कोविड-19 के इलाज के लिए रूस द्वारा लॉन्च की गई 'स्पूतनिक 5' वैक्सीन मेडिकल विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों के बीच बहस का मुद्दा बन गई है। दुनियाभर में कई प्रतिष्ठित संस्थानों के शोधकर्ताओं ने इस वैक्सीन को लेकर कड़ी प्रतिक्रियाएं दी हैं। न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, प्रतिष्ठित जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के इंस्टीट्यूट फॉर वैक्सीन सेफ्टी के निदेशक डैनियल सैल्मन ने इस वैक्सीन को लेकर कहा है, 'यह डराने वाली है। यह वाकई में डराने वाली है।'

दरअसल, इस वैक्सीन को लॉन्च करने से पहले रूस ने वैक्सीन निर्माण से जुड़े कई अंतरराष्ट्रीय नियमों की अनदेखी की है। इनमें सबसे मुख्य नियम यह है कि किसी बीमारी के खिलाफ तैयार की गई वैक्सीन को पूरी तरह सुरक्षित और सक्षम घोषित करने से पहले तीन चरणों के तहत अलग-अलग स्तर के ट्रायलों से गुजरना होता है। पहले और दूसरे चरण में बीमारी के खिलाफ वैक्सीन के प्रभावों, क्षमता और सुरक्षा की पुष्टि की जाती है। इसके बाद तीसरे और अंतिम चरण के तहत उसे बड़ी संख्या में प्रतिभागियों को लगाया जाता है। इससे यह पुष्ट होता है कि वैक्सीन वास्तव में बीमारी से लड़ने में कारगर और अधिकतर लोगों के लिए सुरक्षित है।

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लेकिन रूस ने केवल पहले चरण में कुछ दर्जन लोगों पर वैक्सीन आजमाने के बाद उसे लॉन्च कर दिया। दूसरे चरण के परिणाम सामने नहीं रखे गए और तीसरा चरण हुआ ही नहीं है। ऐसे में वैक्सीन पर सवाल उठने लाजमी हैं। जानकारों का कहना है कि तीसरे चरण के ट्रायल किए बिना ही वैक्सीन लॉन्च करके रूस बहुत खतरनाक स्टेप उठा रहा है। उनका कहना है कि तीसरे चरण से ही सुनिश्चित होता है कि वैक्सीन प्लसीबो (एक ड्रग) से बेहतर है और लोगों को नुकसान नहीं पहुंचाती। 

लेकिन बिना इसके वैक्सीन को लाखों लोगों को लगा देना, उनमें से हजारों के किसी दुर्लभ साइड इफेक्ट से पीड़ित होने का खतरा पैदा कर देता है। एनवाईटी की रिपोर्ट में न्यूयॉर्क स्थित वील कॉर्नेल मेडिकल कॉलेज के विषाणु विज्ञानी जॉन मूरे ने तो रूस की वैक्सीन को लॉन्च करने की जल्दबाजी को 'मूर्खता से भी परे' बताया है। जानकारों का कहना है कि तीसरे ट्रायल में प्रतिभागियों की संख्या काफी ज्यादा होती है, ऐसे में अगर वैक्सीन के कोई साइड इफेक्ट हैं तो उनके सामने आने की संभावना ट्रयाल के अंतिम चरण में ज्यादा होती है। लेकिन रूस ने यह ट्रायल किया ही नहीं है।

उधर, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि कोविड-19 के इलाज के लिए तैयार की गई किसी भी वैक्सीन को उसके अप्रूवल के लिए कड़ी डेटा समीक्षा से गुजरना होगा। मंगलवार को रूस के प्रधानमंत्री व्लादीमिर के वैक्सीन को लॉन्च करने के बाद डब्ल्यूएचओ के प्रवक्ता तारिक जसारेविक ने कहा, 'हम रूस के स्वास्थ्य अधिकारियों के संपर्क में हैं और वैक्सीन की योग्यता से संबंधित बातचीत चल रही है। वैक्सीन को अप्रूवल देने की शर्तों में उसकी कड़ी समीक्षा और सुरक्षा के साथ क्षमता से जुड़े तमाम डेटा का आंकलन शामिल है।'

