शिशुओं का दिन में सोना और रात में जागना सामान्य है, लेकिन जो पहली बार माता-पिता बनते हैं, उन्हें इससे परेशानी होती है. शिशु के रात में जागने पर माता-पिता को भी उसके साथ पूरी रात जागना पड़ता है. रात में उसे सुलाना माता-पिता के लिए सबसे मुश्किल काम हो जाता है. ऐसे में कुछ टिप्स को अपनाकर बच्चे के नींद के पैटर्न को सेट किया जा सकता है. इसके लिए बच्चे का बेड टाइम रूटीन सेट करके व बच्चे के नींद के पैटर्न को समझकर इस परेशानी को कम किया जा सकता है.

आज इस लेख में आप जानेंगे कि बच्चे को पूरी रात कैसे सुलाएं -

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  1. बच्चे को रातभर सुलाने के उपाय
  2. ये चीजें कभी न करें
  3. सारांश
बच्चे को पूरी रात सुलाने के तरीके के डॉक्टर

नवजात शिशुओं को रात में सुलाना नए पेरेंट्स के लिए बड़ा टास्क साबित हो सकता है. ऐसे में पेरेंट्स कुछ तरीकों को अपनाकर बच्चे को पूरी रात आसानी से सुला सकते हैं. इसके लिए बच्चे का स्लीपिंग शेड्यूल बना सकते हैं. साथ ही बच्चे के नींद के पैटर्न को समझना भी जरूरी हैं. आइए, बच्चे को पूरी रात सुलाए रखने के टिप्स के बारे में विस्तार से जानते हैं -

बच्चे की नींद की जरूरत को समझें

जन्म के बाद शुरुआती दो महीने तक बच्चा 10 से 18 घंटे तक सो सकता है. कई बार एक साथ 3 से 4 घंटे तक भी बच्चा सोता है. दरअसल, बच्चे को दिन और रात के समय में फर्क का पता नहीं होता है. ऐसे में हो सकता है कि बच्चे के जगने का समय देर रात 1 बजे से लेकर सुबह 5 बजे तक हो. 3 से 6 महीने तक बच्चा 6 घंटे तक लगातार सोना सीख जाता है, लेकिन सोने के सही पैटर्न में 6 से 9 महीने के बीच ही आ पाता है. कई बार बच्चा सोते हुए इसलिए भी जाग जाता है, क्योंकि वो सोते समय आपको अपने आसपास देखना चाहता है.

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बच्चे का बेडटाइम रूटीन सेट करें

7 से 36 महीने के शिशुओं के साथ 405 मांओं पर रिसर्च की गई, जिसमें पाया गया कि जो पेरेंट्स नाइट बेडटाइम रूटीन फॉलो करते हैं, उनके शिशुओं को आसानी से नींद आ जाती है. वे बेहतर नींद सोते हैं और आधी रात में कम ही रोते हैं. कुछ पेरेंट्स अपने बच्चों का बेडटाइम रूटीन बच्चे के जन्म के 6 से 8 वीक के बाद ही शुरू कर देते हैं. बच्चे का बेडटाइम रूटीन किसी भी रेगुलर बेडटाइम एक्टिविटी से शुरू किया जा सकता है, जैसे -

  • दिन के समय ऐसे गेम्स खेलें, जिससे बच्चा ज्यादा एक्टिव रहे और शाम के समय ऐसे गेम्‍स खेलें, जिससे बच्चे को थकान महसूस हो. ऐसा करने से बच्चा रात के समय आसानी से थककर सो सकता है.
  • रेगुलर बेडटाइम एक्टिविटी का टाइम और पैटर्न एक जैसा ही रखें, इससे बच्चे को जल्दी आदत पड़ जाती है.
  • ध्यान रहे कि शाम होने तक हर एक्टिविटी शांत और बहुत उत्तेजित करने वाली न हो. कई बच्चे‍ सोने से पहले मालिश करवाना पसंद करते हैं. इससे वे बहुत शांत महसूस करते हैं.
  • बच्चे की फेवरेट एक्टिविटी को रात के लिए रखे और बेडरूम में सोने से पहले उसे करवाएं, इससे बच्चे को आसानी से रात में सोने में मदद मिलेगी.
  • ध्यान रखें कि बच्चा जब सो रहा हो, तो कमरे में अंधेर और शांती हो. अगर वो आधी रात को जागता भी है, तो बच्चे को वैसा ही मा‍हौल मिले जैसा उसके सोते समय था. बच्चे को ब्रेस्टफीड करवाते समय कम बात करें और लाइट्स कम रखें. इससे बच्चे को दोबारा सुलाने में आसानी होती है.

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बच्चे को आधी नींद में बेड पर सुलाएं

जब आपका बच्चा 6 से 12 सप्ताह का होता है, तो उन्हें उस समय बेड पर सुलाना चाहिए, जब वो हल्की नींद में हो. बच्चे के पूरी तरह सोने का इंतजार किए बिना ही उन्हें बेड पर सुलाना चाहिए. इससे बच्चा जल्दी ही अकेला सोना सीखने लगता है. इसके साथ ही आपको हर बार बच्चे के बीच में नींद से जागने पर गोद में लेकर टहलना या कडलिंग की जरूरत नहीं पड़ेगी.

