सामाजिक मुद्दों और सच्ची घटनाओं पर आधारित फिल्में और कहानियां, हमेशा ही चर्चा का विषय रही हैं। 'टॉयलेट - एक प्रेम कथा' जहां खुले में शौच के खिलाफ स्वच्छता का गंभीर संदेश देती है, वहीं 'पैडमैन' एक ऐसे शख्स की कहानी बयां करती है जो माहवारी के दौरान अपनी पत्नी की व्यक्तिगत स्वच्छता और स्वास्थ्य को लेकर चिंतित है। फिर इस चिंता से ही प्रेरित होकर वह माहवारी के दौरान महिलाओं की जरूरत को ध्यान में रखकर सैनिटरी पैड बनाने लगता है।

इस तरह से देखा जाए तो समाज के अंदर बदलाव को लेकर सिनेमा की बड़ी भूमिका रही है। नारी के आत्मसम्मान और सामाजिक सरोकार को लेकर आज भारतीय सिनेमा गंभीरता के साथ काम कर रहा है। इसका ताजा उदाहरण “छपाक” जैसी वह फिल्म है, जिसमें क्रोध और बदले की ज्वाला में तेजाब रूपी आग का शिकार हुई एक स्त्री के साहस और उसके जज्बे को दिखाया गया है।

दरअसल “छपाक”, महिलाओं पर हुए एसिड अटैक पर आधारित फिल्म है, जिसमें एसिड अटैक पीड़ित लक्ष्मी अग्रवाल और उसके जैसी तमाम महिलाओं की स्थिति को दर्शाया गया है। खैर इन घटनाओं के बाद कानून में कई तरह के बदलाव हुए। कई तरह के नए नियम बनाए गए, लेकिन सवाल उठता है कि क्या इस तरह से एसिड अटैक की घटनाएं कम हुई हैं। साथ ही सबसे बड़ा सवाल इस तरह की गंभीर घटना के बाद वह महिलाएं कैसे अपना जीवन व्यतीत कर रही हैं? आज हम अपने इस लेख में उन चुनौतियों की बात करेंगे जिनका सामना एसिड अटैक के पीड़ितों को करना पड़ता है।

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क्या है एसिड अटैक
एसिड अटैक को, एसिड फेंकना, विट्रीओल अटैक या विट्रीओलेज भी कहा जाता है। यह हिंसा का एक रूप है। ऐसा करने वाले का मकसद किसी को जान से मारने या फिर जिंदगी भर के लिए यातना देना हो सकता है। पीड़ित व्यक्ति को नुकसान पहुंचाने के लिए अपराधी उसके चेहरे या फिर त्वचा को खराब करने के लक्ष्य से एसिड से हमला करता है। एसिड के आंख के संपर्क में आने पर आंखों की रौशनी हमेशा के लिए जा सकती है।

एसिड अटैक के बाद इलाज?
एसिड अटैक के बाद इलाज तो संभव है, बावजूद इसके अधिकांश पीड़ित एक अंदरूनी जख्म के साथ जीवन जीते हैं। दरअसल तेजाब की जलन के बाद शरीर के ऊपरी घाव जरूर भर जाते हैं, लेकिन उसके निशान ताउम्र उस खौफनाक मंजर को ताजा रखते हैं।

myUpchar से जुड़ी डॉक्टर जैसमीन कौर के मुताबिक एसिड या तेजाब में सल्फ्यूरिक एसिड, हाइड्रोक्लोरिक एसिड, सोडियम हाइड्रोक्साइड नाम के कैमिकल होते हैं, जिनके संपर्क में आने के बाद जलन महसूस होती है और कुछ ही पल में शरीर का वह हिस्सा जहां एसिड गिरा हो वह जल जाता है। डॉक्टर बतातीं है कि ऐसी स्थिति में प्राथमिक उपचार के तौर पर कुछ विकल्प हो सकते हैं, जैसे-

  • पीड़ित व्यक्ति को जल्द से जल्द अस्पताल लेकर पहुंचे
  • एसिड अटैक के बाद शरीर के प्रभावित हिस्से पर 10 मिनट तक ठंडा पानी डालें, ताकि शरीर से एसिड पूरी तरह से साफ हो जाए।
  • इसके अलावा प्रभावित हिस्से में अगर कोई ज्वैलरी पहनी है तो उसे निकाल दें। साथ ही जहां एसिड गिरा है वहां से कपड़ों को निकाल दें।
  • प्रभावित अंग पर जिनता जल्दी पानी डाला जाएगा, एसिड का असर उतना कम होगा और जल्दी इलाज मिलने पर शरीर को कम नुकसान होगा।

कैसे होता है बर्न का इलाज
डॉक्टर जैसमीन कौर के मुताबिक कैमिकल बर्न पर ही पूरा टीट्रमेंट निर्भर करता है। अगर कम डिग्री का बर्न हुआ है तो उसे दवाई और पट्टी के जरिए ठीक किया जा सकता है, लेकिन ज्यादा बर्न या ज्यादा घाव की स्थिति में जख्म को भरने के लिए सर्जरी भी की जाती है।

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एसिड अटैक के बाद नुकसान की भरपाई कैसे?
myUpchar से जुड़ी डॉक्टर फतमा के मुताबिक एसिड अटैक से संबंधित अधिकांश मामले महिलाओं से जुड़े होते हैं और ज्यादातर महिलाओं को इस ट्रामा के दर्द से निकलने में बहुत समय लगता है। बर्न या जलने के जो निशाना रह जाते हैं, वो भी उनके अंदर मानसिक तनाव का कारण बनते हैं। डॉक्टर के मुताबिक एसिड अटैक के कारण, जो अंग खराब हो जाते हैं उनकी रिकवरी के लिए सर्जरी होती है।

