भारतीय दवा कंपनियों पर खराब गुणवत्ता के उत्पाद बनाने के आरोप पहले भी लगते रहे हैं। हाल में घटी एक घटना ने इस मुद्दे को फिर हवा दे दी है। मामला जम्मू-कश्मीर के उधमपुर जिले का है, जहां कथित रूप से कोल्डबेस्ट-पीसी नाम के कफ सिरप से कम से कम 11 बच्चों की मौत हो गई है। इस सिरप को हिमाचल प्रदेश की एक दवा कंपनी बनाती है जो अब जांच के घेरे में है। MyUpchar की इस रिपोर्ट में चर्चा करेंगे, कि क्यों इस मामले ने देश के दवा उत्पादन पर फिर सवाल खड़े कर दिए हैं।

दरअसल, दिसंबर 2019 और फरवरी 2020 के बीच जम्मू के उधमपुर जिले में 17 बच्चों को किडनी फेल होने की शिकायत के बाद अस्पताल में भर्ती कराया गया था। इलाज के दौरान इनमें नौ बच्चों की मौत हो गई थी। यह संख्या अब 11 हो गई है। बच्चों की मौत की वजह खांसी की दवा के रूप में दिए जाने वाले कोल्डबेस्ट-पीसी सिरप को बताया गया है। इस दवा को हिमाचल प्रदेश स्थित दवा कंपनी डिजिटल विजन बनाती है। 

मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, बच्चों की मौत के बाद दवा के सैंपल चंडीगड़ के मेडिकल संस्थान पीजीआईएमआईआर भेजे गए थे। वहां की शुरुआती जांच के आधार पर अधिकारियों ने पुष्टि की, कि सिरप को बनाने में इस्तेमाल हुआ एक पदार्थ बच्चों की मौत का कारण हो सकता है।

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इस पदार्थ का नाम है डायथिलीन ग्लाइकोल। अमेरिका के राष्ट्रीय स्वास्थ्य आयोग की एक शाखा NCBI की आधिकारिक वेबसाइट पर दी गई जानकारी के मुताबिक, डायथिलीन ग्लाइकोल एक बेरंग, गंधहीन, चिपचिपा और विषैला केमिकल पदार्थ है जिसका स्वाद हल्का मीठा होता है। वेबसाइट के मुताबिक दवा उत्पादन में इस पदार्थ का इस्तेमाल किया जाता है। सवाल उठता है कि क्या यह किसी को नुकसान भी पहुंचा सकता है।

यह तो आप जानते ही हैं कि जिन दवाओं का सेवन हम करते हैं, वे किडनी द्वारा फिल्टर किए जाने के बाद ही शरीर के बाकी हिस्से में जाती हैं। लेकिन डायाथिलीन ग्लाइकोल में कुछ तत्व ऐसे होते हैं जिन्हें हमारी किडनी फिल्टर नहीं कर पाती। इसी के चलते दवा में इस पदार्थ की मात्रा ज्यादा होने पर किडनी फेल होने की संभावना रहती है। चूंकि बच्चों के अंग ज्यादा नाजुक होते हैं, इसलिए उनमें यह खतरा वयस्कों के मुकाबले ज्यादा होता है।

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अब बात करते हैं कि कथित रूप से बच्चों की मौत का कारण बने कोल्डबेस्ट-पीसी में डायाथिलीन ग्लाइकोल की मात्रा ज्यादा होने की कितनी संभावना है। इसे समझने के लिए सिरप बनाने वाली कंपनी डिजिटल विजन के इतिहास पर नजर डालते हैं, जो बताता है कि कंपनी पहले भी दवा उत्पादों की गुणवत्ता की जांच में फेल हो चुकी है। 

