हैदराबाद में तीन साल के एक बच्चे के शरीर से 11 सुइयां निकाले जाने का मामला सामने आया है। खबर के मुताबिक, मामला तेलंगाना के वानापर्थी जिले का है। बताया जा रहा है कि बच्चे के परिवार के ही किसी सदस्य ने उसके प्राइवेट पार्ट के रास्ते में सुइयां डाल दी थीं। इसके बाद जब बच्चे की हालत बिगड़ी तो उसे जिले के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया था। वहां डॉक्टरों ने ऑपरेशन के जरिये बच्चे के शरीर से करीब एक दर्जन सुइयां निकालीं। 

एक्सरे की मदद से सुइयों का पता चला
डॉक्टरों ने बताया कि बच्चे की परेशानी का पता करने के लिए उन्होंने उसके शरीर का एक्स-रे किया। जब उन्होंने एक्स-रे रिपोर्ट देखी तो हैरान रह गए। डॉक्टरों ने पाया कि बच्चे के शरीर के अलग-अलग हिस्सों में सुइयां पड़ी हुई थीं। डॉक्टरों की मानें तो बच्चे की कमर के नीचे और किडनी के आसपास ये सुइयां मौजूद थीं, जो कि बच्चे के प्राइवेट पार्ट (गुदा) के जरिये शरीर में फैली थीं।

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कैसे निकाली गई सुइयां?
बच्चे की गंभीर स्थिति को देखते हुए डॉक्टरों के पास सर्जरी ही एक मात्र रास्ता था, जिसके जरिये सुइयों को निकाला जा सकता था। लिहाजा डॉक्टरों ने बच्चे के ऑपरेशन की प्रक्रिया शुरू की। सर्जरी की मदद से आठ सुइयों को निकाला गया। तीन सुइयों को निकलना अभी बाकी है। अस्पताल के डॉक्टरों ने बताया कि उन्हें बची हुई सुइयों को निकालने के लिए और समय चाहिए, क्योंकि ये सुइयां बच्चे के शरीर में एक संवेदनशील जगह पर फंसी हैं।

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बच्चे को ख्याल रखने के बहाने ले जाते थे आरोपित
खबर के मुताबिक, पीड़ित बच्चे के माता-पिता ने आरोप लगाया है कि आरोपित बच्चे को अक्सर अपने साथ ले जाया करते थे। आसपास के लोगों को शक है कि आरोपितों के बच्चे के साथ इस तरह के व्यवहार की वजह 'काला जादू' हो सकता है। लेकिन यह भी देखने में आया है कि कई बार केयरटेकर 'मेनच्युसेन सिंड्रोम' नामक मानसिक विकार के भी शिकार होते हैं। यह मानसिक समस्या बाल-उत्पीड़न का एक रूप है। इसमें मां या फिर केयरटेकर बच्चे में किसी बीमारी के झूठे लक्षण होने का दावा करते हैं। या वे ऐसे वास्तविक लक्षण भी पैदा कर सकते हैं, जिससे ऐसा प्रतीत हो कि बच्चा घायल या बीमार है।

मुनच्युसेन सिंड्रोम के लक्षण
इस बीमारी से ग्रस्त केयरटेकर बच्चे में बीमारी के नकली लक्षण पैदा करने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। उदाहरण के लिए-

  • बच्चे के मल या पेशाब में अलग से खून डालना
  • बच्चे को खाना न देना
  • थर्मामीटर को गर्म करना ताकि ऐसा लगे कि बच्चे को बुखार है
  • लैब टेस्ट के परिणामों को छिपाना
  • बच्चे में दस्त की समस्या बनाने के लिए उसे दवाइयां देना
  • बच्चे को बीमार बनाने के लिए इंजेक्शन देना

डॉक्टरों का कहना है कि इस बीमारी के कारणों के बारे में अभी तक कोई विशेष जानकारी हासिल नहीं हो पाई है। फिलहाल अनुमान लगाया जाता है कि हो सकता है बच्चे की देखभाल करने वाले शख्स को बचपन में किसी ने प्रताड़ित किया हो। चूंकि इस मानसिक विकार में जानबूझकर झूठे लक्षणों को पैदा किया जाता है, इसलिए इसका निदान कई बार मुश्किल हो जाता है। इस बीमारी की पुष्टि के लिए डॉक्टरों को किसी मरीज से जुड़े किसी संकेत को पहचानने की जरूरत पड़ती है। उन्हें बच्चे के मेडिकल रिकॉर्ड की समीक्षा करनी पड़ सकती है ताकि यह जाना जा सके कि उसके साथ क्या हुआ है।

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