वर्ल्ड बैंक ने भारत की स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर अपनी एक रिपोर्ट में बड़ी टिप्पणी की है। उसने कहा है कि हाल के सालों में हुई 'उल्लेखनीय प्रगति' के बाद भी भारत के स्वास्थ्यगत ढांचे में कई बड़ी खामियां हैं, जो कोविड-19 संकट के चलते उभर कर सामने आ गई हैं। रिपोर्ट में वर्ल्ड बैंक ने कहा है कि कोविड-19 संकट के चलते भारत को होने वाला आर्थिक नुकसान चीन समेत एशिया के किसी भी देश से ज्यादा होगा। वर्ल्ड बैंक द्वारा इस रिपोर्ट से जुड़ा प्रेजेंटेशन दिए जाने के बाद भारत का वित्त आयोग हेल्थ सेक्टर में वित्तीय फंड बढ़ाने को लेकर वर्ल्ड बैंक से राय-मशविरा कर रहा है।

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क्या कहती है वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट?
खबर के मुताबिक, वर्ल्ड बैंक ने अपनी रिपोर्ट में भारत में मूलभूत सार्वजिनक स्वास्थ्य सेवाओं पर ध्यान नहीं दिए जाने पर फोकस किया है। इसमें कोविड-19 बीमारी की निगरानी, टेस्टिंग और कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग जैसे चीजों के अलावा सुधार के बाद भी स्वास्थ्य सेवा मुहैया नहीं करा पाने, हेल्थ केयर की गुणवत्ता में भेदभाव, शहरी स्वास्थ्य व्यवस्था की अनदेखी और लोगों के स्वास्थ्य को लेकर वित्तीय खर्च नहीं करने जैसे बातों का उल्लेख किया गया है। गौरतलब है कि भारत अपनी जीडीपी का केवल एक प्रतिशत से कुछ ही ज्यादा हेल्थ सेक्टर पर खर्च करता है। वर्ल्ड बैंक द्वारा दिए गए प्रेजेंटेशन में देश की स्वास्थ्य व्यवस्था के लिए इस वित्तीय कमी को गरीबी के खतरे का एक प्रमुख कारण बताया गया है। रिपोर्ट में वर्ल्ड बैंक ग्रुप ऑन हेल्थ, न्यूट्रीशन और पॉप्युलेशन ने कहा है कि हेल्थकेयर पर बढ़ते खर्च के चलते छह करोड़ से ज्यादा भारतीय हर साल गरीबी की हालत में पहुंच जाते हैं।

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इसके अलावा वर्ल्ड बैंक ने यह भी बताया कि कोविड-19 संकट के चलते अन्य प्रकार की स्वास्थ्य सेवाएं किस तरह प्रभावित हुई हैं। मिसाल के लिए, कोरोना वायरस की वजह से लगाए गए लॉकडाउन की शुरुआत में प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के तहत अस्पतालों में गरीब तबके के मरीजों की भर्ती में 64 प्रतिशत तक की गिरावट आई थी। वहीं, पूरे दस हफ्तों के लॉकडाउन के दौरान इस योजना के तहत अस्पतालों में होने वाली भर्तियां 51 प्रतिशत तक कम हो गईं। इसके अलावा, अस्पतालों में गर्भवती महिलाओं की डिलिवरी के मामले 25 प्रतिशत तक कम हो गए और कैंसर के इलाज में 64 प्रतिशत तक की गिरावट देखी गई।

रिपोर्ट में वर्ल्ड बैंक ने यह भी बताया कि कैसे लॉकडाउन के दौरान ट्यूबरकुलोसिस यानी टीबी से जुड़े मामलों की रिपोर्टिंग अप्रैल 2019 के मुकाबले अप्रैल 2020 में 84 प्रतिशत तक कम हो गई। यह हाल में सामने आए उस अध्ययन के लिहाज से उल्लेखनीय है, जिसमें बताया गया था कि कोविड-19 संकट के प्रभाव की वजह से आने वाले पांच वर्षों में भारत में टीबी से अतिरिक्त 95 हजार मौतें होंगी।

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उत्पाद या दवाइयाँ जिनमें कोविड-19 संकट की वजह से भारत के स्वास्थ्यगत ढांचे की कमियां उभर कर सामने आईं: वर्ल्ड बैंक है

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