जब बात त्वचा से जुड़ी बीमारियों की होती है, तो सिद्ध चिकित्सा पद्धति के जरिए इसका इलाज आसानी से किया जा सकता है। इतना ही नहीं आयुर्वेद की ही तरह सिद्ध के भी कोई साइड इफेक्ट्स नहीं हैं और इलाज की यह पद्धति ज्यादा खर्चीली भी नहीं है। सोरायसिस को हिंदी में छाल रोग और तमिल भाषा में कलनजगापदई कहते हैं। सोरायसिस, स्किन से जुड़ी बीमारी है जिसमें स्किन पर लाल, परतदार चकत्ते नजर आने लगते हैं। इसका सबसे ज्यादा असर कोहनी के बाहरी हिस्से और घुटने पर देखने को मिलता है, लेकिन यह चर्म रोग स्किन के किसी भी हिस्से पर हो सकता है। कुछ लोगों को सोरायसिस के चलते त्वचा पर जलन भी होती है और खुजली भी।

आज इस लेख में आप विस्तार से जानेंगे कि कैसे सिद्ध चिकित्सा के जरिए सोरायसिस को ठीक किया जा सकता है -

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  1. संक्रामक बीमारी नहीं है सोरायसिस
  2. 20 प्रतिशत आबादी प्रभावित
  3. खून को साफ करके इलाज
  4. डिटॉक्स थेरेपी से शुरुआत
  5. इलाज के दौरान परहेज
  6. सारांश
  7. सोरायसिस का सिद्ध चिकित्सा से इलाज के डॉक्टर

नेशनल सोरायसिस फाउंडेशन के मुताबिक इस बीमारी की असल वजह क्या है इस बारे में अब तक कोई जानकारी नहीं मिली है, लेकिन इस चर्म रोग के बारे में जितनी भी जानकारी उपलब्ध है, उसके मुताबिक यह ऑटोइम्यून बीमारी है। यह शरीर के इम्यून सिस्टम में गड़बड़ी होने के कारण होती है या फिर आनुवंशिक कारणों के चलते, लेकिन यह संक्रामक बीमारी नहीं है यानी यह छूने से नहीं फैलती।

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राष्ट्रीय सिद्ध संस्थान के मुताबिक, सोरायसिस दुनिया की करीब 20 प्रतिशत आबादी को प्रभावित करने वाली बीमारी है। इसका मतलब है कि यह स्किन की आम बीमारी है। अगर किसी व्यक्ति को बहुत ज्यादा तनाव हो, अगर वह ज्यादा देर तक सूरज की रोशनी में बाहर रहे, अगर तापमान में अचानक बहुत ज्यादा बदलाव हो, तो सोरायसिस की यह स्थिति उत्तेजित हो सकती है या बिगड़ भी सकती है। सोरायसिस में त्वचा पर भद्दे घाव हो जाते हैं, जिसकी वजह से मरीज को काफी शर्मिंदगी और शारीरिक परेशानी का सामना करना पड़ता है और ऐसी स्थिति को सुरक्षित और प्रभावी रूप से मैनेज करना मुश्किल होता है।

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सिद्ध चिकित्सा प्रणाली में, सोरायसिस का इलाज समय के साथ टेस्ट करके और सुरक्षित औषधियों के सूत्रीकरण के साथ प्रभावी ढंग से किया जा सकता है। सोरायसिस के लिए किए जाने वाले सिद्ध ट्रीटमेंट में लक्षणों से राहत दिलाने की बजाए मुख्य रूप से खून को साफ करने और दूषित या विकृत दोषों को संतुलित करने पर फोकस किया जाता है। सोरायसिस के इलाज में आंतरिक और बाहरी दोनों तरह की दवाओं का इस्तेमाल किया जाता है।

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सालों से शरीर में जमा विषाक्त पदार्थों से छुटकारा पाने और सभी दोषों को संतुलित करने के लिए डिटॉक्सिफिकेशन थेरेपी के साथ सोरायसिस के इलाज की शुरुआत होती है। इसके बाद आंतरिक सिद्ध दवाइयां दी जाती हैं, जिसे जड़ी-बूटियों और खनिज पदार्थों को मिलाकर तैयार किया जाता है, ताकि खून को साफ कर इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाया जा सके।

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त्वचा पर जो परत बन जाती है उसे ठीक करने के लिए जड़ी-बूटियों को मिलाकर तैयार की गई दवाइयां और तेल स्किन के सोरायसिस प्रभावित हिस्से पर बाहर से लगाया जाता है। जितने दिन सिद्ध चिकित्सा चलती है, मरीज को खाने में खट्टी और नमकीन चीजें, अंडे से बने उत्पाद, मछली और सीफूड और खट्टे फलों का सेवन न करने और चावल, दूध, हरी सब्जियां और दालों को डायट में शामिल करने की सलाह दी जाती है। 

सोरायसिस के लिए सिद्ध चिकित्सा पद्धति को फायदेमंद माना जा सकता है। इस पद्धति के दौरान आयुर्वेदिक औषधियों के साथ-साथ शरीर को डिटॉक्स करने पर भी फोकस किया जाता है। इससे न सिर्फ खून साफ होता है, बल्कि इम्यून सिस्टम भी मजबूत होता है। इलाज के दौरान डाइट पर भी खास ध्यान देने की जरूरत होती है। इससे सोरायसिस को जड़ से खत्म करने में मदद मिल सकती है, लेकिन यह इलाज अच्छे विशेषज्ञ की देखरेख में ही कराया जाना चाहिए।

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