हर महिला का शरीर व उसके काम करने का तरीका (बॉडी फंक्शन) अलग-अलग हो सकता है, मतलब एक महिला का शरीर दूसरी से अलग तरीके से काम कर सकता है। इसका प्रभाव उनके गर्भवती होने की क्षमता पर भी पड़ता है। कुछ महिलाओं को गर्भधारण करने के लिए निरंतर कोशिशें करने के बावजूद भी सामान्य से अधिक समय लगता है जबकि कुछ महिलाएं अगर एक बार गर्भनिरोधक गोली लेना भूल जाएं, तो वे गर्भवती हो जाती है। हालांकि इस बात का ध्यान रखना जरूरी है कि गर्भवती होने में किसी महिला को कम तो किसी महिला को ज्यादा समय भी लग सकता है। पहले के मुकाबले आजकल स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं अधिक होने लगी हैं और इसके परिणामस्वरूप गर्भधारण करने में भी अधिक कठिनाईयां आने लगती हैं।

स्वास्थ्य संबंधी ऐसी बहुत सारी स्थितियां व रोग हैं, जो किसी महिला को गर्भधारण करने में कठिनाई पैदा कर सकते हैं, जिनमें थायराइड संबंधी समस्याएं भी शामिल हैं। यदि कोई महिला गर्भवती नहीं हो पा रही है, तो उसे जल्द से जल्द जांच करवा लेनी चाहिए, क्योंकि कुछ थायराइड संबंधी समस्याएं महिलाओं में गर्भधारण न कर पाने का कारण बन सकती है।

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थायराइड रोग कैसे प्रेगनेंसी को कैसे प्रभावित करता है?

थायराइड रोग कई बीमारियों का एक समूह होता है, जो थायराइड ग्रंथि को प्रभावित करता है। थायराइड गर्दन में स्थित तितली की आकृति जैसी एक छोटी सी ग्रंथि है, जिसका मुख्य कार्य थायराइड हार्मोन का निर्माण करना है। आपका शरीर ऊर्जा का किस प्रकार से इस्तेमाल कर रहा है, यह थायराइड हार्मोन द्वारा निर्धारित किया जाता है। इसी कारण से थायराइड हार्मोन के स्तर या थायराइड ग्रंथि के कार्यों में किसी प्रकार का बदलाव कई शारीरिक कार्यों को प्रभावित कर सकता है।

थायराइड हार्मोन का स्तर कम होना (हाइपोथायरायडिज्म) कई अलग-अलग रूपों में मासिक धर्म और ओव्यूलेशन जैसी स्थितियों को प्रभावित करता है। थायरोक्सिन (टी4) या थायराइड रिलीजिंग हार्मोन (टीआरएच) के स्तर में कमी होने या थायराइड रिलीजिंग हार्मोन का स्तर बढ़ने के कारण प्रोलैक्टिन का स्तर सामान्य से अधिक हो जाता है। प्रोलैक्टिन हार्मोन का स्तर बढ़ने से या तो ओव्यूलेशन के दौरान कोई अंडा निषेचित नहीं होता या फिर असामान्य समय पर निषेचित हो होने लगता है जिसके कारण गर्भधारण करने में कठिनाई होने लगती है।

थायराइड हार्मोन के स्तर मे कमी होने पर ओव्यूलेशन रुक जाता है, इसलिए हाइपोथायरायडिज्म में गर्भधारण करने में कठिनाई होती है। यदि हाइपोथायरायडिज्म का इलाज नहीं किया जाता  या फिर इसका इलाज ठीक से नहीं होता है, तो गर्भधारण करने में कठिनाइयां हो सकती हैं। इस स्थिति में पीरियड्स लंबे समय तक रहते हैं और अधिक खून आता है, जिसके परिणामस्वरूप महिलाओं के शरीर में खून की कमी हो जाती है।

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थायराइड में गर्भधारण कैसे करें?

यदि आपको थायराइड संबंधी समस्या है, तो भी आप डॉक्टर द्वारा दी गई दवाओं की मदद से गर्भधारण कर सकती हैं और नियमित रूप से थायराइड फंक्शन टेस्ट करवा कर गर्भ में पल रहे शिशु की स्वास्थ्य जांच कर सकती हैं। यदि आपको थायराइड संबंधी कोई रोग है और आप गर्भवती नहीं हो पा रही हैं, तो थायराइड का इलाज करवाना बहुत जरूरी है। यदि थायराइड संबंधी समस्याओं का इलाज होने के बाद भी आप गर्भधारण नहीं कर पा रही हैं, तो डॉक्टर बांझपन व अन्य समस्याओं की जांच व उनका इलाज करेंगे। थायराइड संबंधी समस्याओं का इलाज उनके प्रकार के अनुसार किया जाता है:

हाइपोथायरायडिज्म का इलाज 

गर्भधारण न होने से संबंधी समस्याओं के मामले ज्यादातर हाइपोथायरायडिज्म में देखे जाते हैं। इसके इलाज में मरीज को कुछ विशेष सप्लीमेंट्स दिए जाते हैं, जिनकी मदद से थायराइड हार्मोन की कमी को पूरा किया जाता है। इन सप्लीमेंट्स की मदद से हाइपोथायरायडिज्म का पूरी तरह से इलाज तो नहीं किया जा सकता, लेकिन ज्यादातर मामलों में इस स्थिति को नियंत्रित कर लिया जाता है। इसके इलाज में निम्न प्रकार के सप्लीमेंट को शामिल किया जाता है:

हाइपरथायरायडिज्म का इलाज

इस स्थिति के इलाज में थायराइड में अधिक मात्रा में बन रहे हार्मोन को कम करके उसे सामान्य स्तर पर लाया जाता है। कई बार इलाज की मदद से थायराइड हार्मोन का स्तर स्थायी रूप से कम हो जाता है, ऐसा आमतौर पर रेडियोएक्टिव आयोडीन में होता है। इसके अलावा निम्न को भी हाइपरथायरायडिज्म के इलाज में शामिल किया जा सकता है:

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