महाराष्ट्र में कोविड-19 के इलाज के लिए जिस मरीज पर पहली बार प्लाज्मा थेरेपी अपनाई गई थी उसकी मौत हो गई है। कोरोना वायरस से संक्रमित इस 52 वर्षीय मरीज को कुछ दिन पहले प्लाज्मा थेरेपी दी गई थी। हालांकि, इसके बाद भी उसकी जान नहीं बची। बीते बुधवार को मरीज ने मुंबई स्थित लीलावती अस्पताल में दम तोड़ दिया। खबर के मुताबिक, मृतक को सेप्टिसीमिया (घाव का सड़ना) और सांस की तकलीफ (एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम) थी। डॉक्टरों का कहना है कि प्लाज्मा थेरेपी से उसकी हालत में मामूली सुधार हुआ था।

यह मामला ऐसे समय में सामने आया है, जब कोविड-19 का इलाज नहीं होने की सूरत में भारत समेत पूरी दुनिया में प्लाज्मा थेरेपी को इस बीमारी के नियंत्रण के एक कारगर उपाय के रूप में देखा जा रहा है। हालांकि सरकार ने साफ किया है कि यह थेरेपी इस बीमारी का कोई मान्य इलाज नहीं है और फिलहाल ट्रायल के तहत आजमाई जा रही है। मंगलवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल ने कहा था कि अगर प्लाज्मा थेरेपी को सही तरीके से इस्तेमाल न किया जाए तो इसके विपरीत प्रभाव भी देखने को मिल सकते हैं।

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इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, मरीज की हालत ऐसी हो गई थी कि उसका इम्यून सिस्टम ही शरीर के अंगों को नुकसान पहुंचा रहा था। इस स्थिति को साइटोकाइन स्टॉर्म कहते हैं। अखबार ने बताया कि ऐसे में डॉक्टरों ने 'दया के आधार' पर मरीज पर प्लाज्मा थेरेपी आजमाने का फैसला किया।

इसके बाद 25 अप्रैल को मरीज के शरीर में 200 मिलीलीटर प्लाज्मा डाला गया। इसके अलावा भी उसकी सेहत में सुधार लाने के लिए अन्य प्रयास किए जाते रहे। लेकिन पीड़ित की हालत में फिर भी कोई सकारात्मत बदलाव नहीं हुआ। रिपोर्ट के मुताबिक, मरीज के एक्स-रे से पता चला कि उसके फेफड़ों में सफेद धब्बे पड़ गए थे और शरीर में ऑक्सीजन का स्तर गिर गया था। डॉक्टरों ने रिटोनावीर और लोपीनावीर के साथ टॉसिलिजुमाब दवा का मिश्रण भी आजमाया, लेकिन कामयाबी नहीं मिली। आखिरकार मरीज की मौत हो गई।

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यहां बताते चलें कि यह पहली बार नहीं है जब प्लाज्मा थेरेपी दिए जाने के बाद भी कोविड-19 के मरीज की मौत हुई है। इससे पहले दिल्ली के मैक्स अस्पताल में जिस 49 वर्षीय मरीज को इसी थेरेपी की मदद से ठीक किया गया था, उसके पिता की जान इस उपाय को अपनाने के बाद भी नहीं बचाई जा सकी थी।

प्लाज्मा थेरेपी क्या है?
किसी वायरस (जैसे कोरोना वायरस) के प्रभाव में आने पर उससे लड़ने के लिए शरीर रोग-प्रतिकारकों को रिलीज (छोड़ना) करता है। ये रोग-प्रतिकारक या एंटीबॉडीज हमारे इम्यून सिस्टम से जुड़ी सेल्स में छिपे रहते हैं और मुसीबत के समय सामने आते हैं। इन सेल्स को 'बी लिम्फोसाइट्स' कहते हैं, जो खून में शामिल प्लाज्मा में पाई जाती हैं। वायरस से उबरने के बाद शरीर ये एंटीबॉडीज विकसित कर लेता है। ये खून में बने रहते हैं और उसी वायरस के दोबारा आने पर उस पर हमला करने के लिए तैयार रहते हैं।

भारत समेत कई देशों के शोधकर्ता और विशेषज्ञ प्लाज्मा थेरेपी की मदद से कोविड-19 का तोड़ निकालने की कोशिश में लगे हैं। इस थेरेपी में बीमारी से ठीक हुए लोगों के शरीर से प्लाज्मा निकाल कर उन मरीजों में डाले जाते हैं, जो उसी बीमारी से जूझ रहे होते हैं। चूंकि कोविड-19 या अन्य संक्रामक रोग होने के प्रतिक्रिया स्वरूप हमारा शरीर एंटीबॉडीज का निर्माण कर लेता है, इसलिए ये संक्रामक रोगों से लड़ने में अहम भूमिका निभा सकते हैं।

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जिन लोगों की रोग-प्रतिकारक क्षमता या इम्यून सिस्टम पहले से मजबूत होती है या इलाज के दौरान दुरुस्त हो जाती है, वे आसानी से कोरोना वायरस के संक्रमण को मात दे देते हैं। यही वजह है कि शोधकर्ता कोविड-19 की काट ढूंढने के लिए प्रयोग के तहत ऐसे लोगों के ब्लड सैंपल में से प्लाज्मा अलग करके उन लोगों को दे रहे हैं, जिनमें एंटीबॉडीज या तो बने नहीं है या वायरस को रोक पाने में सक्षम नहीं हैं।


उत्पाद या दवाइयाँ जिनमें कोरोना वायरस: महाराष्ट्र में प्लाज्मा थेरेपी के बाद भी नहीं बची कोविड-19 के मरीज की जान है

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