गर्भावस्था के दौरान गर्भवती महिलाएं तमाम तरह की मेडिकल जांच करवाती हैं। इनमें से कुछ जांच मां और गर्भ में पल रहे बच्चे के लिए बहुत जरूरी होते हैं। जबकि बाकी के कुछ जांच डॉक्टर भविष्य में होने वाली परेशानियों को देखते हुए करवाने की सलाह देते हैं। डबल मार्कर टेस्ट इन्हीं कैटेगरी की जांच है।

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  1. डबल मार्कर टेस्ट क्या होता है? - What is Double Marker Test in Hindi?
  2. डबल मार्कर टेस्ट क्यों किया जाता है? - What is the purpose of Double Marker Test Test in Hindi?
  3. डबल मार्कर टेस्ट से पहले - Before Double Marker Test in Hindi
  4. डबल मार्कर टेस्ट के दौरान - During Double Marker Test in Hindi
  5. डबल मार्कर टेस्ट के परिणाम और नॉर्मल रेंज - Double Marker Test Result and Normal Range in Hindi

डबल मार्कर टेस्ट उस तरह का टेस्ट है, जिसमें बच्चे के गुणसूत्र के विकास में आने वाली परेशानियों या दिक्कतों की जांच की जाती है। गुणसूत्र में किसी तरह की कमी बच्चे के भ्रूण के विकास में बाधक या विकृति का कारण हो सकता है या फिर इसके कारण बच्चे में जीवन के किसी उम्र में किसी प्रकार विकास में बाधक हो सकती है। जांच के माध्यम से अगर शुरूआत में ही उस क्रोमोसोम की पहचान कर ली जाए, जिसमें डाउन सिंड्रोम, इडवार्ड सिंड्रोम जैसे किसी विशेष तरह की विकृति है तो उस क्रोमोसोम का समय रहते उपचार करके ठीक किया जा सकता है। 

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डबल मार्कर टेस्ट एक तरह का जाना-माना टेस्ट है।  गर्भावस्था के दौरान किसी तरह की परेशानी होने की स्थिति में इसके द्वारा बहुत हद तक सटीक परिणाम पाए जा सकते हैं। यहां तक कि अगर टेस्ट पॉजिटिव रिजल्ट देता है तो समस्या का सटीक पता लगाने के लिए कुछ और जांच कराए जा सकते हैं। गर्भावस्था के दौरान डॉक्टर एक एडवांस टेस्ट करवाते हैं। इस टेस्ट के माध्यम से वो यह जानना चाहते हैं कि कहीं बच्चे को डाउन सिंड्रोम या इस तरह की कोई अन्य समस्या तो नहीं है। जांच करने के बाद अगर जांच रिपोर्ट पॉजिटिव आती है और न्यूरोलॉजिकल स्थिति का निदान किया जा चुका है तो आप गर्भावस्था के शुरूआती दिनों में गर्भपात भी करा सकते हैं।

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बल मार्कर टेस्ट एक तरह का ब्लड टेस्ट है। इसलिए आपको इस जांच को करवाने से पहले किसी तरह की जांच की जरूरत नहीं है। लेकिन अगर आप किसी तरह की दवा, हर्ब्स या औषधि जैसी किसी चीज का इस्तेमाल करते हैं तो अपने डॉक्टर को इस बारे में सबकुछ बता दें। कुछ दुर्लभ स्थितियों में डॉक्टर आपको टेस्ट होने तक किसी दवा का इस्तेमाल करने से रोक सकते हैं।

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इस टेस्ट को करने का तरीका बिल्कुल सीधा है। इसमें कुछ भी नया नहीं है। साधारण शब्दों में कहें तो यह अल्ट्रासाउंड के साथ किया जाने वाला एक तरह का ब्लड टेस्ट है। खून का सैंपल लेने के बाद उसमें हार्मोन और प्रोटीन की जांच की जाती है। हार्मोन एक तरह का फ्री बीटा ह्यूमन कोरियॉनिक गोनाडोट्रोफिन होता है। ग्लाईकोप्रोटीन हार्मोन प्लेसेंटा द्वारा गर्भावस्था के दौरान विकसित होता है। इसके अलावा दूसरा प्रोटीन पीएपीपी-ए नाम से जाना जाता है। इसे प्रेगनेंसी-एसोसिएटेड प्लेसेंटा नाम से भी जाना जाता है। यह भी गर्भवती महिलाओं के लिए एक एक महत्वपूर्ण प्रोटीन है।

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डबल मार्कर टेस्ट का रिजल्ट सामान्यतौर पर दो कैटेगरी में होता है। यह या तो पॉजिटिव होता है या फिर निगेटिव होता है। ये रिजल्ट केवल ब्लड टेस्ट पर निर्भर नहीं करते हैं, ये मां की उम्र और अल्ट्रॉसाउंड के दौरान गर्भ में पाए गये भ्रूण की उम्र पर भी निर्भर करते हैं। ये सभी फैक्टर टेस्ट के रिजल्ट पर काम करते हैं। कम उम्र की महिलाओं की अपेक्षा, 35 साल से अधिक की उम्र की गर्भवती महिलाओं के गर्भ में पल रहे बच्चे में न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर होने की संभावनाएं ज्यादा होती हैं। 

जांच के रिजल्ट रेशियों के फॉर्म में दिये जाते हैं। 1:10 से 1:250 के रेशियों को "स्क्रीन पॉजिटिव" कहा जाता है। जबकि 1:1000 के रेशियो को "स्क्रीन निगेटिव" कहा जाता है। स्क्रीन निगेटिव रिजल्ट बहुत कम खतरे को दर्शाता है।

यह रेशियो एक तरह से बच्चे में किसी तरह के डिसऑर्डर होने के पॉइंटर का काम करता है। यानी इसी रेशियो से यह जाना जाता है कि बच्चा किस हद तक सुरक्षित है। हर रेशियो यह बताता है कि कितने गर्भधारणों के बाद किसी एक बच्चे में डिसऑर्डर होने की संभावना है। यानी 1:10 का रेशियो बताता है कि उस महिला द्वारा 10 गर्भावस्था के बाद किसी 1 बच्चे में डिसऑर्डर होने की संभावना है। इसी तरह से 1:1000 का मदलब है कि उस महिला द्वारा 1000 गर्भधारणों में से किसी 1 बच्चे में डिसऑर्डर होने की संभावना है यानी यह संभावना बहुत कम है।

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