कोविड-19 बीमारी की टेस्टिंग को लेकर हाल के दिनों में रैपिड एंटीबॉटी टेस्ट किट काफी चर्चा में रही। लेकिन इनसे सटीक परिणाम नहीं मिलने की काफी शिकायतें आई थीं। इसके बाद भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद यानी आईसीएमआर ने पहले इन किट्स पर रोक लगाई और बाद में इन्हें वापस करने का फैसला किया। अब खबर है कि आईसीएमआर शायद आगे से इन किट की खरीद ही ना करे। अंग्रेजी अखबार इकनॉमिक टाइम्स की अपनी एक रिपोर्ट से संकेत मिलते हैं कि अब कोरोना वायरस से जुड़े मामलों की जांच के लिए 'रिवर्स ट्रांसक्रिप्शन पोलीमरेज चेन रिएक्शन' यानी आरटी-पीसीआर तकनीक को ही अपनाया जाएगा। गौरतलब है कि कोविड-19 की टेस्टिंग के लिए इस तकनीक को सबसे सटीक माना जाता है।

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वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों के हवाले से अखबार ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि आईसीएमआर अब एंटीबॉडी रैपिड टेस्ट किट की आपूर्ति के लिए नए ऑर्डर नहीं देगा। इसके बजाय संस्थान ने आरटी-पीसीआर किट बनाने वाली कंपनियों को इसका उत्पादन बढ़ाने का कहा है। एक अधिकारी ने अखबार से बातचीत में कहा, ‘अभी हम एंटीबॉडी टेस्ट किट के बारे में नहीं सोच रहे हैं और आरटी-पीसीआर टेस्ट को बढ़ाने की योजना है।’ अधिकारी ने आगे कहा, 'एंटीबॉडी टेस्ट किट को लेकर कुछ ऑर्डर दक्षिण कोरिया और दो भारतीय कंपनियों के साथ लंबित हैं, लेकिन कोई नया ऑर्डर नहीं दिया जाएगा।' गौरतलब है कि दो चीनी फर्मों के साथ 20 लाख टेस्ट किट के ऑर्डर को पहले ही रद्द किया जा चुका है।

टेस्टिंग बढ़ाने की कोशिश
आईसीएमआर ने हाल ही में चीनी कंपनियों से आरटी-पीसीआर और एंटीबॉडी टेस्ट किट दोनों की खरीद के लिए टेंडर जारी किए थे। एंडीबॉडी रैपिड टेस्ट के जरिए कम समय में तेजी से परीक्षण की उम्मीद की गई थी। लेकिन बंगाल और राजस्थान में हुए टेस्टों में मिली खामियों के बाद आईसीएमआर ने अब अपनी योजना को नए सिरे से तैयार किया है। अधिकारियों ने बताया कि निजी प्रयोगशालाओं से सीमित भागीदारी के बावजूद वे एक दिन में 50,000 टेस्ट करने में सक्षम हैं और अब टेस्टिंग प्रक्रिया को तेज करते हुए उन्होंने प्रतिदिन एक लाख परीक्षण करने का लक्ष्य रखा है।

आईसीएमआर की अन्य समस्याएं
कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई में केंद्र सरकार की तरफ से सबसे अहम भूमिका निभा रहे आईसीएमआर की मुश्किल केवल रैपिड एंटीबॉडी टेस्टिंग किट नहीं रही हैं। इसके अलावा भी कई समस्याएं हैं, जिससे उसकी परेशानी बढ़ी है। अखबार से बातचीत में एक स्वास्थ्य सामाजिक कार्यकर्ता ने कहा कि सरकार में बैठे स्वास्थ्य अधिकारी और विशेषज्ञ कोविड-19 को लेकर स्पष्ट दिशा-निर्देश देने में असफल रहे हैं। वे कहते हैं, 'कई तरह की पेचीदगियां हैं। टेस्टिंग को तेज करना, प्लाज्मा थेरेपी और हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन (एचसीक्यू) का उपयोग करना।' स्वास्थ्य क्षेत्र में काम करने वाले कई लोगों का मानना है कि बिना किसी सबूत के एचसीक्यू को प्रमाणित कर देना सवाल खड़ा करता है। वहीं, कई राज्यों ने रोगियों पर प्लाज्मा थेरेपी करना शुरू कर दिया, जबकि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा है कि कोविड-19 के इलाज के लिए प्लाज्मा थेरेपी के इस्तेमाल को लेकर पर्याप्त सबूत नहीं हैं।

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