आंध्र प्रदेश सरकार की महत्वाकांक्षी 'डॉक्टर वाईएसआर कांति वेलुगु योजना' के तीसरे चरण की औपचारिक शुरुआत हो गई है। राज्य के मुख्यमंत्री वाईएस जगनमोहन रेड्डी ने इसी हफ्ते इसे हरी झंडी दी। बताया जा रहा है कि इस चरण के तहत आंध्र प्रदेश के 60 साल से ज्यादा उम्र के लगभग 57 लाख बुजुर्गों को योजना का फायदा दिया जाएगा। गौरतलब है कि कांति वेलुगु योजना के जरिये आंध्र प्रदेश सरकार ने राज्य के सभी लोगों की आंखों का मुफ्त इलाज करने का लक्ष्य रखा है। यह काम छह छरणों में पूरा किया जाएगा।

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राज्य सरकार की मानें तो कांति वेलुगु योजना के तीसरे चरण में 56 लाख 88 हजार 420 से ज्यादा बुजुर्गों की आंखों का इलाज मुफ्त किया जाएगा। योजना को अमल में लाते हुए सभी ग्राम सचिवालयों में लोगों की आंखों की जांच की होगी। वहीं, एक मार्च से राज्य भर के मौजूदा 11 शिक्षण अस्पतालों में चुने गए मरीजों की सर्जरी की जाएगी। इस कार्यक्रम के लिए सरकार ने 560 करोड़ रुपये का बजट आवंटित कर दिया है।

पुराने अस्पताल होंगे अपग्रेड, मरीजों को मिलेगी बेहतर सुविधाएं
खबरों के मुताबिक, कांति वेलुगु योजना के अलावा आंध्र सरकार ने समाज के सभी वर्गों को बेहतर चिकित्सा सुविधा देने के लिए और भी लक्ष्य रखे हैं। इसके तहत वह राज्य में 16 नए मेडिकल कॉलेज (अस्पताल) खोलने की योजना बना रही है। मौजूदा समय में आंध्र प्रदेश में 11 मेडिकल कॉलेज हैं। इसके अलावा राज्य सरकार 'नाडु-नेदु योजना' के जरिये 15,337 करोड़ रुपये खर्च कर मौजूदा अस्पतालों को आधुनिक सुविधा के साथ अपग्रेड करेगी।

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आंखों की बीमारी और विकार क्या हैं?
आंखों की रौशनी खराब होने की वजह मुख्य रूप से बढ़ती या बुजुर्ग उम्र से जुड़ी है। इसके अलावा मोतियाबिंद, मधुमेह रेटिनोपैथी और ग्लूकोमा भी आंखों की समस्या के अन्य कारणों में गिने जाते हैं। वहीं, एम्बलियोपिया और स्ट्रैबिस्मस को अन्य कुछ आम आंखों के विकारों में शामिल किया जाता है।

मोतियाबिंद- इसमें आंखों की पुतली पर धब्बे जैसी आकृति दिखाई पड़ता है। यह धब्बा धीरे-धीरे देखने की क्षमता को बाधित कर देता है। यह समस्या उम्र के किसी भी पड़ाव में हो सकती है। हालांकि सही इलाज से इस समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है।

मुधमेह रेटिनोपैथी- यह मुधमेह से जुड़ी एक आम समस्या है। इससे आंखों की देखने की क्षमता नष्ट हो जाती है। यह परेशानी रेटिना की नसों में रुकावट होने का कारण बनती है।

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भारत में कितनी बड़ी है नेत्र रोग की समस्या?
पिछले साल किए गए एक अध्ययन के आंकड़ों पर नजर डालने पर पता चलता है कि भारत में आंखों से जुड़ी बीमारियों की स्थिति थोड़ी चिंताजनक है। अध्ययन के तहत 14.5 लाख से अधिक रोगियों से मिली जानकारी से पता चला कि देश में हर साल सूखी आंखों की बीमारी के 21,000 मामले सामने आते हैं। इनमें से 12,500 से अधिक मामले शहरी क्षेत्रों से, जबकि 8,700 से अधिक मामले ग्रामीण क्षेत्रों से जुड़े थे।

स्वास्थ्य के क्षेत्र से जुड़ी पत्रिका 'ऑक्युलर सरफेस' में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में एक बड़ी आबादी (मध्यम वर्ग और पुरानी बीमारी से जुड़े लोग) पर बड़ा नेत्र रोग संकट मंडरा रहा है। पत्रिका में प्रकाशित रिसर्च की मानें तो यहां सूखी आंख की बीमारी 'महामारी के कगार पर' है। अध्ययन में आशंका जताई गई है कि 2030 तक देश की 40 प्रतिशत आबादी इस बीमारी (शुष्क नेत्र रोग) से प्रभावित होगी।

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