खाद्य पदार्थों (जैसे मीट-मछली) के जरिये नए कोरोना वायरस के ट्रांसमिट होने की आशंका जताने वाली रिपोर्टें हाल के दिनों में चर्चा में रही हैं। लेकिन एक अध्ययन इन आशंकाओं और रिपोर्टों को एक तरह से खारिज करता दिखता है। खाद्य सुरक्षा से संबंधित अंतरराष्ट्रीय गैर-सरकारी संगठन इंटरनेशनल कमीशन ऑन माइक्रोबायोलॉजिकल स्पेसिफिकेशंस फॉर फूड्स (आईसीएमएसएफ) ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि खाद्य पदार्थों और उनकी पैकेजिंग के जरिये कोरोना वायरस फैलने का कोई वास्तविक खतरा नहीं है। आईसीएमएसएफ ने अमेरिकी ड्रग एजेंसी एफडीए के उस अध्ययन का विश्लेषण कर यह बात कही है, जिसमें कहा गया था कि खाने की चीजों या उनकी पैकेजिंग पर सार्स-सीओवी-2 कोरोना वायरस हो सकता है। लेकिन आईसीएमएसएफ की शोधकर्ता टीम ने अपने अध्ययन में कहा है कि ऐसा होने पर वायरस ट्रांसमिशन की संभावना बहुत ही कम है।

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इसके अलावा, आईसीएमएसएफ ने यह भी कहा कि तमाम अनुमानों के बावजूद अब तक ऐसा कोई मामला सामने नहीं आया है, जिसमें दावा किया गया हो कि किसी प्रकार के खाने या फूड पैकेजिंग से वायरस ट्रांसमिट हुआ हो। रिपोर्ट में शोधकर्ताओं ने कहा है, 'इस पर विचार करते हुए कि अभी तक खाद्य उपभोग और कोविड-19 के बीच कोई वैज्ञानिक संबंध नहीं मिला है और न ही ऐसा कोई प्रमाणित मामला सामने आया है, लिहाजा खाने के जरिये सार्स-सीओवी-2 फैलने की संभावना न के बराबर है। तुलनात्मक रूप से ऐसी रिपोर्टें भी बहुत कम हैं, जिनमें खाने से जुड़ी चीजों, उत्पादों और पैकेजिंग मटीरियल पर वायरस मिलने की बात सामने आई है।'

रिपोर्ट में आईसीएमएसएफ ने यह भी कहा है कि हालांकि यह यह संभव है कि कोई व्यक्ति या लोग वायरस से दूषित फूड आइटम खाकर संक्रमित हो जाएं, लेकिन अभी तक का रिकॉर्ड बताता है कि ऐसे किसी भी केस की रिपोर्ट नहीं हुई है। संगठन ने कहा है, 'रिपोर्टें कहती हैं कि मानव स्वास्थ्य को (वायरस से दूषित खाना खाने से) खतरा हो सकता है। लेकिन वे यह नहीं बताती हैं कि ऐसा खाना खाने या उसके प्रबंधन से वास्तव में ऐसा खतरा देखने में आया है। फूड या फूड पैकेजिंग पर मौजूद वायरस समय के साथ खत्म हो जाते हैं। जोखिम के लिहाज से देखें तो इस प्रकार के सम्मिश्रण से संक्रमण होने का खतरा बहुत ही कम है।'

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हालांकि यह कहने के साथ ही आईसीएमएसएफ के शोधकर्ता खाद्य उत्पादों के निर्माताओं, प्रबंधनकर्ताओं और उपभोगताओं को हमेशा हाथों की साफ-सफाई पर जोर देने की हिदायत देते हैं। साथ ही कंपनियों को फूड हैंडलिंग और डिलिवरी के समय अपने कर्मियों को मास्क पहनने का निर्देश देने की भी सलाह दी गई है।

क्या है आईसीएमएसएफ?
1960 के दशक में खाने की चीजों के जरिये बीमारी फैलने के दावे को व्यापक रूप से स्वीकार किया जाने लगा था। तब खाने से जुड़े आइटमों की माइक्रोबायोलॉजिकल टेस्टिंग बढ़ गई थी। इससे खाद्य पदार्थों से जुड़े अंतरराष्ट्रीय व्यापार में अभूतपूर्व समस्याएं पैदा हो गई थीं, क्योंकि खाने के सैंपलों की जांच के लिए अलग-अलग अपने एनालिटिकल मेथड, सैंपलिंग प्लान आदि का इस्तेमाल कर रहे थे। वहीं, जांच के विश्लेषण आधारित परिणाम भी अलग-अलग कॉन्सेप्ट के तहत सामने रखे जा रहे थे, जिससे फूड इंडस्ट्री और उनकी नियामक एजेंसियों में और उलझन और निराशा देखने को मिल रही थी। इसी के मद्देनजर एक ऐसे संगठन की स्थापना पर विचार किया गया जो खाद्य पदार्थों की सुरक्षा और गुणवत्ता से जुड़े एविडेंस को इकट्ठा कर उनका परस्पर आंकलन करे। इस संस्था को सुनिश्चित करना था कि संबंधित फूट आइटम की सुरक्षा और गुणवत्ता के माइक्रोबायोलॉजिकल क्राइटेरिया पर खरा उतरता है। साथ ही खाद्य पदार्थों की सैंपलिंग और उनकी जांच से जुड़े मेथड्स को रेकमंड करना भी इस संगठन के प्रमुख कार्यों में शामिल था। इन बातों को ध्यान में रखते हुए आईसीएमएसएफ की स्थापना की गई थी।

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उत्पाद या दवाइयाँ जिनमें कोविड-19: खाद्य पदार्थों और उनकी पैकेजिंग के जरिये कोरोना वायरस फैलने की संभावना न के बराबर- आईसीएमएसएफ की रिपोर्ट है

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