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इस बीच, अंग्रेजी अखबार इकनॉमिक टाइम्स ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया है कि दुनियाभर के कई देशों ने रूसी वैक्सीन के तीसरे चरण के ट्रायल अपने यहां कराने की रुचि दिखाई है। इनमें सऊदी अरब, ब्राजील, फिलिपींस जैसे देशों के अलावा भारत भी शामिल है। रशिया डेवलेपमेंट इन्वेस्टेमेंट फंड द्वारा जारी किए गए एक बयान के हवाले से अखबार का यह भी कहना है कि कुछ देश वैक्सीन के मास प्रोडक्शन के लिए रुचि दिखा रहे हैं। इनमें दक्षिण कोरिया, ब्राजील, तुर्की और सऊदी अरब जैसे देशों के अलावा भारत का नाम भी लिया गया है। हालांकि इस संबंध में भारत सरकार की तरफ से दी गई किसी तरह की प्रतिक्रिया की जिक्र नहीं है। ऐसे में इंतजार करना होगा कि भारत वाकई में वैक्सीन को लेकर उत्सुक है या नहीं।

क्या है स्पूतनिक 5?
रूस द्वारा निर्मित कोविड-19 वैक्सीन स्पूतनिक 5 को वहां गामालेया रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ एपिडेमियोलॉजी और माइक्रोबायोलॉजी ने रूसी रक्षा मंत्रालय के साथ मिल कर तैयार किया है। टीका तैयार करने वाले वैज्ञानिकों ने कहा है कि इसे एडीनोवायरस नामक एक हल्के कोल्ड वायरस की मदद से तैयार किया गया है, जिसमें कोरोना वायरस के वंशाणु को जोड़ा गया है। बता दें कि ऑक्सफोर्ट यूनिवर्सिटी की चर्चित कोविड-19 वैक्सीन के निर्माण में भी इसी वायरस का इस्तेमाल किया गया है। खबरों के मुताबिक, जॉनसन एंड जॉनसन कंपनी ने भी अपनी 'प्रभावी' वैक्सीन में सर्दी-जुकाम देने वाले इस वायरस को उपयोग किया है। वैक्सीन निर्माण में यह एक नई तकनीक है, जिसे इबोला वायरस के इलाज के लिए भी वैक्सीन बनाने में इस्तेमाल किया जा चुका है। बीते जून में इस टीके को अप्रूवल भी मिल चुका है।

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लेकिन ऑक्सफोर्ड और जॉनसन एंड जॉनसन जैसी कंपनियां जहां अंतिम चरण के ट्रायलों की तैयारियों में जुटी हुई हैं, वहीं रूस ने केवल पहले चरण के तहत मात्र 38 लोगों पर आजमाने के बाद वैक्सीन को लॉन्च कर दिया। हालांकि ट्रायल में सभी प्रतिभागियों के शरीर में एंटीबॉडी पैदा होने का दावा किया गया था, लेकिन लाखों की आबादी के लिए वैक्सीन के इस्तेमाल का इसे मजबूत आधार नहीं माना जा रहा। मंगलवार को हुई लॉन्चिंग के बाद अब रूस तीसरे चरण के ट्रायल शुरू करने की बात कह रहा है। हालांकि उससे पहले ही वैक्सीन को लेकर काफी विवाद हो चुका है, क्योंकि रूस इसे दुनिया की पहली कोविड वैक्सीन घोषित कर रजिस्टर करा चुका है, जो कि कई लोगों को उचित नहीं लगा है।


उत्पाद या दवाइयाँ जिनमें कोविड-19: वैक्सीन बनाने की जल्दबाजी को लेकर रूस की आलोचना, डब्ल्यूएचओ ने कड़ी समीक्षा करने की बात कही, भारत 'रुचि' दिखाने वाले देशों में शामिल है

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