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एसआईडीएस रिस्क हो सकता है कम

अमेरिकन अकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स ये सुझाव देती है कि बच्चे को बेड पर सुलाते समय कुछ टिप्स को जरूर फॉलो करें, ताकि बच्चे को सडन इंफेंट डेथ सिंड्रोम (Sudden Infant Death Syndrome) से बचाया जा सके. ये टिप्स हैं -

  • बच्चे को हमेशा पीठ के बल ही सुलाएं.
  • 6 महीने से 1 वर्ष तक बच्चे को अपने रूम में ही सुलाएं, लेकिन अपने बेड पर नहीं. साथ ही बच्चे की बेडिंग, पिलो, ब्लैंकेट्स नरम व मुलायम होनी चाहिए.
  • ऐसी डिवाइस पर यकीन न करें, जो एसआईडीएस से बचाने का दावा करती हैं.
  • बच्चे को बहुत गर्म रखने या मुंह को ढकने से बचें.
  • सुनिश्चित करें कि बच्चे को सभी जरूरी वैक्सीन लग गई हों.
  • बच्चे के कमरे में धूम्रपान न करें.
  • समय-समय पर बच्चे को ब्रेस्टफीड करवाते रहें.

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बच्चे को रोने दें

बच्चे को कुछ देर रोने देना भी उसे सुलाने का तरीका है. इस प्रक्रिया को फेरबर मैथड कहा जाता है. इस ट्रेनिंग का मकसद बच्चे को ये सिखाना होता है कि वे खुद से कैसे सोएं और अगर आधी रात को उठ गया है, तो बिना किसी की मदद के अपने आप दोबारा सो जाएं. बोस्टन में सेंटर फॉर पीडियाट्रिक स्लीप डिसऑर्डर के एमडी, डायरेक्टर रिचर्ड फेरबर ने इस मैथड के बारे में बताया था. उनके मुताबिक, 5 से 6 महीने होने के बाद ही बच्चे की ये ट्रेनिंग शुरू करनी चाहिए. इस मैथड के तहत निम्न प्रक्रिया अपनाई जाती है -

  • बच्चे को पालने में उस समय लेटाएं, जब वो आधी नींद में हो. जब बच्चे का बेडटाइम रूटीन खत्म हो जाए, तो कमरे से बाहर आ जाएं.
  • अगर बच्चा रोता है, तो बच्चे के पास जाने से पहले कुछ मिनट इंतजार करें. आप एक से पांच मिनट तक इंतजार कर सकते हैं. इस प्रक्रिया को रोजाना दोहराएं और इंतजार करने का समय धीरे-धीरे बढ़ाएं.
  • जब बच्चे के रूम में दोबारा जाएं, तो बच्चे को थपथपाएं या उसे दोबारा सुलाने की कोशिश करें, लेकिन उसे गोद में न लें. अगर गोद में ले रहे हैं, तो 2 से 3 मिनट बाद वापस पालने में सुला दें, फिर चाहे वो रो रहा हो तब भी. आपका चेहरा देखना ही आपके बच्चे के लिए काफी है, हो सकता है आपको देखकर बच्चा दोबारा सो जाए.
  • शुरुआती समय में इस प्रक्रिया को अपनाना थोड़ा मुश्किल भरा हो सकता है, लेकिन आप 3 से 4 दिन बाद धीरे-धीरे बच्चे के स्लीप पैटर्न में सुधार देख सकते हैं. कई बच्चों के स्लीपिंग पैटर्न में सुधार होने में एक सप्ताह भी लग सकता है.

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कुछ पेरेंट्स बच्चे को पूरी रात सुलाने के लिए ऐसी चीजें करते हैं, जो बच्चे की सेहत के लिए नुकसानदायक हो सकती हैं जैसे -

बच्चे को दिनभर जगाना

बच्चों को पूरी रात सुलाने के लिए कई पेरेंट्स बच्चों को दिनभर सोने नहीं देते. पीडियाट्रिक्स डॉ. मौरीन अहमन का कहना है कि बच्चे को दिनभर जगाए रखने से उसे रात तक थकान व तनाव इतना अधिक हो जाता है कि बच्चे को रात को सोने में दिक्कत आने लगती है.

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रात में सोते समय खिलाना

अधिकतर लोग मानते हैं कि बच्चे को खिलाकर सुलाने से उसका पेट भरा रहता है और बच्चा आधी रात को नहीं उठता. वहीं, डॉ. मौरीन अहमन का कहना है कि ऐसा करना गलत है, क्योंकि शुरुआती समय में बच्चे को सिर्फ मां का दूध या फॉर्मूला मिल्क ही देना चाहिए.

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नए पेरेंट्स के लिए बच्चे की रात में नींद पूरी होना सबसे जरूरी होता है, लेकिन अधिकतर शिशु रातभर जगाते हैं. ऐसे में आप कुछ ट्रिक्स और ट्रेनिंग मैथड के जरिए बच्चे को रातभर सुलाने में सफल हो सकते हैं. इसके लिए बच्चे की नींद की जरूरत को समझना व बच्चे का बेडटाइम रूटीन सेट करना जरूरी है. बच्चे की नींद, स्लीपिंग पैटर्न और ट्रेनिंग के लिए पीडियाट्रिक्स से सलाह ली जा सकती है.

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