किसी व्यक्ति को संक्रामक रोग होने के जोखिम को कम करने के लिए समय पर और प्रभावी टीकाकरण एक बहुत ही महत्वपूर्ण कदम माना जाता है। यदि आप प्रतिरक्षित हैं, तो अपने परिवार और करीबी लोगों को भी अक्सर होने वाले संक्रमण से बचा सकते हैं। टीकाकरण की अहमियत कितनी ज्यादा है यह बात इस कोविड-19 महामारी के दौरान जितनी समझ में आ रही है उससे पहले शायद ही कभी इतनी महत्वपूर्ण लगी हो। 

इससे पहले अप्रैल महीने में, यह बात सामने आयी कि जिन क्षेत्रों में बीसीजी वैक्सीन (बैसिलस कैलमेट गुएरिन) के साथ बड़े पैमाने पर टीकाकरण किया गया था, वहां पर वायरस धीरे-धीरे फैल रहा था। इसके कुछ दिनों बाद ही यूनिवर्सिटी ऑफ कैम्ब्रिज के अनुसंधानकर्ताओं के एक समूह ने इस बात की घोषणा की कि एमएमआर यानी मीजल्स, मम्प्स और रुबेला के लिए दी जाने वाली वैक्सीन भी आपको नए कोरोना वायरस सार्स-सीओवी-2 के खिलाफ कुछ मात्रा में इम्यूनिटी प्रदान कर सकती है। 

अब, अमेरिकन सोसाइटी फॉर माइक्रोबायोलॉजी के विशेषज्ञों के एक समूह ने दावा किया है कि एमएमआर वैक्सीन कोविड-19 से जुड़े इन्फ्लेमेशन यानी सूजन और जलन की समस्या को कम कर सकती है और इसलिए यह एक कारण हो सकता है कि बच्चों में इस बीमारी के माइल्ड यानी हल्के लक्षण दिखते हैं। यह वैक्सीन उन वयस्कों को भी सुरक्षा प्रदान कर सकती है जिन्होंने इसका बूस्टर शॉट लिया हो।

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बीसीजी और एमएमआर वैक्सीन
बीसीजी वैक्सीन एक जीवित क्षयकारी टीका है जिसमें माइकोबैक्टीरियम बोविस बैक्टीरिया का कमजोर वर्जन पाया जाता है। ट्यूबरकोलोसिस यानी टीबी के मामलों में आयी कमी को देखते हुए दुनियाभर के कई इलाकों में बीसीजी का टीका दिया जाना बंद कर दिया गया है। हालांकि भारत में भी बीसीजी का टीका अनिवार्य रूप से दिया जाता है क्योंकि भारत में अब भी टीबी की बीमारी मौजूद है। यह वैक्सीन नवजात शिशु को जन्म के समय दी जाती है। 

एमएमआर वैक्सीन भी एक एक जीवित क्षयकारी टीका है जो 3 अलग-अलग वायरल बीमारियों- मीजल्स यानी खसरा, मम्प्स यानी गलसुआ और रुबेला यानी जर्मन खसरा से सुरक्षा प्रदान करता है। इंडियन एकैडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स की मानें तो हर बच्चे को एमएमआर का टीका 9वें महीने में 15वें महीने में और फिर 4 से 6 साल के बीच दिया जाना चाहिए।

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टीकों का गैर-विशिष्ट प्रभाव
टीके का गैर-विशिष्ट या गैर-अनुकूल प्रभाव यह नाम उन टीकों के लिए इस्तेमाल किया जाता है जिनका असर, जिन रोगाणुओं से लड़ने के लिए इन टीकों को बनाया गया था उसके अलावा भी दूसरे रोगाणुओं पर उनका असर देखने को मिलता है। उदाहरण के लिए- बीसीजी वैक्सीन सिर्फ टीबी के खिलाफ इम्यूनिटी प्रदान नहीं करती बल्कि दूसरे माइकोबैक्टीरिया एम.लेपरे जो की लेपरोसी या कुष्ठ रोग के लिए जिम्मेदार है उसके खिलाफ भी सुरक्षा प्रदान करती है।

