग्लिया कहते हैं। इसका मतलब है मस्तिष्क के अंदर पाई जाने वाली संरचनाओं के समूह में नुकसान पहुंचना।

कुछ मामलों में इस विकार का कारण चिकित्सीय दवाओं को माना गया है, विशेष रूप से ऐसी दवाएं जो पार्किंसंस रोग को ठीक करने के लिए इस्तेमाल की जाती हैं। डॉक्टर को यदि इस स्थिति का कारण चिकित्सीय दवाओं का सेवन लगता है तो वह कम खुराक लेने की सलाह दे सकते हैं।

मेइज सिंड्रोम का इलाज

वर्तमान में डिस्टोनिया के लिए कोई इलाज नहीं है, लेकिन इस विकार के लक्षणों को कम करने के लिए कई विकल्प उपलब्ध हैं। चेहरे की मांसपेशियों से जुड़े विकार को ठीक करने के लिए बोटुलिनम टॉक्सिन इंजेक्शन को सबसे प्रभावी उपचार माना जाता है। हालांकि, यह प्रभाव अस्थायी है। इसके अलावा इंट्रामस्क्युलर इंजेक्शन तेजी से लक्षणों में राहत प्रदान कर सकता है। ब्लेफरोस्पैजम वाले अधिकांश व्यक्तियों में बोटुलिनम टॉक्सिन इंजेक्शन लेने के बाद स्थिति में सुधार देखा गया है।

इसके अतिरिक्त तनाव को ट्रिगर करने वाले कारकों (तेज धूप या हवा) से दूर रहना भी इस बीमारी का एक इलाज है। यदि सूरज की तेज रोशनी की वजह से पलकें खोलने में परेशानी हो रही है तो ऐसे में धूप वाला चश्मा और टोपी इस समस्या को कम कर सकती है। चश्मे का एक और फायदा है कि इससे आंखों पर सूरज की रोशनी के साथ तेज हवा से भी बचाव हो सकेगा।

उपरोक्त तरीकों के अलावा कुछ अन्य तरीके भी हैं, जो लक्षणों को कम करने में मदद कर सकते हैं, उदाहरण के लिए, चबाने वाली गम, सीटी बजाना, दांत साफ करने वाली टूटपिक या जेली वाली टॉफियां, चलते समय गुनगुनाने से आंखों को खुला रखने में मदद मिल सकती है। इसके अलावा बोलकर पढ़ना, बुनाई करने जैसे सूक्ष्म कार्य करना, नाचना, चेहरे के किनारे की तरफ उंगली से दबाना व साथ में ऐसी गतिविधियां करना, जिसमें नीचे देखने की जरूरुत होती है जैसे खाना पकाना, पौधों को पानी देना भी फायदेमंद साबित हो सकता है।

कुल मिलाकर, लक्षणों को पहचानकर जल्द डॉक्टर के पास जांच के लिए जाएं, ताकि उचित समय पर इस बीमारी के लक्षणों को नियंत्रित किया जा सके।

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