इंग्लैंड स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ सैलफर्ड के वैज्ञानिकों ने कैंसर के इलाज से संबंधित एक ऐसी खोज की है, जिससे अभी तक लाइलाज मानी जा रही इस बीमारी का इलाज किया जा सकता है और इसके डायग्नॉसिस के डर को खत्म करने में भी मदद मिल सकती है। खबर के मुताबिक, यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर माइकल लिसांटी और प्रोफेसर फेडेरिका सॉटगिया ने कैंसर मेटास्टेसिस को रोकने की युक्ति निकाली है। बता दें कि कैंसर मेटास्टेसिस एक बड़ा कारण रहा है जिसके चलते अरबों डॉलर खर्च करने के बाद भी कैंसर के इलाज के लिए अभी तक कोई भी एमएचआरए (मेडिसिंस एंड हेल्थकेयर प्रॉडक्ट्स रेग्युलेटरी एजेंसी) या एफडीए (फूड्स एंड ड्रग्स एडिमिनिस्ट्रेशन) आधारित मान्यता प्राप्त ड्रग उपलब्ध नहीं हो सका है। परिणामस्वरूप, कैंसर मेटास्टेसिस आज तक एक रहस्यमय, लाइलाज और घातक बीमारी बना हुआ है।

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क्या है कैंसर मेटास्टेसिस?
साधारण भाषा में कहें तो शरीर में कैंसरकारी कोशिकाओं का बढ़ना मेटास्टेसिस कहलाता है। इस कंडीशन में कैंसर सेल्स शरीर के अधिकतर अंगों में फैल जाती हैं। इनमें मस्तिष्क, बोन टिशू, फेफड़े और लिवर जैसे महत्वपूर्ण अंग शामिल हैं। मेटास्टेसिस के कारण ही कैंसर एक ऐसी बीमारी बन जाती है, जिसका इलाज संभव नहीं होता। सर्जरी के जरिये कैंसर की वजह बने मुख्य ट्यूमर को हटा दिया जाता है। बाकी ट्यूमर सेल्स को हटाने के लिए मरीजों का कीमोथेरेपी और रेडिएशन थेरेपी के जरिये इलाज किया जाता है। लेकिन इन तमाम मेडिकल ट्रीटमेंट के बाद भी कई कैंसर मरीजों के शरीर में ट्यूमर फिर से उभर आता है, जिससे कैंसर फिर फैलना (मेटास्टेसिस) शुरू हो जाता है। जानकार बताते हैं कि कैंसर के इलाज के दौरान मरने वाले 90 प्रतिशत मरीज मेटास्टेटिक बीमारी से मारे जाते हैं। ऐसे में इलाज के लिए नए प्रकार के इनहिबिटर्स या अवरोधकों की आवश्यकता महसूस की जाती है जो मेटास्टेसिस को रोक सकें, जिससे कैंसर को लाइलाज होने के बजाय एक लंबे समय के दौरान ठीक होने वाली बीमारी में बदला जा सके।

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कैसे तैयार किया ड्रग?
इन तमाम बातों को ध्यान में रखते हुए यूनिवर्सिटी ऑफ सैलफर्ड के वैज्ञानिकों ने मेटास्टेसिस की कमजोरियों की पहचान की है। उनके मुताबिक, अगर कैंसरकारी कोशिका की नए ऊर्जा बनाने की क्षमता को खत्म कर दिया जाए तो मेटास्टेसिस को रोकने में कामयाबी मिल सकती है। इसके लिए प्रोफेसर लिसांटी और प्रोफेसर फेडेरिका ने कैंसर मेटास्टेसिस के नए अवरोधकों को डिजाइन कर उनका टेस्ट किया है। ये अवरोधक एफडीए से मान्यता प्राप्त एंटीबायोटिक ड्रग डॉक्सीसाइक्लिन पर आधारित है। शोधकर्ताओं ने इस दवा में ऐसे रासायनिक परिवर्तन किए हैं, जिससे मेटास्टेटिक कैंसर सेल्स को टार्गेट करने की इसकी क्षमता पांच गुना बढ़ गई है। अच्छी बात यह है कि इस मोडिफिकेशन से डॉक्सीसाइक्लिन एक एंटीबायोटिक के रूप में अप्रभावी हो जाती है, जिससे एंटीबायोटिक रेजिस्टेंड बैक्टीरिया और इन्फेक्शन पैदा होने का खतरा दूर हो जाता है। इस परिवर्तन के बाद जो नया ड्रग तैयार हुआ है, उसका नाम डॉक्सी-मेर रखा गया है।

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इस बारे में प्रोफेसर माइकल लिसांटी का कहना है, 'इस नई ड्रग फैमिली के क्लिनिकल ट्रायल जरूर किए जाएंगे। जिस कॉन्सेप्ट के तहत इन्हें तैयार किया गया है, वह बताता है कि इस तरह सफलतापूर्वक ऐसे ड्रग्स बनाए जा सकते हैं जो सेल्युलर एनर्जी प्रॉडक्शन की प्रक्रिया को टार्गेट कर मेटास्टेसिस को रोक सकते हैं। जब कोशिकाओं को उनका ईंधन नहीं मिलेगा तो मेटास्टेसिस रूक जाएगा। इस महत्वपूर्ण खोज की मदद से (कैंसर से जुड़ी) क्लिनिकल प्रैक्टिस को बदला जा सकता है। मेटास्टेसिस प्रिवेंशन कैंसर के खिलाफ लड़ाई में नया और ज्यादा प्रभावी हथियार हो सकता है।'

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