बच्चे एक्टिव रहें, तो माता-पिता को खुशी मिलती है. वहीं, कुछ बच्चे ऐसे होते हैं, जो हल्की-फुल्की एक्टिविटी करने के बाद थक जाते हैं. ऐसे बच्चे अक्सर थकान महसूस होने की शिकायत करते हैं. इसका कारण बच्चों का शारीरिक रूप से कमजोर होना हो सकता है. बच्चों में कमजोरी के लक्षण थकान के साथ-साथ कुछ अन्य भी दिख सकते हैं, जैसे- लेट तक सोना, खेलने-कूदने से कतराना, चक्कर आना इत्यादि. बच्चों में कमजोरी के कारणों की बात कि जाए, तो शरीर में खून की कमी, अस्थमा व डिप्रेशन इत्यादि हो सकते हैं. इन कारणों के आधार पर बच्चों की कमजोरी का इलाज किया जा सकता है.

आज इस लेख में आप बच्चों में कमजोरी के लक्षण, कारण और उपायों के बारे में विस्तार से जानेंगे -

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  1. बच्चों में कमजोरी के कारण व लक्षण
  2. बच्चों में कमजोरी का इलाज
  3. सारांश
बच्चों में कमजोरी के लक्षण, कारण व इलाज के डॉक्टर

बच्चों में कमजोरी के कई कारण हो सकते हैं, जिसमें स्लीप एपनिया, दवाइयों का अधिक सेवन व अनिद्रा इत्यादि हो सकता है. आइए, इन कारणों व इस दौरान नजर आने वाले लक्षणों के बारे में विस्तार से जानते हैं -

स्लीप एपनिया

हर समय थके रहना बच्चों में ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया (obstructive sleep apnea) का संकेत हो सकता है. यह ऐसी स्थिति है, जिसमें नींद के दौरान सांस लेने में परेशानी होती है. इस समस्या का कारण बच्चे का अधिक वजन, टॉन्सिल या एडेनोइड ग्रंथियां बढ़ जाना होता है. इसके अलावा, जबड़े या मुंह में किसी तरह की परेशानी होने की वजह से भी ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया होने की आशंका बढ़ जाती है.

बच्चों में स्लीप एपनिया के लक्षण -

  • सोते समय सांस लेने में परेशानी.
  • रात में बार-बार जगना.
  • सोते समय खर्राटे लेना.
  • जोर से सांस लेना.
  • बिस्तर गीला होना.
  • पढ़ाई में ध्यान केंद्रित न कर पाना, इत्यादि.

बच्चों में इस तरह के लक्षण दिखने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें.

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इमोशनल स्ट्रेस

बच्चा अगर किसी कारण से स्ट्रेस में है, तो भी उसे कमजोरी महसूस हो सकती है. ऐसे में माता-पिता को उसकी एक्टिविटी पर ध्यान देने की जरूरत होती है, साथ ही उससे बात करें और उसे स्ट्रेस से बाहर निकालने की कोशिश करें.

इमोशनल स्ट्रेस के लक्षण -

  • उदास रहना.
  • स्कूल जाने से मना करना.
  • खेलने में मन न लगना.
  • माता-पिता से दूरी बनाना इत्यादि.

इस स्थिति में माता-पिता को बच्चों से संपर्क बनाए रखना चाहिए. उन्हें डांटने या फिर मारने की बजाय प्यार से समझाने की कोशिश करनी चाहिए. साथ ही उनकी भावनाओं को भी समझने की कोशिश करनी चाहिए.

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अनिद्रा

कुछ बच्चों को रात में सही से नींद नहीं आती है, जिसकी वजह से उन्हें काफी ज्यादा थकान महसूस हो सकती है. इस स्थिति में बच्चों को रात में सोने से पहले गर्म पानी से नहाने की सलाह दें. उन्हें किताबें पढ़ने के लिए कहें. इन कोशिशों से बच्चों को अच्छी और गहरी नींद आ सकती है. इसके अलावा, बच्चों को सोने से करीब 15 मिनट पहले बिस्तर पर जाने के लिए कहें. रात में सोने और जगने का समय निर्धारित करें, ताकि उन्हें अच्छी और गहरी नींद आ सके.

अनिद्रा के लक्षण -

बच्चों में अनिद्रा के लक्षण लगभग बड़ों के समान ही होते हैं, जैसे -

  • रातभर करवटें बदलना.
  • बीच-बीच में उठकर बैठ जाना.
  • सोने से कतराना.
  • सुबह के समय नींद पूरी न होने की शिकायत करना.
  • दिनभर कमजोरी महसूस होना इत्यादि.

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नार्कोलेप्सी

बच्चों में शारीरिक कमजोरी का कारण नार्कोलेप्सी भी हो सकता है. इस स्थिति में बच्चों को दिन में बहुत नींद आने की शिकायत होती है. यह एक क्रोनिक स्लीप डिसऑर्डर है, जो बच्चों को प्रभावित करता है. नार्कोलेप्सी मस्तिष्क में हाइपोक्रेटिन (hypocretin) की कमी के कारण होता है. हाइपोक्रेटिन एक प्रकार का केमिकल होता है, जो बच्चों के सोने और जागने की क्षमता को नियंत्रित करता है.

