कंधा अलग होना क्या है?

कंधे के ऊपरी जोड़ में किसी प्रकार की क्षति होने की स्थिति को कंधा अलग होना कहा जाता है। कंधे के ऊपरी जोड़ को “एक्रोमायोक्लैविक्युलर जॉइंट” (Acromioclavicular joint) या “एसी जॉइंट” (AC joint) कहा जाता है। कंधा तीन हड्डियों के संयोजन से बनता है, जिसमें कॉलरबोन (Clavicle), शॉल्डर ब्लेड (Scapula) और आर्म बोन (Humerus) आदि शामिल है।

इसमें शॉल्डर ब्लेड और कॉलरबोन मिलकर एक सॉकेट बनाते हैं और आर्म बोन का ऊपरी सिरा गोल होता है, जो उस सोकेट में फिट हो जाता है।

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कंधा अलग होने के लक्षण क्या हैं?

एसी जॉइंट की जगह पर कंधे में सूजन व छूने पर दर्द होना, कंधा अलग होने का सबसे सामान्य लक्षण है। कंधे पर चोट आदि लगने के लगभग 48 घंटों के बाद वहां पर नील पड़ने लग जाती है। चोट लगने के बाद अपनी बांह को या कंधे को हिलाने में कठिनाई होने लग जाती है, क्योंकि एसी जॉइंट के आस-पास के क्षेत्र में सूजन आने लग जाती है।

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कंधा अलग क्यों होता है?

कंधे पर कोई जोरदार चोट लगना या कंधे के बल गिर जाना कंधा अलग होने का सबसे आम कारण है। चोट के दौरान लिगामेंट फट सकता है या उसमें खिंचाव आ सकता है। लिगामेंट एक कठोर ऊतक होता है, जो कॉलरबोन को शॉल्डर ब्लेड से बांध कर रखता है।

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कंधा अलग होने का इलाज कैसे किया जाता है?

  • नॉन-सर्जिकल इलाज
    • इनमें सर्जरी जैसी प्रक्रियाओं का इस्तेमाल नहीं किया जाता है, जैसे पट्टी बांधना, ठंडी सिकाई करना और दवाएं आदि। इनका उपयोग दर्द आदि को कम करने के लिए किया जाता है। कुछ बहुत ही कम मामलों में डॉक्टर एसी जॉइंट को सहारा प्रदान करने के लिए कुछ जटिल उपकरणों का उपयोग भी कर सकते हैं। 
    • सामान्य उपचार के बाद कुछ समय तक इंतजार करना उचित होता है, ताकि जोड़ फिर से ठीक तरीके से काम करना शुरू कर सकें। ज्यादातर लोगों को जिनके कंधे में गंभीर चोट लगी है, बिना सर्जिकल उपचार के भी उनके जोड़ ठीक तरीके से काम करने लग जाते हैं। 
  • सर्जिकल ट्रीटमेंट
    • यदि कंधे में गंभीर चोट है या कंधे का आकार बदल गया है, तो डॉक्टर अक्सर ऑपरेशन करने पर विचार करते हैं। डॉक्टर ऑपरेशन के दौरान कॉलरबोन के एक सिरे को थोड़ा काट कर छोटा कर देते हैं, ताकि वह शॉल्डर ब्लेड बोन हड्डी से रगड़ ना खा पाए। 
    • यदि कंधे का आकार पूरी तरह से बिगड़ गया है, तो ऑपरेशन की मदद से कॉलरबोन की अंदरुनी तरफ लगे लिगामेंट को फिर से संगठित किया जाता है। यह ऑपरेशन चोट आदि लगने के काफी समय बाद भी की जा सकती है।

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