हेल्थ से जुड़ी सुविधाओं पर बढ़ते खर्च को देखते हुए आप अपने परिवार के लिए हेल्थ इन्शुरन्स खरीदते हैं। ताकि मुसीबत के समय आपको पैसे की किल्लत न हो और किसी के आगे हाथ न फैलाने पड़ें। हेल्थ इन्शुरन्स लेने का आपका फैसला बिल्कुल सही है और स्वास्थ्य से जुड़े खर्चों के लिए इससे बेहतर विकल्प आपको नहीं मिलेगा। हेल्थ इन्शुरन्स प्लान लेने से पहले आपका यह जानना जरूरी होता है कि उसमें कौन-कौन सी बीमारियां या स्थितियां कवर होंगी। आप चिंतित होते हैं, कहीं ऐसा तो नहीं होगा कि किसी स्थिति में अस्पताल में भर्ती हों और इन्शुरन्स कंपनी क्लेम देने से इनकार कर दे। आपकी ऐसी ही चिंताओं को दूर करने के लिए इस आर्टिकल में हम आपको बता रहे हैं कि myUpchar बीमा प्लस पॉलिसी में आपको किन-किन स्थितियों में क्लेम मिलता है या क्या-क्या सुविधाएं कवर होती हैं।

(और पढ़ें - हेल्थ इन्शुरन्स में क्या-क्या कवर होता है)

  1. अस्पताल के खर्चे - Hospitalisation Expenses in Bima Plus in Hindi
  2. प्री और पोस्ट हॉस्पिटलाइजेशन कवरेज - Pre & Post Hospitalization Medical Expenses in Hindi
  3. अस्पताल में भर्ती होने पर खर्चों के लिए शर्तें - Conditions applicable for Hospitalization Expenses in Hindi

यदि बीमित व्यक्ति बीमार होता है या उसे किसी तरह की कोई चोट लगती है और इसके कारण उसे अस्पताल में भर्ती होना पड़ता है तो लिए गए बीमा कवर के अनुसार उसे क्लेम मिलता है। जिन नियम और शर्तों के तहत पॉलिसी ली गई है, उनके अनुसार बीमित व्यक्ति को अस्पताल में होने वाले निम्न खर्चों का क्लेम दिया जाता है।

(और पढ़ें - हेल्थ इन्शुरन्स में क्या कवर नहीं होता)

अस्पताल में भर्ती रोगी की देखभाल 

जिन नियमों और शर्तों के तहत पॉलिसी बेची गई थी, उनके तहत कंपनी 24 घंटे से अधिक समय तक अस्पताल में भर्ती होने पर क्लेम देती है। अस्पताल में भर्ती होने के दौरान आप आपकी चुनी गई बीमित राशि (सम-इनश्योर्ड) तक का इलाज करवा सकते हैं। यदि डॉक्टर ने लिखित रूप से भर्ती होने को नहीं कहा है और आप अपनी मर्जी से ऐसा करते हैं तो आपको क्लेम नहीं मिलेगा।

(और पढ़ें - सबसे सस्ता हेल्थ इन्शुरन्स प्लान)

डे केयर ट्रीटमेंट 

कुछ बीमारियां ऐसी होती हैं, जिनके लिए 24 घंटे या उससे अधिक समय के लिए अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत नहीं होती। ऐसे उपचार को डे-केयर ट्रीटमेंट कहा जाता है। यदि ऐसे इलाज की बेहद आवश्यकता हो तो कंपनी डे-केयर ट्रीटमेंट की जरूरत के अनुसार बीमित राशि तक का क्लेम देती है। बशर्ते -

  • पॉलिसी के नियम और शर्तों के एनेक्सचर-1 के अनुसार डे-केयर ट्रीटमेंट लिस्ट में हो।
  • डे-केयर ट्रीटमेंट के लिए बीमित व्यक्ति को 24 घंटे से अधिक समय के लिए अस्पताल या डे-केयर सेंटर में भर्ती न किया गया हो।
  • उक्त डे-केयर ट्रीटमेंट किसी डॉक्टर की सलाह के अनुसार ही किया जा रहा हो।

सड़क एम्बुलेंस कवर

यदि बीमित व्यक्ति को एम्बुलेंस की आवश्यकता महसूस होती है और वह अस्पताल या किसी एम्बुलेंस सर्विस की सेवा लेता है तो वह इसके लिए क्लेम कर सकता है। इसके बाद इन्शुरन्स कंपनी इसकी जांच करती है और यदि वास्तव में एम्बुलेंस लेना अति आवश्यक होगा तो आपको नियम और शर्तों के अनुसार उसका क्लेम दे दिया जाएगा। एम्बुलेंस की आवश्यकता को इलाज कर रहा डॉक्टर प्रमाणित करता है। इसके बाद भी निम्न नियमों के तहत सड़क एम्बुलेंस के खर्च का क्लेम दिया जाता है -

  • बीमित व्यक्ति को जहां पर इमरजेंसी में एम्बुलेंस की आवश्यकता पड़ी वहां से नजदीकी अस्पताल तक ही एम्बुलेंस कवर दिया जाता है।
  • इमरजेंसी में रोगी को बेहतर उपचार देने के लिए एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल ले जाने के लिए भी एम्बुलेंस कवर दिया जाता है।

(और पढ़ें - सबसे अच्छा हेल्थ इन्शुरन्स प्लान)

