कोविड-19 इलाज को लेकर पतंजलि की कोरोनिल दवा अभी विवादों में ही थी कि इस बीच एक और पारंपरिक, लेकिन विवादित चिकित्सा पद्धति से कोरोना वायरस के मरीजों का 'सौ प्रतिशत' सफल इलाज किए जाने का दावा सामने आया है। खबरों के मुताबिक, तमिलनाडु सरकार ने यह दावा किया है कि उसके यहां प्रचलित देसी इलाज 'सिद्धा' से वहां कोरोना वायरस से संक्रमित 25 लोगों को कोविड-19 बीमारी से सफलतापूर्वक बचा लिया गया है। इस खबर के सामने आने के बाद राज्य सरकार ने चेन्नई के अंबेडकर कॉलेज में 'सिद्धा' उपचार को बढ़ाने का फैसला किया है।

क्या है सिद्धा इलाज?
यह तमिलनाडु में इलाज की एक प्रचलित, पारंपरिक और प्राचीन पद्धति है, जिसका इस्तेमाल आमतौर पर आधुनिक जीवन शैली से जुड़ी बीमारियों के उपचार में किया जाता है। इनमें तनाव, अनिद्रा, रक्तचाप आदि से जुड़े रोग या समस्याएं शामिल हैं। आयुर्वेद की तरह ही 'सिद्धा' में वात, पित्त, कफ आदि का समस्या या दोष के आधार पर इलाज किया जाता है। ऐसा बताया जाता है कि तमिलनाडु में 'सिद्धा' चिकित्सा पद्धति कोई 4,000 हजार साल पुरानी है। इसके अस्तित्व के पीछे 18 आचार्यों की भूमिका का जिक्र किया जाता है। इन आचार्यों को इलाज की इस पद्धति का जनक माना जाता है। लेकिन उन्हें इसके ज्ञान की प्राप्ति कहां से हुई, इसकी गहराई में जाने पर मिथकीय बातें सामने आती हैं जो कई लोगों के लिए अविश्वसनीय और यहां तक कि विवादास्पद भी हैं। यही कारण है कि पतंजलि की आयुर्वेद आधारित दवा कोरोनिल की तरह 'सिद्धा' पर भी कई लोगों ने सवाल खड़े किए हैं।

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क्या है सरकार का रुख?
लेकिन तमिलनाडु की सरकार किसी तरह के विवाद से बेफिक्र दिख रही है। एनडीटीवी से बातचीत में तमिलनाडु सरकार में विकास मंत्री के पंड्याराजन ने यह मानने से इनकार कर दिया कि इस प्राचीन अवैज्ञानिक मेडिकल उपचार से लोगों के जीवन को खतरा हो सकता है। उन्होंने कहा, 'हमारे ट्रायल में यह (इलाज) सौ प्रतिशत सफल रहा है। हमें लोगों की जिंदगी खतरे में नहीं डाल रहे हैं। 'सिद्धा' हमारे लिए ट्रंप कार्ड है। हम सिद्धा, योग और आयुर्वेद का मिश्रण तैयार कर रहे हैं। इसके प्रयोगसिद्ध प्रमाण नहीं हैं, लेकिन इतिहास पर्याप्त है। लोगों की भी इसमें आस्था है। हम कई केसों के आधार पर ऐसा कह रहे हैं।' मंत्री ने आगे कहा, 'सिद्धा इलाज के लिए ज्यादा उपकरणों (जैसे वेंटिलेटर या ऑक्सीजन सपोर्ट) की जरूरत नहीं है। केवल तीन प्रतिशत केसों में इनकी जरूरत होती है।'

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वहीं, एक अन्य अधिकारी ने बताया कि वे लोगों को उनकी इच्छा पर ही 'सिद्धा' उपचार दे रहे हैं। इस अधिकारी के मुताबिक, ऐसे लोग इस इलाज से खुश हैं। हालांकि एलोपैथिक मेडिकल प्रैक्टीशनर्स इस बारे में सावधानी बरतने को कहते हैं। उनका कहना है कि 'सिद्धा' इलाज की वैज्ञानिक जांच से जुड़े तथ्य या आंकड़े काफी कम हैं। तमिलनाडु के एक डॉक्टर ने एनडीटीवी को बताया, 'हम इसके खिलाफ नहीं हैं। लेकिन समस्या यह है कि 'सिद्धा' उपचार प्रमाणित अध्ययनों, ट्रायलों और परिणामों पर आधारित नहीं है। यह ट्रीटमेंट धातुओं के ज्यादा इस्तेमाल के लिए जाना जाता है, जो बाद में किडनी की समस्या की वजह बनते हैं। वहीं, एलोपैथी में पहले जानवरों पर ट्रायल किया जाता है। उसके बाद मरीजों और स्वस्थ लोगों पर परीक्षण किए जाते हैं। इसी कारण सिद्धा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार्य उपचार नहीं है।'

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बहरहाल, खबरों के मुताबिक राज्य सरकार 'सिद्धा' उपचार के तहत तैयार किए जाने वाले एक मिश्रण 'कबासुरा कुडीनीर' को इम्यूनिटी बूस्टर की तरह इस्तेमाल कर रही है। इस पर पंड्याराजन का कहना है, 'प्रधानमंत्री (नरेंद्र मोदी) ने भी इसे लोगों में इम्युनिटी बढ़ाने वाला बताया है। हम हर घर में जाकर लोगों को यह दे रहे हैं और उन्हें यह पसंद आ रहा है।'


उत्पाद या दवाइयाँ जिनमें कोविड-19: तमिलनाडु में पारंपरिक 'सिद्धा' इलाज से कोरोना वायरस के मरीजों को ठीक करने का दावा, राज्य सरकार की दलील- लोग की इसमें आस्था है है

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