नार्कोलेप्सी के लक्षण -

  • ज्यादा नींद आना.
  • हिलने और बोलने की क्षमता प्रभावित होना.
  • सोने और जागने के पैटर्न में बदलाव होना, इत्यादि.

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दवाओं का साइड-इफेक्ट

बच्चों द्वारा लेने वाली कुछ दवाओं के साइड-इफेक्ट की वजह से भी बच्चों को नींद की समस्या हो सकती है. इन दवाओं में एम्फैटेमिन और मिथाइलफेनाडेट (रिटालिन) इत्यादि शामिल हैं. इस तरह की दवाओं की वजह से बच्चों का स्लीपिंग पैटर्न प्रभावित होता है.

दवाओं के साइड-इफेक्ट्स के लक्षण -

बच्चों में कमजोरी के कुछ अन्य कारण व लक्षण

  • एपस्टीन-बार वायरस जैसे इन्फेक्शन की वजह से बच्चों में काफी ज्यादा थकान और कमजोरी बनी रहती है. यह थकान कुछ सप्ताह से लेकर कुछ महीनों तक बनी रहती है.
  • क्रोनिक डिजीज, जैसे अस्थमा के कारण भी बच्चों में काफी ज्यादा थकान बनी रहती है. इसके लक्षण बीमारी और इसकी गंभीरता पर निर्भर करता है.
  • शरीर में रेड ब्लड सेल्स ऑक्सीजन को सर्कुलेट करने का कार्य करती हैं. शरीर में पर्याप्त रूप से रेड ब्लड सेल्स न होने पर कमजोरी हो सकती है.
  • हाइपोथायरायडिज्म होने पर थायराइड ग्रंथि में थायराइड हार्मोन का उत्पादन अनियंत्रित हो जाता है और शरीर में मेटाबॉलिज्म धीमा हो जाता है. ऐसे में थकान महसूस हो सकती है.

इसके अलावा, कई कारणों से भी बच्चों को थकान महसूस हो सकती है. इनके लक्षणों को पहचानकर तुरंत इलाज कराएं, ताकि बच्चा एक्टिव और दुरुस्त हो सके.

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बच्चों में कमजोरी का इलाज इसके लक्षणों और कारणों पर निर्भर करता है, क्योंकि हर एक कारण का अलग-अलग इलाज हो सकता है. उदाहरण के लिए - बच्चों में आयरन की कमी से कमजोरी होने पर उन्हें आयरन थेरेपी दी जा सकती है, इससे उनके लक्षणों में सुधार किया जा सकता है. इसके साथ ही बच्चों के शरीर को एक्टिव बनाए रखने के लिए उन्हें लाइफस्टाइल में बदलाव की भी सलाह दे सकते हैं, जिसमें अच्छी नींद लेना, एक्सरसाइज करना, हेल्दी आहार लेना शामिल है. कुछ अन्य उपाय इस प्रकार हैं -

  • बच्चे की रोज की दिनचर्या व गतिविधियों पर नजर रखें और उसे हमेशा ऊर्जावान व स्वस्थ महसूस कराएं.
  • सोने से एक घंटा पहले ही बच्चे के कमरे में नींद का माहौल बनाना शुरू करें, जैसे - कमरे की रोशनी कम कर दें, टेलीविजन व अन्य इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरण बंद कर दें आदि.
  • कोशिश करें कि बच्चा पढ़ाई के अलावा अन्य गतिविधियों में प्रति सप्ताह तीन-चार दिन
  • समय जरूर दे.
  • प्रत्येक बच्चे को स्कूल का काम करने, दोस्तों के साथ घूमने या खेलने के लिए निश्चित समय तय करें.
  • अगर बच्चा पूरे वर्ष किसी खास खेल गतिविधि में शामिल रहता है, तो उसे इससे 2-3 महीने का ब्रेक जरूर दें, ताकि उसके माहौल व दिनचर्या में थोड़ा बदलाव आए.
  • अपने बच्चे को हमेशा स्वस्थ व पोषक तत्वों से युक्त भोजन करने के लिए प्रेरित करें और खूब पानी पीने के लिए प्रोत्साहित करें. इससे उसकी प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत होगी और थकान पैदा करने वाली बीमारी होने की आशंका कम होगी.

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बच्चों में कमजोरी के कई कारण हो सकते हैं. ऐसे में इनके कारणों को जानना जरूरी होता है. समय पर इनके कारणों को जानकर बच्चों का इलाज कराएं, ताकि इसकी गंभीरता को कम किया जा सके. वहीं, बच्चों को एक्टिव बनाए रखने के लिए माता-पिता को भी उनका साथ देना चाहिए. 

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