नए कोरोना वायरस सार्स-सीओवी-2 से फैली कोविड-19 महामारी को लेकर चीन की भूमिका पर सवाल उठाती एक अंतरराष्ट्रीय मीडिया रिपोर्ट चर्चा का विषय बनी हुई है। अंतरराष्ट्रीय समाचार एजेंसी एसोसिएटिड प्रेस (एपी) द्वारा प्रकाशित की गई इस रिपोर्ट में बताया गया है कि चीन को जनवरी की शुरुआत में पता था कि नया कोरोना वायरस एक महामारी की वजह बन सकता है, बावजूद इसके उसने यह जानकारी देने में छह दिनों की देरी।

एपी की रिपोर्ट के मुताबिक, चीन के उच्चाधिकारियों ने 14 जनवरी को हुई एक गुप्त बैठक में यह माना था कि वे एक महामारी का सामना कर रहे हैं। यह वह समय था जब चीन के वुहान शहर में हजारों लोग एक आयोजन में शामिल हुए थे और लूनर न्यू ईयर के मौके पर (देश-विदेश से) लाखों लोग चीन में अलग-अलग यात्राएं कर रहे थे। रिपोर्ट की मानें तो चीन ने महामारी की आशंका के बाद भी छह दिनों तक कुछ नहीं कहा। सातवें दिन (रिपोर्ट के मुताबिक 20 जनवरी) राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने लोगों को सावधान किया। लेकिन तब तक 3,000 से ज्यादा लोग संक्रमित हो चुके थे।

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चीन के स्वास्थ्य आयोग ने जताई थी आशंका
एपी ने एक सूत्र से प्राप्त हुए दस्तावेजों के आधार पर यह जानकारी दी है। इनमें बीती 14 जनवरी को चीन के उच्चाधिकारियों के बीच हुई एक टेलीकॉन्फ्रेंस का जिक्र है। इसमें चीन के राष्ट्रीय स्वास्थ्य आयोग के प्रमुख मा शीयाओवे कह रहे हैं, 'इस महामारी ('एपिडेमिक') के चलते हालात अभी भी गंभीर और पेचीदा बने हुए हैं। 2003 में आए सार्स के बाद यह सबसे बड़ी चुनौती है और ऐसा लगता है कि यह एक बड़ा स्वास्थ्य संकट बन सकता है।'

एजेंसी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि चीन ही नहीं, बल्कि दुनियाभर की सरकारों ने अपने यहां इस स्वास्थ्य संकट तो गंभीरता से लेने में देरी की है। लेकिन इस महामारी के सबसे पहले केंद्र के रूप में चीन ने ऐसे समय में लोगों को आगाह नहीं किया जब इस संकट की शुरुआत हुई ही थी।

क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
चीन के इस कदम को लेकर विशेषज्ञों ने अलग-अलग राय दी है। अमेरिका के लॉस ऐंजलिस स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफॉर्निया में महामारी विशेषज्ञ जुओ-फेंग झांग ने कहा, 'यह बहुत खराब बात है। अगर वे (चीन) छह दिन पहले कोई कदम उठा लेते तो मरीजों की संख्या (अपेक्षाकृत) कम होती और मौजूदा चिकित्सा सुविधाएं उनके इलाज के लिए पर्याप्त होतीं।' वहीं, दूसरे विशेषज्ञों का मानना है कि शायद चीन की सरकार ने इस बात का ध्यान रखते हुए जानकारी नहीं दी होगी कि कहीं इससे लोगों के बीच उन्माद की स्थिति पैदा न हो जाए।

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वहीं, समाचार एजेंसी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि इस देरी की वजह से चीन के राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र ने स्थानीय अधिकारियों के जरिये एक भी मामला दर्ज नहीं किया, जबकि पांच जनवरी से 17 जनवरी के बीच अलग-अलग अस्पताओं में सैकड़ों मरीज पहुंच रहे थे, न सिर्फ वुहान में, बल्कि पूरे चीन में। यह स्पष्ट नहीं है कि स्थानीय अधिकारी इन मामलों की रिपोर्ट नहीं दे पाए या उच्चाधिकारी इन मामलों का रिकॉर्ड रखने में नाकाम रहे। यह भी साफ नहीं है कि इन अधिकारियों को वुहान में पैदा हुई स्थिति के बारे में जानकारी थी या नहीं। हालांकि विशेषज्ञ एक बात स्पष्ट रूप से कहते हैं कि चीन में सूचनाओं को जिस तरह नियंत्रित किया जाता है, नौकरशाह अवरोध पैदा करते हैं, उसके चलते कोविड-19 से जुड़ी शुरुआती चेतावनी सामने नहीं आ पाई।

जानकारी देने वालों को सजा
विशेषज्ञों की इस राय को डॉक्टर ली वेनलियांग का मामला समर्थन देता है। उन्होंने पिछले साल दिसंबर के अंत में एक ऑनलाइन ग्रुप पर एक नए वायरस की जानकारी अपने साथियों से शेयर की थी। उसके बाद उन पर चीनी अधिकारियों ने कार्रवाई की थी। बाद में डॉक्टर वेनलियांग खुद संक्रमित पाए गए और कुछ दिनों बाद उनकी मौत हो गई। इसी तरह, चीन के आठ अन्य डॉक्टरों पर महामारी को लेकर 'अफवाह' फैलाने का आरोप लगाकर उन्हें सजा दी गई थी। इस मामले ने पूरे चीन के अस्पतालों के डॉक्टरों को डरा दिया था। शिकागो यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर डाली यांग इस बारे में बताते हैं, 'वुहान में डॉक्टर डरे हुए हैं। एक पूरे पेशे में भय का माहौल हो गया था।'

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उधर, चीन ने इस तरह की रिपोर्टों को खारिज किया है। उसका कहना है कि उसने इस संकट से जुड़ी सूचनाओं को नहीं दबाया, बल्कि विश्व स्वास्थ्य संगठन को इस बारे में तुरंत जानकारी दी। समाचार एजेंसी ने जब चीन की सरकार से इस बारे में सवाल किए तो वहां के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा, 'चीन पर पारदर्शिता और स्पष्टता नहीं रखने के आरोप सही नहीं हैं।'


उत्पाद या दवाइयाँ जिनमें कोरोना वायरस के चलते महामारी की संभावना के बावजूद चीन ने छह दिनों तक लोगों को नहीं दी थी चेतावनी: एसोसिएटिड प्रेस है

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