कोविड-19 के गंभीर मरीजों के साथ एक अतिरिक्त जोखिम को लेकर वैज्ञानिकों ने नया खुलासा किया है। ताजा रिसर्च के तहत शोधकर्ताओं ने पाया कि कोरोना वायरस के गंभीर रूप से बीमार रोगियों में कार्डियक अरेस्ट बेहद कॉमन है। विशेष रूप से 80 वर्ष या उससे अधिक आयु के रोगियों में यह एक बड़े जोखिम से जुड़ा है। स्वास्थ्य से जुड़ी पत्रिका “द बीएमजे” में प्रकाशित एक रिसर्च के जरिए शोधकर्ताओं ने इस बात की पुष्टि की है।

रिसर्च से मिले निष्कर्ष के आधार पर अध्ययनकर्ताओं का मानना है कि यह कोविड-19 के गंभीर रोगी और उनके परिजनों के साथ इस बात की चर्चा में मदद कर सकता है कि आखिर उनका एंड-ऑफ-लाइफ केयर (यह देखभाल एक ऐसी टर्मिनल स्थिति वाले व्यक्ति के लिए स्वास्थ्य देखभाल को संदर्भित करता है जो अडवांस स्टेज में हो या लाइलाज हो) कैसा होना चाहिए।

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क्या कहती है रिसर्च?
इस रिसर्च के लिए अमेरिका की मिशिगन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने अस्पताल में भर्ती कोविड-19 के गंभीर रूप से बीमार वयस्कों के डेटा का अध्ययन किया। इसके लिए उन्होंने कार्डियक अरेस्ट और कार्डियो पल्मोनरी रिससिटैशन (सीपीआर) से जुड़ी घटनाओं, जोखिम कारकों और परिणामों का अनुमान लगाया। रिपोर्ट के मुताबिक यह रिसर्च कोविड-19 के गंभीर रूप से बीमार 5,019 मरीजों से जुड़े आंकड़ों पर आधारित थी जिनकी उम्र 18 साल से अधिक थी।

यह वे मरीज थे जिन्हें पूरे अमेरिका के 68 अलग-अलग अस्पतालों के आईसीयू वॉर्ड में भर्ती किया गया था। इस अध्ययन से मिले परिणाम बताते हैं कि अस्पताल में 701 यानी 14 प्रतिशत रोगियों को आईसीयू में भर्ती होने के 14 दिनों के भीतर कार्डियक अरेस्ट हुआ और इसमें से केवल 400 यानी 57 प्रतिशत रोगियों को ही सीपीआर दिया गया था।

कार्डियक अरेस्ट वाले ज्यादातर मरीज बुजुर्ग
अध्ययन से जुड़े शोधकर्ताओं का कहना है "जिन मरीजों को अस्पताल में कार्डियक अरेस्ट आया था वो मरीज अधिक उम्र के थे (औसत आयु 60-63 वर्ष)। इसके अलावा उन्हें पहले से ही कई तरह की स्वास्थ्य संबंधी (कोमोरिडिटीज) बीमारियां थीं और उनके अस्पताल में भर्ती होने की आशंका भी अधिक थी।" महत्वपूर्ण बात यह है कि इस अध्ययन के दौरान अस्पताल के संसाधन, स्टाफ, विशेषज्ञ डॉक्टरों और अन्य किसी कारक को इस स्टडी में शामिल नहीं किया गया, जिनका इस पर एक बड़ा प्रभाव हो सकता था।

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रिपोर्ट में बताया गया है कि जिन लोगों को सीपीआर नहीं दिया गया था वो उम्र में बड़े थे (औसत उम्र 61- 67 वर्ष)। इनकी तुलना में सीपीआर पाने वाले रोगियों की उम्र कम थी। वहीं जिनको सीपीआर दिया गया था उनमें से केवल 12 प्रतिशत (400 में से 48) मरीज ऐसे थे जो पूरी तरह से ठीक हो गए और उन्हें अस्पताल से छुट्टी दे दी गई। इनमें से भी केवल 7 प्रतिशत (400 में से 28) मरीज ही ऐसे थे जिनकी न्यूरोलॉजिकल स्थिति सामान्य या हल्के रूप से बिगड़ी थी।

कम समय के लिए सीपीआर की जरूरत
शोधकर्ताओं ने अपनी इस रिसर्च में पाया कि जिन मरीजों को ठीक होने के बाद अस्पताल से छुट्टी दी गई थी उनमें से अधिकांश को कम समय के लिए सीपीआर दिया गया था। वहीं बीमारी से ठीक होने वाले लोगों की उम्र भी अलग-अलग थी। बीमारी के बावजूद जीवित बचने वाले 21 प्रतिशत रोगियों की उम्र 45 साल से कम थी जबकि इसकी तुलना में 80 साल या इससे अधिक उम्र के केवल 3 प्रतिशत रोगी थे जो कोविड-19 बीमारी के बाद भी जीवित बच पाए।

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शोधकर्ताओं ने स्टडी से जुड़ी कुछ सीमाओं की ओर भी इशारा किया, जैसे कि सीपीआर की गुणवत्ता और समयबद्धता का आकलन करने में असमर्थ होना और आईसीयू में भर्ती होने के पहले 14 दिनों तक का डेटा सीमित करना, संभावित रूप से कार्डियक अरेस्ट की सही दर को कम करके आंका गया। हालांकि, स्टडी का मजबूत पक्ष यह था कि इसमें मरीजों की बड़ी संख्या को शामिल किया गया जिनके लिए उच्च क्वॉलिटी विस्तृत आंकड़ों को इक्ट्ठा किया गया और इन मरीजों को अस्पताल से डिस्चार्ज होने या मृत्यु तक फॉलो किया गया।

शोधकर्ताओं ने उल्लेख किया कि कोविड-19 के गंभीर रूप से बीमार रोगियों में कार्डियक अरेस्ट आम बात है और सीपीआर देने के बावजूद भी मरीज के बचने की संभावना कम होती है।


उत्पाद या दवाइयाँ जिनमें कोविड-19 के गंभीर मरीजों में कार्डियक अरेस्ट होने का खतरा अधिक: रिसर्च है

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