कोविड-19 संकट से निपटने के लिए देश के प्रौद्योगिक संस्थान यानी आईआईटी कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों के इलाज को और ज्यादा आसान और सस्ता बनाने के लिए समय-समय पर नए, किफायती और कारगर टूल्स (जैसे टेस्टिंग किट, वेंटिलेटर आदि) बनाते रहे हैं। इस कोशिश में आईआईटी मद्रास एक कदम और आगे बढ़ गया है। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, देश के इस सर्वोच्च प्रौद्योगिकी संस्थान द्वारा शुरू किए गए एक स्टार्टअप 'मॉड्यूलस हाउसिंग' ने एक पोर्टेबल हॉस्पिटल यूनिट ही बना दी है। यानी एक ऐसी संपूर्ण मेडिकल सुविधा, जिसे फोल्ड कर कहीं भी ले जाया जा सकता है। आईआईटी मद्रास के आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर इस माइक्रो-हॉस्पिटल के फीचर से जुड़ी जानकारी साझा की गई है, जिसे यहां क्लिक करके देखा जा सकता है।

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स्टार्टअप के तहत आईआईटी मद्रास के पूर्व छात्रों इस हॉस्पिटल यूनिट में चार जोन तैयार किए हैं। इनमें डॉक्टर के लिए कमरा, आइसोलेशन रूम, मेडिकल रूम या वार्ड और सामान्य व आईसीयू बेड शामिल हैं। संस्थान द्वारा शेयर किए गए वीडियो में देखा जा सकता है कि इस पोर्टेबल हॉस्पिटल को एक क्रेन की मदद से एक जगह पर रखा जा रहा है। उसके बाद कुछ लोग अस्पताल को इन्स्टॉल करते देखे जा सकते हैं। साथ ही, अस्पताल के अंदर लगाई गई तमाम सुविधाओं का भी ब्योरा दिया गया है।

एनडीटीवी के मुताबिक, मॉड्यूलस हाउसिंग ऐसे और माइक्रो-हॉस्पिटल बना रहा है, जिन्हें तेजी से देश में कहीं भी स्थापित किया जा सके और जरूरत पड़ने पर कहीं और ले जाया सके। मेडिकल सुविधाओं के विकेंद्रीकरण पर आधारित यह अप्रोच स्थानीय स्तर पर कोविड-19 के मरीजों की पहचान, जांच, आइडेंटिफिकेशन, आइसोलेशन और इलाज करने के लिए है।

इस नए तरह के प्रयास को लेकर मॉड्यूलस हाउसिंग के सीईओ श्रीराम रविचंद्रन का कहना है, 'केरल में इस पायलट प्रोजेक्ट से माइक्रो-हॉस्पिटल से जुड़ी तकनीक और इसके फायदों को साबित करने में मदद मिलेगी।' रविचंद्रन ने आगे कहा, 'इसकी तुरंत आवश्यकता है, क्योंकि (अस्पताल आदि प्रकार की) इमारतें यूं ही नहीं बन जातीं। चूंकि ग्रामीण क्षेत्रों में जनसंख्या का घनत्व तुलनात्मक रूप से कम होता है, इसलिए माइक्रो-अस्पतालों से कोविड-19 के केसों को संभालने में काफी मदद मिल सकती है।'

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मॉड्यूलस हाउसिंग की मैन्यूफैक्चरिंग यूनिट को तमिलनाडु के चेंगलपट में स्थापित किया गया है, जहां इन माइक्रो-हॉस्पिटल यूनिट्स का निर्माण किया जा रहा है। रविचंद्रन का कहना है कि कोविड-19 संकट के खत्म होने के बाद इन्हें रीमॉडल कर माइक्रो-अस्पताल या क्लिनिक में बदल जा सकता है और ग्रामीण इलाकों में स्थापित किया जा सकता है, जहां के स्वास्थ्यगत ढांचे को बेहतर करने की जरूरत है।

इससे पहले, कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई में आईआईटी) दिल्ली ने इसी हफ्ते एक ऐसी 'जांच-मुक्त' (प्रोब-फ्री) रियल टाइम पीसीआर टेस्टिंग किट को लॉन्च किया था, जिसे दुनिया की सबसे किफायती कोविड-19 डायग्नॉस्टिक किट बताया जा रहा है। खबरों के मुताबिक, आईआईटी दिल्ली ने इस किट की मैन्यूफैक्चरिंग के लिए दस कंपनियों को अनुमति भी दे दी है। ये कंपनियां आईआईटी के शोधकर्ताओं द्वारा अपनाई गई तकनीक का इस्तेमाल करते हुए इस किट का उत्पादन करेंगी। बता दें कि इस किट के इस्तेमाल के लिए आईआईटी को भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) और ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (डीसीजीआई) की तरफ से पहले ही मंजूरी मिल चुकी है।

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उत्पाद या दवाइयाँ जिनमें कोविड-19: आईआईटी-मद्रास के स्टार्टअप के तहत बनाया गया पोर्टेबल हॉस्पिटल, निर्माता का दावा- कोरोना वायरस संकट से निपटने में कर सकता है मदद है

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