सुप्रीम कोर्ट ने मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े इलाज को मेडिकल बीमा कवरेज में शामिल किए जाने को लेकर दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार और भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (आईआरडीएआई) को नोटिस जारी किए हैं। इस याचिका में अपील की गई है कि बीमा कंपनियों को अपने मेडिकल इंश्योरेंस कवरेज में मानसिक बीमारी के इलाज को भी शामिल करने के निर्देश दिए जाने चाहिए। याचिकाकर्ता वकील गौरव कुमार बंसल द्वारा दायर की गई यह याचिका कहती है कि 'मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम 2017' के तहत आदेश होने के बावजूद इंश्योरेंस कंपनियां यह कवरेज देने से इनकार कर रही हैं।

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मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम 2017 के अनुच्छेद 21 के प्रावधानों के मुताबिक, बीमाकर्ता (कंपनी) को मेडिकल इंश्योरेंस करते समय मानसिक बीमारी के इलाज के लिए भी उसी तरह प्रावधान (इलाज और अन्य स्वास्थ्य सुविधाएं) करने होंगे जैसे कि शारीरिक बीमारी के लिए किए जाते हैं। इस प्रावधान के आधार पर आईआरडीएआई ने अगस्त 2018 में बीमा कंपनियों को एक सर्कुलर जारी किया था। इसमें कंपनियों से मानसिक रोग के इलाज से संबंधित प्रावधानों का अनुपालन करने को कहा गया था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

याचिकाकर्ता गौरव बंसन का आरोप है कि आईआरडीएआई ने ऐसा नहीं होने पर कंपनियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की। उनका कहना है, 'आईआरडीएआई के कार्रवाई नहीं करने के चलते मानसिक बीमारी से पीड़ित हजारों लोगों के इलाज की प्रक्रिया प्रभावित हो रही है।' अब उनकी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश आर नरीमन ने आईआरडीए और केंद्र सरकार से जवाब मांगा है। बहरहाल, सर्वोच्च अदालत ने ये नोटिस ऐसे समय में जारी किए हैं, जब अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या हर तरफ चर्चा का विषय बनी हुई है। कहा जा रहा है कि सुशांत बीते कुछ समय से डिप्रेशन में थे। 

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क्या है मानसिक रोग?
मानसिक रोग या बीमारी का संबंध मस्तिष्क से जुड़ी कई स्वास्थ्य स्थितियों से है। ऐसे विकार या डिसऑर्डर जो किसी व्यक्ति की मनोदशा, विचार और व्यवहार को प्रभावित करते हैं, मानसिक रोग या डिसऑर्डर की श्रेणी में आते हैं। इनमें डिप्रेशन, चिंता, स्किजोफ्रेनिया आदि शामिल हैं। कुछ लोगों को समय-समय पर मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं होती हैं। लेकिन जब इनके लक्षण अक्सर तनाव का कारण बनते हैं या पीड़ित के काम करने की क्षमता को प्रभावित करने लगते हैं तो यह बीमारी का रूप ले लेती हैं। मानसिक बीमारी पीड़ित को दुखी कर सकती है, जिससे उसके दैनिक जीवन में समस्याएं पैदा होने लगती हैं। ये समस्याएं मरीज के कार्य, पढ़ाई और यहां तक कि संबंधों को भी प्रभावित कर सकती हैं।

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क्या है अधिनियम?
नेशनल हेल्थ पोर्टल के मुताबिक, 'मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम' सात अप्रैल, 2017 को पारित किया गया था और इसे सात जुलाई, 2018 से लागू किया गया था। अधिनियम के शुरुआती अनुच्छेद में कहा गया था कि इस अधिनियम का उद्देश्य मानसिक रोग से पीड़ित व्यक्तियों के लिए मानसिक स्वास्थ्य देखभाल और सेवाएं उपलब्ध करवाना है। ऐसे व्यक्तियों की मानसिक देखभाल और सेवाओं की डिलीवरी और इससे जुड़े मामलों अथवा इनसे संबद्ध घटनाओं के दौरान उनके अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित करना भी अधिनियम के प्रमुख उद्देश्यों में शामिल है। साथ ही, ऐसे मरीजों को प्रोत्साहन और पूर्णता प्रदान करना अधिनियम के लक्ष्यों में से एक हैं।

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