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प्री और पोस्ट हॉस्पिटलाइजेश कवरेज का मतलब उन खर्चों से है, जो अस्पताल में भर्ती होने से पहले और डिस्चार्ज होने के बाद होते हैं। यदि किसी स्वास्थ्य समस्या के कारण आप अस्पताल में भर्ती होते हैं तो उसी समस्या के लिए भर्ती होने से पहले जो खर्च आप ओपीडी और अन्य रूप में करते हैं, उसे इसके तहत कवर किया जाता है। यही नहीं अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद भी उस समस्या से संबंधित जो खर्च होते हैं उन्हें भी इसमें शामिल किया जाता है। एक बार जब आप इनके लिए क्लेम करते हैं तो कंपनी इसकी अच्छे से जांच-पड़ताल करती है। कंपनी देखती है कि जिन खर्चों को आप क्लेम कर रहे हैं, उसे किसी डॉक्टर के कहने पर किया गया है या नहीं। दवाओं के बिल, डॉक्टर की प्रिस्क्रिप्शन, टेस्ट आदि के बिल को आप इसके तहत क्लेम करते हैं।
  • किसी स्वास्थ्य समस्या के चलते अस्पताल में भर्ती होने की तारीख से 30 दिन पहले तक के सभी खर्चों को इसके तहत क्लेम किया जाता है। हालांकि, यदि बीमा कवरेज शुरू होने से पहले यह खर्चे होते हैं तो इसको क्लेम नहीं किया जा सकता।
  • अस्पताल से छुट्टी होने की तारीख के 60 दिन बाद तक के खर्चों को भी इसके तहत क्लेम किया जा सकता है। हालांकि, इसके लिए आपके पास डॉक्टर का प्रिस्क्रिप्शन और हर चीज का बिल होना जरूरी है।
  • प्री और पोस्ट हॉस्पिटलाइजेशन के तहत प्रतिदिन सिर्फ एक ही डॉक्टर कंसल्टेशन को कवर किया जाता है।
  • इसके तहत फॉलोअप कंसल्टेशन को कवर नहीं किया जाता और रिहैब्लिटेशन सेंटर से डिस्चार्ज होने के बाद होने वाले इलाज को भी इसमें कवर नहीं किया जाता।
  • यदि बीमित व्यक्ति के किसी बीमारी के उबरने के 45 दिन के भीतर फिर से उसी बीमारी के कारण उसी अस्पताल में भर्ती होना पड़े तो ऐसे सभी क्लेम को एक ही क्लेम माना जाता है। 
    • ऐसा होने पर अस्पताल में भर्ती होने का दिन पहली बार भर्ती होने की तारीख को माना जाएगा।
    • अस्पताल से दूसरी बार डिस्चार्ज होने के दिन को अस्पताल से छुट्टी का दिन माना जाएगा।

(और पढ़ें - आपके परिवार के लिए myUpchar बीमा प्लस पॉलिसी क्यों बेहतर है)

अस्पताल रूम रेंट और नर्सिंग खर्चों को आपके द्वारा लिए गए रूम कैटेगरी के आधार पर तय करते हैं। यदि आप बीमित राशि (सम-इनश्योर्ड) के एक फीसद यानी तीन लाख के लिए तीन हजार रुपये से ज्यादा का रूम लेते हैं तो आपको अन्य सुविधाएं भी उसी के अनुसार महंगी मिलेंगी।

  • रूम रेंट
    ऐसे में बीमित व्यक्ति को उसी अनुपात में वैरिएबल मेडिकल एक्सपेंसेस (सरचार्ज और टैक्स आदि) भी अपनी जेब से चुकाने होंगे। इसके अलावा 1 फीसद रूम रेंट से जितना भी अधिक होगा, वह भी आपको ही चुकाना होगा।
  • आईसीयू चार्जेस
    यदि बीमित व्यक्ति को आईसीयू में भर्ती करने की आवश्यकता है तो myUpchar बीमा प्लस में बीमा धन का 2 फीसद प्रतिदिन तक आईसीयू खर्च के रूप में दिया जाता है। यदि आपके आईसीयू का खर्च इससे ज्यादा होता है तो अतिरिक्त शुल्क आपको अपनी सेविंग्स से चुकाना होगा। उसी अनुपात में आपको वैरिएबल मेडिकल एक्सपेंसेस को भी चुकाना होगा।
  • प्री-एग्जिस्टिंग डिजीज
    ​यदि आपने तीन वार्षिक प्रीमियम चुका दिए हैं, यानी कम से कम 24 महीने का वेटिंग पीरियड पूरा कर लिया है तो आपकी प्री-एग्जिस्टिंग डिजीज भी myUpchar बीमा प्लस पॉलिसी के तहत कवर होंगी। यदि आपने बीच में बीमाधन (सम-इनश्योर्ड) बढ़ाया है तो बढ़ी हुई राशि के लिए आपको 24 महीने का और इंतजार करना पड़ेगा। हालांकि, जिस राशि के लिए आप लगातार 24 माह से बीमित हैं, पहले से मौजूद बीमारियों का उतने तक का इलाज आप करवा सकते हैं। यहां आपको इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि आप उन्हीं प्री-एग्जिस्टिंग डिजीज का इलाज निश्चित वेटिंग पीरियड के बाद करवा सकते हैं, जिनके बारे में आपने पॉलिसी लेते समय उसके फॉर्म में घोषणा की है।

(और पढ़ें - सीनियर सिटिजन हेल्थ इन्शुरन्स प्लान के फायदे)

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