मीडिया में सामने आई कुछ रिपोर्टों की मानें, तो 2014 से 2019 के बीच कई राज्यों के स्वास्थ्य अधिकारियों ने अपनी-अपनी जांचों में डिजिटल विजन के उत्पादों को 'घटिया' दर्जे का बताया है। इन राज्यों में राजस्थान, कर्नाटक, महाराष्ट्र, गुजरात और केरल शामिल हैं, जहां कंपनी के उत्पादों को गुणवत्ता के उच्च मानकों पर खरा नहीं पाया गया।

खबरों की मानें तो देश में फार्मा कंपनियों को दवा उत्पादन और बिक्री संबंधी लाइसेंस देने वाले प्राधिकरण 'एक्सटेंडेड लाइसेंसिंग एंड लैबोरेटरी नोड' के डेटाबेस में नजर डालने पर भी ऐसे कई मामले मिलते हैं जो डिजिटल विजन पर सवाल खड़ा करते हैं। वहीं, सरकार द्वारा कराए गए राष्ट्रीय ड्रग गुणवत्ता सर्वेक्षण की 2014-16 की रिपोर्ट से भी पता चलता है कि कैसे अलग-अलग जांचों में कंपनी के कुछ उत्पाद खराब गुणवत्ता वाले पाए गए थे। इसके अलावा, देश में दवा नियमों से जुड़े सबसे बड़े संस्थान केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन ने भी पिछले पांच सालों में एक से ज्यादा बार डिजिटल विजन की दवाओं को खतरनाक उत्पादों की श्रेणी में रखा है।

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देश में खराब गुणवत्ता की दवाएं बनाने का यह मामला नहीं है। रिपोर्टें बताती हैं कि भारतीय दवा कंपनियों पर पहले भी इस तरह के आरोप लगते रहे हैं। मिसाल के लिए देश में प्रधानमंत्री जनऔषधि परियोजना को लागू करने वाली एजेंसी 'ब्यूरो ऑफ फार्मा पीएसयू ऑफ इंडिया' ने पिछले साल अलग-अलग दवाओं की 25 खेपों को खराब गुणवत्ता वाला पाया था। ये सभी दवाएं सरकारी परियोजना के तहत मुहैया कराई गई थीं।

वहीं, पिछले साल ही अमेरिका के स्वास्थ्य सेवा प्राधिकरण 'यूएस एफडीए' ने भारतीय दवा कंपनियों को उनके उत्पादों की गुणवत्ता के संबंध में कम से कम 20 पत्र लिख कर चेतावनी दी थी। यह सिलसिला इस साल भी जारी है। खबरें हैं कि भारत की जानी-मानी दवा कंपनी सिप्ला को यूएस एफडीए ने दवा उत्पादन के उच्च मानकों के कथित गंभीर उल्लंघन के चलते चेतावनी जारी की है। खुद सिप्ला ने इसकी पुष्टि की है।

बात यहीं खत्म नहीं होती। जानकार यह भी बताते हैं कि भारत की फार्मा इंडस्ट्री दवा उत्पादन को लेकर जवाबदेह नहीं रही है। उनके मुताबिक, कंपनियों ने दवा उत्पादों को लेकर किए गए सवालों के कभी भी संतोषजनक जवाब नहीं दिए हैं। 

बहरहाल, उधमपुर मामले पर डिजिटल विजन कंपनी का कहना है कि उसके कफ सिरप से बच्चों की मौत होने का आरोप गलत है। वहीं, अधिकारियों ने कहा है कि अभी शुरुआती जांच में सिरप में शामिल डायथिलीन ग्लाइकोल से बच्चों की मौत होने की पुष्टि हुई है, लेकिन वे आगे की जांच पूरी होने के बाद ही इस बारे में कोई टिप्पणी करेंगे। हालांकि एहतियात बरतते हुए कई राज्यों को बाजार से कोल्डबेस्ट-पीसी के स्टॉक को वापस लेने को कह दिया गया है। साथ ही, हिमाचल प्रदेश में इसके उत्पादन पर रोक लगा दी गई है। ऐसे में लोगों के लिए यही उचित होगा, कि वे मामला पूरी तरह साफ होने तक इस दवा को लेने से बचें।

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