जीवन प्रत्याशा का मतलब किसी व्यक्ति के जीवन जीने की औसत अवधि से है। हर देश या राज्य की अलग-अलग जीवन प्रत्याशा दर होती है। अगर किसी खास देश, राज्य या शहर की जीवन प्रत्याशा बढ़ती है तो इसे उस स्थान के समग्र विकास से भी जोड़ा जाता है। हाल में आई नेशनल हेल्थ प्रोफाइल 2019 के अनुसार भारत की जीवन प्रत्याशा दर में बढ़ोतरी हुई है।

जहां 1970 से 1975 में भारत के लोगों की औसत उम्र 49.7 वर्ष थी, वहीं 2012 से 2016 में बढ़कर यह 68.7 वर्ष हो गई। इस रिपोर्ट के अनुसार भारतीय महिलाओं की औसत उम्र 70.2 और पुरुषों की औसत उम्र 67.4 वर्ष है। मतलब यह कि पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में जीवन प्रत्याशा अधिक है। हालांकि, सामान्य रूप से दोनों की ही प्रत्याशा दरों में बढ़ोतरी हुई है। भारत अब विश्व भर में लाइफ एक्सपेक्टेंसी लिस्ट में 125वें स्थान पर पहुंच गया है। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार साल 2050 तक वैश्विक जीवन प्रत्याशा दर 77.1 वर्ष तक पहुंचने का अनुमान है।

मृत्यु दर, जीवन प्रत्याशा दर को काफी प्रभावित करती है। भारत में बीमारियों के कारण हुई मृत्यु के बारे में जानने के लिए एनसीडी द्वारा 6.51 करोड़ मरीजों पर एक सर्वे किया गया। इस सर्वे में पाया गया कि भारत में सबसे अधिक मरीज उच्च रक्तचाप (हाई बीपी) 6.19% के हैं और उसके बाद डायबिटीज 4.75%, हृदय संबंधी रोग 0.30%, सामान्य कैंसर 0.26% और सबसे कम स्ट्रोक से ग्रस्त 0.10% मरीज हैं।

भारत में सबसे अधिक जीवन प्रत्याशा दर केरल, दिल्ली और उत्तराखंड में है। इन सभी राज्यों में लोगों की औसत उम्र 71 से 74 वर्ष तक है। उत्तराखंड में पिछले कई वर्षों के मुकाबले जीवन प्रत्याशा में काफी बढ़ोत्तरी देखी गई है, यहां साल 2002 से 2006 तक लोगों की औसत आयु केवल 60 वर्ष थी, जो अब बढ़कर 71.7 वर्ष हो गई है। मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और असम देश के सबसे कम जीवन प्रत्याशा दर वाले राज्य हैं, यहां लोगों की औसत उम्र 64.2 से 63.9 है।

महिलाओं में काफी बढ़ी है जीवन प्रत्याशा दर
पहले के मुकाबले भारतीय महिलाओं की जीवनशैली में काफी सुधार हुआ है, जिसके कारण उनकी जीने की औसत उम्र 49 वर्ष से बढ़कर 70.2 वर्ष हो गई है। पहले के मुकाबले उनके रहन-सहन में काफी हद तक सुधार आया है और वे अपने शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य का काफी ध्यान रखने लगी हैं। इसके साथ ही पुरुषों के मुकाबले महिलाएं बहुत ही कम मामलों में स्वास्थ्य को हानि पहुंचाने वाली आदतें अपनाती हैं, जिनमें धूम्रपान, शराब व स्वास्थ्य के लिए हानिकारक अन्य पदार्थों का सेवन न करना शामिल है।

जीवनशैली में सुधार से बढ़ती है जीवन प्रत्याशा दर
अपने जीवन से जुड़ी अच्छी आदतें अपनाना और बुरी आदतों को छोड़ना भी जीवन प्रत्याशा दर पर काफी सकारात्मक प्रभाव डालती है, जिसके कुछ मुख्य कारक हैं - 

  • स्वच्छता - 
    साफ-सफाई न रहने के कारण गंदगी, प्रदूषण, बीमारियां और संक्रमण बढ़ते हैं, जिनके कारण मृत्यु दर में बढ़ोतरी होती है। किसी क्षेत्र में विशेष रूप से स्वच्छता रखने पर वहां के लोगों में बीमारियां व संक्रमण होने का खतरा कम हो जाता है और वहां के लोग शारीरिक रूप से स्वस्थ रहते हैं, परिणामस्वरूप जीवन प्रत्याशा दर में काफी सुधार होता है।
     
  • गरीबी - 
    भारत में गरीबी भी एक मुख्य कारक है, जो जीवन प्रत्याशा दर को प्रभावित करती है। बड़ी संख्या में लोगों के पास खुद का घर नहीं है और वे सड़कों के किनारे झोपड़ियों में रहते हैं। उन्हें पर्याप्त और पोषक आहार भी नहीं मिल पाता है, जिसके कारण उनकी असामयिक मौत हो जाती है।
     
  • शिक्षा - 
    उचित शिक्षा स्वस्थ व खुशहाल जीवन जीना भी सिखाती है। शिक्षा ही हमें बताती है कि एक स्वस्थ जीवन का क्या महत्व होता है और शिक्षा ही हमें उसके लिए कुशल भी बनाती है। अगर अच्छी शिक्षा मिलेगी तो लोग अपने स्वास्थ्य के साथ-साथ गरीबी और स्वच्छता जैसे कारकों के प्रति भी जागरुक होंगे और परिणामस्वरूप जीवन प्रत्याशा दर में बढ़ोत्तरी होगी।

यही कारण है कि भारत के शहरों में ग्रामीण इलाकों के मुकाबले जीवन प्रत्याशा दर अधिक है। अच्छी शिक्षा, स्वच्छ पास-पड़ोस और इलाज की उच्च तकनीक की मदद से शहरों में जीवन प्रत्याशा दर बढ़ी है।

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