जब बीसीजी का यह टीका पहली बार सामने आया था, तब भी यह ध्यान दिया गया था कि जिन बच्चों को बीसीजी का टीका लगाया जाता है उनमें मृत्यु दर का जोखिम कम होता है उन बच्चों की तुलना में जिन्हें यह टीका नहीं लगा। इसे केवल टीबी से सुरक्षा द्वारा समझाया नहीं जा सकता। क्लीनिकल ट्रायल में यह बात सामने आयी है कि बीसीजी का टीका कई और तरह के संक्रमण जैसे- येलो फीवर से भी होने वाले मृत्यु दर को कम करने में मदद करता है।

द लांसेट में प्रकाशित एक स्टडी की मानें तो बीसीजी वैक्सीन के असर का संबंध इस बात से है कि यह एक जीवित क्षयकारी या क्षीणीकृत टीका है। इस तरह के टीके इंसान के इम्यून सिस्टम को इस तरह से ट्रेनिंग देते हैं कि वह सभी तरह के संक्रमण से बेहतर तरीके से लड़ने में सक्षम होता है। बीसीजी का टीका नए कोरोना वायरस सार्स-सीओवी-2 के खिलाफ कितना असरदार है इसे लेकर फिलहाल क्लीनिकल अध्ययन जारी है। इसी तरह की गैर-विशिष्ट इम्यूनिटी पहले भी एमएमआर वैक्सीन में देखने को मिली थी।

एमएमआर वैक्सीन और सार्स-सीओवी-2
एक प्रीप्रिंट पेपर की मानें तो ऐसे कई कारण हैं जिसकी वजह से एमएमआर का टीका नए कोरोना वायरस के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करने में मददगार हो सकता है। इसमें रुबेला, मीजल्स और मम्प्स वायरस के प्रोटीन स्ट्रक्चर की बनावट और सार्स-सीओवी-2 प्रोटीन स्ट्रक्चर की बनावट में समानता भी शामिल है। रुबेला वायरस के प्रोटीन डोमेन और कोविड-19 के लिए जिम्मेदार वायरस के बीच 29 प्रतिशत समानता देखने को मिली। इस स्टडी में यह बात भी सामने आयी कि बुजुर्ग लोग और वैसे पुरुष जिनके शरीर में रूबेला एंटीबॉडीज की कमी थी उनके कोविड-19 से मृत्यु का खतरा सबसे अधिक था। स्टडी में यह निष्कर्ष भी सामने आया कि एमएमआर का टीका भले ही सार्स-सीओवी-2 वायरस की चपेट में आने से न रोक पाए लेकिन निश्चित रूप से बीमारी के हल्के लक्षणों का कारण बनेगा।

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अमेरिकन सोसाइटी फॉर माइक्रोबायोलॉजी की लेटेस्ट रिसर्च में भी यही सुझाव दिया गया है कि गैर-विशिष्ट इम्यूनिटी कोविड-19 के मरीजों में होने वाले सेप्टिक इन्फ्लेमेशन के खिलाफ सुरक्षात्मक फैक्टर का काम करती है। ब्रिटिश मेडिकल जर्नल बीएमजे में प्रकाशित अपने पेपर में लुसियाना स्टेट यूनिवर्सिटी हेल्थ स्कूल ऑफ डेंटिस्ट्री में असोसिएट डीन फॉर रिसर्च डॉ पॉल फिडेल ने लिखा है कि जीवित क्षीणीकृत टीका, बोन मैरो में मौजूद सफेद रक्त कोशिकाओं (माइलॉयड डेराइव्ड सप्रेसर सेल्स) के अग्रगामी को ट्रेनिंग देता है ताकि वे कई तरह के रोगाणुओं के खिलाफ काम कर सके। सफेद रक्त कोशिकाएं लंबे समय तक जीवित रहने वाली कोशिकाएं हैं जिनमें इन्फ्लेमेशन को रोकने की क्षमता होती है।

समय के साथ शरीर में माइलॉयड डेराइव्ड सप्रेसर सेल्स दिखना बंद हो जाते हैं। लिहाजा इस वैक्सीन का काम अब भी जारी रहे इसके लिए आपको उस टीके का बूस्टर शॉट लेने की जरूरत पड़ती है।


उत्पाद या दवाइयाँ जिनमें कोविड-19 के गंभीर खतरे से आपको कैसे बचा सकता है एमएमआर या बीसीजी का टीका, जानें है

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