इसके अलावा कोई इंफेक्शन न हो इसके लिए पीड़ित व्यक्ति को पूरी उम्र भर दवा या स्टेरॉयड लेने होते हैं। हालांकि, यह डॉक्टर और मरीज की हालात पर निर्भर करता है कि कौन सी दवाई दी जाए। डॉक्टर के मुताबिक एसिड के चलते स्किन की सभी लेयर या परतें पूरी तरह से जल जाती हैं। इसलिए स्कीन को इतना ही रिकवर या ठीक किया जाता है, जिससे कि पीड़ित व्यक्ति एक सामान्य जीवन जी सके। इससे ज्यादा सर्जरी होना मुश्किल होता।

एसिड अटैक के बाद जीवन कितना मुश्किल
एसिड अटैक के बाद मिलने वाला दर्द पीड़ित को केवल शारीरिक रूप से प्रभावित नहीं करता, बल्कि यह दर्द  मानसिक रूप से भी प्रताड़ित करता है। इसके चलते व्यक्ति डिप्रेशन, चिंता और पोस्ट-ट्यूमेटिक स्ट्रेस (एक मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति है, जिसका सीधा संबंध व्यक्ति के साथ घटी किसी भयानक घटना से होता है।) का शिकार हो जाता है और इसके कारण वह खुद को समाज और दोस्त-रिश्तेदारों से अलग महसूस करने लगता है।

ये आंकड़े डराने के लिए काफी हैं
इंडियन जनरल बर्न में प्रकाशित एक रिसर्च के मुताबिक जुलाई 2012 से लेकर जून 2017 के बीच एसिड अटैक पीड़ित ऐसे लोगों पर एनालिटिकल और ऑर्ब्जवेशनल अध्ययन किया गया। एसिड अटैक पीड़ितों पर हुए इस अध्ययन में करीब 52 मामले शामिल थे और यह सभी लोग प्लास्टिक सर्जरी विभाग में भर्ती हुए थे।

मौटे तौर पर देखें तो करीब 50 प्रतिशत से अधिक पीड़ित लोग 30 साल की उम्र या उससे अधिक के थे, जबकि बाकी बचे लोगों में से अधिकांश की उम्र 18 से 28 साल की थी। रिपोर्ट से पता चलता है कि इस दौरान एसिड अटैक का एक बड़ा कारण रिलेशनशिप (संबंधों को खराब होना) था।

कुल 65 प्रतिशत पीड़ित शहरी क्षेत्रों से थे। 90 प्रतिशत से अधिक मामलों में चेहरे पर एसिड अटैक हुआ था, जबकि इनमें से 2 प्रतिशत ऐसे थे जिनका चेहरा एसिड से पूरी तरह से जल गया था। जहां तक संभव था, सर्जरी के जरिए  इन लोगों को कार्यात्मक और कॉस्मेटिक रूप से ठीक किया गया।

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ये है एसिड अटैक पीड़ित लक्ष्मी की कहानी
करीब 15 साल पहले की बात है यानि साल 2005 की। जब राजधानी दिल्ली की गलियों में 15 साल की उम्र में लक्ष्मी नाम की एक लड़की पर 32 वर्षीय सिरफिरे नदीम खान ने एसिड अटैक (तेजाब डालकर हमला) किया था। शरीर ही नहीं रूह को झुलसाने वाली इस घटना के बाद लक्ष्मी की जिंदगी में इतना बड़ा परिवर्तन आया है, जिसके बारे में उसने कभी सोचा भी नहीं होगा। तेजाब की जलन से उसकी बाहरी सुंदरता पूरी तरह से खत्म हो चुकी थी, लेकिन उसने अपने आंतरिक सौंदर्य (मन) के बल पर जिंदगी को आगे बढ़ाया।

वैसे तो एसिड अटैक के कई पीड़ित हैं, लेकिन भारत में लक्ष्मी अग्रवाल वह उदाहरण है, जिसने अपने साथ हुई इस घटना के बाद हार नहीं मानी। वह आगे बढ़ी और देश की सर्वोच्च अदालत में एसिड की ब्रिकी पर रोक लगाने को लेकर लड़ाई लड़ी। हालांकि, वो जीती जरूर लेकिन लक्ष्मी के लिए आगे का जीवन जीना आसान नहीं था।

लक्ष्मी बताती हैं कि इस समाज में रहने वाले लोग बहुत खराब हैं, क्योंकि यहां सामान्य रंगभेद के चलते कुछ लोगों को घृणा की नजर से देखा जाता है, तो मैं कौन हूं। मैं पीड़ित थी और मेरे पास शर्मिंदगी महसूस करने के अलावा कुछ नहीं था, लेकिन मैंने फैसला लिया कि इसके लिए मैं खुद को दोषी क्यों समझूं। मैंने खुद का और अपने परिवार का साहस बढ़ाया। मैं अपने आपको बचाने और अपनी कहानी लोगों तक पहुंचाने के लिए निकल पड़ी, ताकि मेरी जैसी किसी पीड़ित महिला को अपने आप से शर्मिंदगी या घृणा महसूस ना करनी पड़े।

एसिड अटैक एक घिनौना कृत्य है, जिसके बाद पीड़ित को इलाज से लेकर आगे के जीवन में एक असहनीय दर्द से गुजरना पड़ता है। हालांकि, छपाक जैसी फिल्म एसिड पीड़ितों को समाज में सम्मान दिलाने का काम करती हैं, जो कि बेहद जरूरी है।

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