आज विज्ञान दिवस है। भारत के महान भौतिकविज्ञानी सर सीवी रमन ने 28 फरवरी, 1928 को 'रमन इफेक्ट' की खोज की थी। उनकी इस महान कामयाबी की याद में हर साल 28 फरवरी का दिन 'विज्ञान दिवस' के रूप में मनाया जाता है। इस साल विज्ञान दिवस की थीम 'विज्ञान क्षेत्र में महिलाएं' रखी गई है। इसके तहत देश भर में कई कार्यक्रम आयोजित किए गए हैं। इस मौके पर MyUpchar आपको उन महिलाओं के बारे में बता रहा है, जिन्होंने स्वास्थ्य क्षेत्र में अपने महत्वपूर्ण योगदान से देश का गौरव तो बढ़ाया ही है, साथ ही महिलाओं की क्षमता का उदाहरण भी पेश किया है।

डॉ. इंदिरा हिंदुजा
भारत के सबसे अच्छे चिकित्सकों में डॉक्टर इंदिरा हिंदुजा का नाम बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है। महाराष्ट्र में पैदा हुईं इंदिरा हिंदुजा एक स्त्रीरोग विशेषज्ञ, प्रसूतिविज्ञानी और इन्फर्टिलिटी स्पेशलिस्ट हैं। 1986 में उन्हीं के नेतृत्व में डॉक्टरों की टीम ने एक टेस्ट ट्यूब बेबी की डिलिवरी कराई थी। ऐसा करने वाली इंदिरा हिंदुजा देश की पहली महिला डॉक्टर हैं। वहीं, 1988 में 'गिफ्ट' (गैमेट इन्ट्राफेलोपियन ट्रांसफर) तकनीक से पहले बच्चे का जन्म कराने का कारनामा भी डॉक्टर इंदिरा हिंदुजा के नाम दर्ज है। इसके अलावा रजोनिवृत्ति और समय से पहले गर्भाशय में समस्या (ओवेरियन फेलियर) से पीड़ित महिलाओं के लिए एक कारगर तकनीक खोजने का श्रेय डॉक्टर इंदिजा हिंदुजा को ही जाता है। 1991 में इसी तकनीक की मदद से उन्होंने पहले बच्चे की डिलिवरी करवाई थी। चिकित्सा क्षेत्र में अपने अमूल्य योगदान के लिए डॉक्टर इंदिरा हिंदुजा को भारत सरकार द्वारा पद्म श्री से सम्मान किया जा चुका है।

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किरण मजूमदार शॉ
भारत के दवा कारोबार में किरण मजूमदार शॉ एक प्रतिष्ठित नाम हैं। पूरी दुनिया में जैव-प्रौद्योगिकी क्षेत्र को नया रूप देने में उनका योगदान अहम माना जाता है। 1953 में कर्नाटक के बेंगलुरु में जन्मीं किरण मजूमदार ने 1978 में 'बायोकॉन' की शुरुआत की थी। यह कंपनी कैंसर, डायबिटीज और स्वप्रतिरक्षित (ऑटो-इम्युन) बीमारियों से जुड़ी दवाएं बनाती है। 42 साल पहले किरण मजूमदार ने मात्र दस हजार रुपये से इस कंपनी की शुरुआत की थी। आज इसकी कीमत 6,500 करोड़ रुपये से ज्यादा है। किरण मजूमदार के प्रयासों से बायोकॉन यूरोप-अमेरिका से लेकर संयुक्त राष्ट्र तक को विनिर्मित एंजाइम का निर्यात करने वाली पहली कंपनी बनी। वहीं, दो दशक पहले उन्होंने मानव स्वास्थ्य क्षेत्र में योगदान देने की पहल की। इसके बाद 2003 में उन्होंने बायोकॉन को मानव इंसुलिन विकसित करने वाली दुनिया की पहली कंपनी बनाया। मेडिकल क्षेत्र में किरण मजूमदार का नाम इतना बड़ा हो गया कि इंग्लैंड की जानी-मानी पत्रिका 'द मेडिसिन मेकर' ने उन्हें दवा क्षेत्र की 100 हस्तियों की सूची में दूसरे स्थान पर रखा। इस सूची में शामिल होने वाली वे एक मात्र भारतीय हैं। वहीं, फोर्ब्स पत्रिका उन्हें दुनिया की 100 सबसे ताकतवर महिलाओं की सूची में शामिल कर चुकी है। भारत सरकार ने मेडिकल क्षेत्र में अमूल्य योगदान देने के लिए किरण मजूमदार शॉ को पद्म भूषण से सम्मानित किया है।

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एसआई पद्मावती
डॉक्टर एसआई पद्मावती को लोग डॉक्टर पद्मावती अय्यर के नाम से ज्यादा जानते हैं। भारत में उन्हें कार्डियॉलजी (हृदयरोग विज्ञान) का 'भगवान' माना जाता है। 20 जून, 1917 को जन्मीं डॉक्टर पद्मावती की उम्र 102 साल से ज्यादा हो चुकी है। लेकिन वे चिकित्सा क्षेत्र के लिए आज भी सक्रिय हैं। बताया जाता है कि उन्होंने साठ साल पहले हृदय के मरीजों को प्रशिक्षण देना शुरू किया था। कॉर्डियॉलजी में उनकी विशेषज्ञता ने भारत में दिल की बीमारी के इलाज का कॉन्सेप्ट ही बदल कर रख दिया। वे न सिर्फ भारत की पहली हृदयरोग विशेषज्ञ हैं, बल्कि देश के किसी मेडिकल संस्थान में पहले हृदयरोग विभाग की निर्माता भी हैं। इसके अलावा भारत के पहले हर्ट फाउंडेशन की स्थापना भी उन्होंने ही की। यह संस्थान दिल की बीमारियों को लेकर लोगों में जागरूकता फैलाने का काम करता है। भारत सरकार डॉक्टर पद्मावती को पद्म विभूषण से सम्मानित कर चुकी है।

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आनंदीबाई जोशी
इस सूची में अगला नाम है डॉक्टर आनंदीबाई जोशी का। वे भारत की पहली महिला चिकित्सक के रूप में जानी जाती हैं, जिन्होंने ऐसे समय में यह उपलब्धि हासिल की जब महिलाओं को पढ़ने-लिखने के अधिकार से वंचित रखा जाता था। 31 मार्च, 1865 को महाराष्ट्र के पुणे शहर में जन्मीं आनंदीबाई जोशी का मात्र नौ वर्ष की उम्र में विवाह कर दिया गया था। इस कारण केवल 14 वर्ष की उम्र में वे मां बन गई थीं। लेकिन दस दिन बाद ही उनके पुत्र की मृत्यु हो गई थी। बताया जाता है कि इसी घटना ने आनंदीबाई को डॉक्टर बनने की प्रेरणा दी थी। उन्होंने तय किया वे पढ़-लिख कर एक चिकित्सक बनेंगी और लोगों को अकाल मृत्यु से बचाने का काम करेंगी। अपनी लगन और मेहनत से आनंदीबाई ने यह काम कर दिखाया। डॉक्टर बनने के लिए वे विदेश तक गईं। लेकिन यह उनका दुर्भाग्य रहा कि डॉक्टर बनने के कुछ ही समय बाद उनका स्वास्थ्य बिगड़ने लगा और केवल 22 साल की उम्र में उनका देहांत हो गया। हालांकि वे आज भी मेडिकल के अलावा हर क्षेत्र में काम कर रही महिलाओं के लिए प्रेरणा बनी हुई हैं।

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