कोरोना वायरस के संक्रमण को लेकर कई विशेषज्ञों का कहना है कि इसके प्रभाव में आने वाले लोगों का इलाज एक ही तरह से नहीं हो रहा है। इन विशेषज्ञों की मानें तो हर मरीज के लिए अलग-अलग प्रोटोकोल अपनाने पड़ रहे हैं। इन प्रोटोकोल्स में केवल दवाएं शामिल नहीं हैं, बल्कि अन्य तरीकों से भी कोरोना वायरस के मरीजों का इलाज किया जा रहा है। इनमें 'प्रोनिंग' टेक्निक भी शामिल है, जिससे दुनियाभर में कोविड-19 के हजारों गंभीर मरीजों को ट्रीटमेंट दिया जा रहा है। 

दुनियाभर में कई अस्पतालों में डॉक्टर कोरोना वायरस के मरीजों को जटिल मेडिकेशन या वैक्सीन देने के बजाय, उन्हें बेड पर उल्टा यानी मुंह की तरफ लिटा कर ठीक करने की कोशिश कर रहे हैं। इलाज के इस तरीके या पोजिशन को 'प्रोनिंग' कहते हैं। डॉक्टरों का कहना है कि इससे मरीज के संक्रमित फेफड़ों की कार्यक्षमता में सुधार होता है और सूजन के चलते पैदा होने वाले दबाव में कमी आती है।

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कैसे काम करते हैं फेफड़े?
फेफड़ों की कार्यप्रणाली जटिल होती है। शरीर में गैसों के आदान-प्रदान की प्रक्रिया काफी हद तक इस एक अंग पर निर्भर करती है। नाक के जरिये जब हवा फेफड़ों तक पहुंचती है तो शरीर के श्वसन मार्ग के अंत में मौजूद अति सूक्ष्म कोष या माइक्रोस्कोपिक सैक ऑक्सीजन को ग्रहण करने के लिए तैयार होते हैं। इन्हें एलवियल कहते हैं। फेफड़ों को जितनी ऑक्सीजन की जरूरत होती है, रक्तवाहिकाओं का यह नेटवर्क उसी हिसाब से फैलता जाता है। हरेक सांस के साथ मिलने वाली ऑक्सीजन को फेफड़े शरीर के बाकी अंगों तक पहुंचाते हैं ताकि शरीर की मेटाबॉलिक डिमांड को पूरा किया जा सके।

वायुमार्गों और रक्तवाहिकाओं के अलावा फेफड़े शरीर के किसी और अंग से तकनीकी रूप से जुड़े नहीं होते हैं। सांस लेने पर पसलियों के आसपास फैली झिल्ली और मांसमेशियां फैल कर सीने को फुला देती हैं। फेफड़ों के ऊतकों और सीने की मांसपेशी के बीच अलग से जगह होती है, जिसे प्लूरल कैविटी कहते हैं। फेफड़ों के जरिये हवा के आदान-प्रदान से जब सीना फूलता है तो उसका दबाव इसी प्लूरल कैविटी पर पड़ता है। फेफड़ों के टिशू जितना अधिक फैलते हैं, ऐलवियल्स उतनी ज्यादा हवा अंदर खींचता है।

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क्यों अपनाई जा रही प्रोनिंग टेक्निक?
प्रोनिंग पोजिशन में फेफड़ों पर ग्रैविटी का दबाव कम हो जाता है। सामान्य सूपाइन पोजिशन यानी पीठ के बल लेटे रहने से फेफड़ों के पीछे के भाग के टिशू दबे रह जाते हैं। इस पोजिशन में लगातार रहने से फेफड़ों की क्षमता प्रभावित होती है। अगर कोविड-19 के मरीज को कई दिनों तक पीठ के बल लिटाया जाए तो उसके फेफड़ों की हालत और ज्यादा खराब होने की संभावना रहती है, क्योंकि यह बीमारी सीधे फेफड़ों पर हमला करती है।

प्रोनिंग पॉजिशन में फेफड़ों के ऊतकों के और हिस्से खुले जाते हैं जिससे हवा और गैस का आदान-प्रदान बेहतर होता है। साथ ही, फेफड़ों पर हृदय का वजन भी कम हो जाता है। ऐसी रिपोर्टें हैं जो बताती हैं कि इलाज के इस तरीके से सांस की समस्या से पीड़ित कुछ मरीजों की हालत सुधारने में मदद मिली है।

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हालांकि मरीज को ज्यादा समय तक प्रोनिंग पोजिशन में नहीं रहा जा सकता। इससे स्वास्थ्यकर्मियों को भी मरीजों की शारीरिक जांच करने में दिक्कत हो सकती है। यानी मरीज और डॉक्टर दोनों के लिए लंबे वक्त प्रोनिंग सहज नहीं है। इसीलिए वे कोविड-19 के मरीजों को अलग-अलग वक्त में इस पोजिशन में रखते हैं। बाकी समय वे उन्हें सूपाइन रखते हैं। इस संबंध में कुछ गाइडलाइंस हैं, जो बताती हैं कि कैसे अलग-अलग पोजिशन में रह कर मरीज अपने फेफड़ों की कार्यप्रणाली में सुधार ला सकते हैं।


उत्पाद या दवाइयाँ जिनमें कोरोना वायरस: प्रोनिंग टेक्निक से कोविड-19 के कई मरीजों को ठीक करने में लगे डॉक्टर, जानें इसके बारे में है

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