कोविड-19 का इलाज ढूंढने की रेस में सबसे आगे चल रही ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की वैक्सीन 'चडॉक्स एनसीओवी-19' के पहले चरण के ट्रायलों के परिणाम सामने आ गए हैं। प्रतिष्ठित मेडिकल पत्रिका दि लांसेट ने अब से कुछ देर पहले इन परिणामों की जानकारी दी है। पत्रिका ने बताया है कि शुरुआती मानव परीक्षणों में वैक्सीन ने भरोसेमंद नतीजे दिए हैं। लांसेट के मुताबिक, वैक्सीन ने वॉलन्टियर्स के शरीर में न सिर्फ नए कोरोना वायरस से सुरक्षा देने वाले एंटीबॉडी विकसित किए, बल्कि इम्यून सिस्टम की सबसे महत्वपूर्ण कोशिका टी सेल का स्तर भी बढ़ा दिया। हालांकि पत्रिका ने साफ किया है कि वैक्सीन के पूरी तरह प्रभावी होने की पुष्टि के लिए तीसरे चरण के ट्रायल किए जाने की जरूरत है।

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रिपोर्ट में लांसेट ने बताया है कि ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की वैक्सीन की कम और अधिक मात्रा में दी गई डोजों से प्रतिभागियों के शरीर में वायरस को रोकने वाले एंटीबॉडीज पैदा हुए हैं और टी सेल के स्तर में भी बढ़ोतरी देखने को मिली है। उसके मुताबिक, यूनाइटेड किंगडम और चीन में हुए पहले और दूसरे चरण के ट्रायलों में ये परिणाम सामने आए हैं। लांसेट की मानें तो ट्रायल के तहत पहला डोज दिए जाने के बाद 28 दिन के दौरान प्रतिभागियों में एंटीबॉडी विकसित हुए जो 56 दिनों तक बने रहे। फिर कुछ प्रतिभागियों को दूसरा डोज दिया गया जिससे रोग प्रतिरोधकों की संख्या में और इजाफा देखा गया। शुरुआती परिणामों के आधार पर पत्रिका ने वैक्सीन को सुरक्षित भी बताया है। उसने कहा है कि आगे ट्रायल में वैक्सीन बुजुर्गों पर आजमानी जानी चाहिए।

लांसेट के मुताबिक, ट्रायल में शामिल हाई डोज वाले 253 प्रतिभागियों में से 183 में वैक्सीन से वांछित प्रतिक्रिया देखने को मिली। वहीं, कम डोज वाले 129 प्रतिभागियों में से 96 में ऐसी प्रतिक्रिया देखी गई। वहीं, तेज प्रतिक्रिया वाले मरीजों की संख्या केवल 24 रही। किसी भी प्रतिभागी में गंभीर प्रतिकूल प्रतिक्रिया देखने को नहीं मिली।

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ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के जेनर इंस्टीट्यूट ने ब्रिटेन की बड़ी दवा कंपनी एस्ट्राजेनेका के साथ मिल कर इस वैक्सीन को तैयार किया है। ताजा जानकारी के मुताबिक, जेनर इंस्टीट्यूट के प्रमुख एड्रियन हिल ने एक इंटरव्यू में कहा है, '(ट्रायल में) हमने बहुत अच्छे इम्यून रेस्पॉन्स देखे हैं। केवल एंटीबॉडी के मामले में ही नहीं, बल्कि टी सेल्स के मामले में भी। हम इम्यून सिस्टम को दोनों प्रकार से मजबूत कर पा रहे हैं।' जेनर इंस्टीट्यूट का यह बयान हाल में सामने आई कुछ शोध आधारित रिपोर्टों के लिहाज से महत्वपूर्ण है। इनमें कहा गया है कि कोविड-19 से स्वस्थ हुए मरीजों के शरीर में कोरोना वायरस के खिलाफ पैदा हुई इम्यूनिटी कुछ समय बाद लुप्त हो जाती है। लेकिन टी-सेल एक बार बनने के बाद सालों तक सर्कुलेशन में बने रहते हैं।

बहरहाल, वैक्सीन के शुरुआती ट्रायलों के परिणाम सामने आने के बाद दुनियाभर की सरकारें और मेडिकल विशेषज्ञ तथा वैज्ञानिक दि लांसेट की इस समीक्षा की बारीकी से जांच करेंगे। वहीं, सकारात्मक परिणाम मिलने के बाद ऑक्सफोर्ड और एस्ट्राजेनेका तीसरे और अंतिम चरण के ट्रायल की तैयारी में तेजी लाएंगे। इसमें हजारों की तादाद में प्रतिभागियों को वैक्सीन दी जाएगी, जिसके बाद इसकी क्षमता और सुरक्षा का अंतिम और निर्णायक विश्लेषण किया जाएगा।

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गौरतलब है कि यूनाइटेड किंगडम की सरकार वैक्सीन बनाने के इस प्रयास को समर्थन दे रही है। उधर, वैक्सीन की मैन्युफैक्चरिंग के लिए एस्ट्राजेनेका अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई तरह की तैयारियां कर रही है। कंपनी को वैक्सीन पर इतना यकीन है कि उसने लाखों की तादाद में इसका प्रॉडक्शन शुरू भी कर दिया है और कई देशों की बड़ी कंपनियों के साथ समझौते भी कर लिए हैं। इनमें भारत भी शामिल है। 


उत्पाद या दवाइयाँ जिनमें लांसेट पत्रिका ने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की वैक्सीन से कोविड-19 के खिलाफ 'डबल प्रोटेक्शन' मिलने की पुष्टि की, पहले-दूसरे चरण के ट्रायल के परिणाम सामने रखे है

संदर्भ

  1. Folegatti P.M., Ewer K.J., Aley P.K., Angus B., Prof Becker S. and Belij-Rammerstorfer S. et al. Safety and immunogenicity of the ChAdOx1 nCoV-19 vaccine against SARS-CoV-2: a preliminary report of a phase 1/2, single-blind, randomised controlled trial. The Lancet, published online on 20 July 2020.
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