बार्टर सिंड्रोम किडनी की समस्याओं का एक समूह है जो कि पोटैशियम, सोडियम, क्लोराइड और अन्य अणुओं के असंतुलन के कारण होता है। कुछ मामलों में गर्भावस्था के दौरान बच्चे के आसपास एमनियोटिक द्रव की मात्रा बढ़ने के कारण यह स्थिति कुछ लोगों में जन्म से पहले से मौजूद होती है। इस स्थिति से प्रभावित बच्चों की ग्रोथ और वजन अपेक्षा अनुसार नहीं बढ़ पाता है। पानी की कमी, कब्ज और अधिक पेशाब करने के कारण शरीर से अधिक मात्रा में सोडियम क्लोराइड (नमक) निकल जाता है और कैल्शियम की कमी के कारण हड्डियों में कमजोरी आ सकती है। खून में पोटैशियम की कमी के कारण कमजोर मांसपेशियां, ऐंठन और थकान हो सकती है।

बार्टर सिंड्रोम कम से कम 5 जीन्स में से किसी एक की म्यूटेशन (उत्परिवर्तन) के कारण होता है और आमतौर पर यह ऑटोसोमल रिसेसिव के जरिए बच्चे को माता-पिता से मिलता है। बार्टर सिंड्रोम को कई प्रकार में बांटा गया है, जो कि उसकी होने की वजह, गंभीरता और इस स्थिति का कारण बनने वाली जीन पर निर्भर करता है। हालांकि बार्टर सिंड्रोम के दो मुख्य प्रकार होते हैं:

  • एंटीनेटल बार्टर सिंड्रोम
  • क्लासिक बार्टर सिंड्रोम

इसका इलाज सिंड्रोम के प्रकार पर निर्भर करता है लेकिन इसके इलाज में मुख्य रूप से शरीर में तरल पदार्थो और इलेक्ट्रोलाइट को संतुलित करना और उनका संतुलन कायम रखना होता है।

बार्टर सिंड्रोम के लक्षण:
एक ही स्थिति होने के बावजूद इसके लक्षण सभी व्यक्तियों में अलग-अलग हो सकते हैं। कुछ सामन्य लक्षणों में शामिल हैं:

  • क्लासिक बार्टर सिंड्रोम के लक्षण: 
    • कब्ज
    • अधिक पेशाब आना
    • आम तौर पर अस्वस्थ महसूस होना
    • मांसपेशियों में कमजोरी और ऐंठन आना
    • नमक खाने की इच्छा होना
    • बहुद ज्यादा प्यास लगना
    • शारीरिक वृद्धि व विकास सामान्य लोगों से कम होना
       
  • एंटीनेटल बार्टर सिंड्रोम के लक्षण:
    एंटीनेटल बार्टर सिंड्रोम को शिशु के जन्म से पहले ही पहचाना जा सकता है। इसकी बच्चे की किडनी में खराबी या माँ के गर्भाशय के आसपास अधिक तरल पदार्थ के लक्षणों से पहचान की जाती है।
    • तेज बुखार
    • पानी की कमी
    • उल्टी और दस्त
    • चेहरे की असामान्य विशेषताएं, जैसे की चेहरे का त्रिकोण आकार, बड़ा माथा, बड़े और नुकीले कान
    • सामान्य वृद्धि न होना
    • जन्म से बहरापन
    • शिशु का बार-बार पेशाब आना

बार्टर सिंड्रोम के कारण

जींस में वह निर्देश होते हैं जो हमारे शरीर को सही ढंग से काम करने में मदद करते हैं। आनुवंशिक रोग (जेनेटिक डिजीज) जीन में बदलाव आने के कारण हो सकते हैं जिसे म्यूटेशन कहा जाता है।

बार्टर सिंड्रोम में कम से कम पांच जींस जुड़े होते हैं और यह सभी जींस किडनी के काम करने और खासतौर से नमक को अवशोषित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। पेशाब के जरिए नमक का बहुत ज्यादा निकलना आपकी किडनी के अन्य पदार्थों जैसे पोटैशियम और कैल्शियम को अवशोषित करने की प्रक्रिया को प्रभावित कर सकता है।

इन तत्वों के असंतुलन के कारण कई गंभीर समस्याएं हो सकती है, जैसी की:

  • नमक की कमी मुख्य रूप से डिहाइड्रेशन (पानी की कमी), कब्ज और बार-बार पेशाब आने का कारण बन सकता है।
  • कैल्शियम की कमी से हड्डियों में कमजोरी और बार-बार किडनी स्टोन (पथरी) जैसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
  • खून के स्तर में पोटैशियम की कमी के कारण मांसपेशियों में कमजोरी, ऐंठन और थकान हो सकती है।

बार्टर सिंड्रोम का इलाज

इस स्थिति से ग्रस्त मरीजों को अपने आहार में सोडियम और पोटैशियम का स्रोत बढ़ाने की सलाह दी जाती है, पोटैशियम युक्त आहार आमतौर पर जरूरी होते हैं और स्पिरोनोलाक्टों (एक प्रकार का स्टेरॉयड) भी पोटैशियम की कमी को दूर करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

नॉनस्टेरॉयडल एंटी-इंफ्लामेटरी ड्रग्स (एनएसआईडी) का उपयोग भी किया जा सकता है और यह खासतौर से एंटीनेटल बार्टर सिंड्रोम से पीड़ित मरीजों के लिए मददगार होता है।

एंजियोटेन्सिन-कंवर्टिंग एंजाइम (एसीई) अवरोधकों का भी इस्तेमाल किया जा सकता है।

बार्टर सिंड्रोम का कोई इलाज नहीं है, इसलिए इससे ग्रस्त व्यक्ति को जीवन भर कुछ दवाएं व अन्य सप्लीमेंट्स लेने पड़ सकते हैं।

Dr. Narayanan N K

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