दिल्ली का अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) दो मृत व्यक्तियों के अंगों का प्रत्यारोपण कर सात लोगों का जीवन बचाने में सफल रहा है। एम्स ने यह कामयाबी केवल 48 घंटों में हासिल की। खबरों के मुताबिक, बीती 13 फरवरी को एक 26 वर्षीय युवक को एम्स के ट्रॉमा सेंटर में भर्ती कराया गया था. वह एक मजदूर था जो एक इमारत की दूसरी मंजिल से गिर गया था। एम्स भर्ती होने के दो दिन बाद 15 फरवरी को डॉक्टरों ने उसे ब्रेन डेड घोषित कर दिया। इसके बाद डॉक्टरों ने मृतक के माता-पिता की काउंसलिंग की, जिसके बाद वे उसके अंगों को दान करने पर राजी हुए। वहीं, दूसरा डोनर एक 61 वर्षीय बुजुर्ग थे जो पहले ही अपने अंग दान कर चुके थे। डॉक्टरों ने बताया कि इन दोनों अंगदाताओं से उन्हें दो हृदय, चार किडनी, दो लीवर, चार आंखें और हड्डियां मिलीं। इन्हें सात जरूरतमंदों मरीजों में ट्रांसप्लांट कर दिया गया है। वहीं, कुछ अंगों को अस्पताल में ही सुरक्षित रखा गया है।

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भारत में अंगदान की स्थिति क्या है?
भारत में अंगदान के प्रति लोगों को और जागरूक करने की जरूरत है। इस विषय से जुड़ी मौजूदा स्थिति उत्साहजनक नहीं है। मेडिकल विशेषज्ञ बताते हैं कि हमारे देश में बहुत कम मामले ऐसे होते हैं जब मृतक व्यक्ति के परिजन अंगदान के लिए राजी होते हैं। आंकड़ों इसकी गवाही देते हैं।

हमारे देश में हर साल जितने भी मानव अंगों का प्रत्यारोपण होता है, उनमें से केवल पांच प्रतिशत ही मृतकों के परिवारों द्वारा दान किए जाते हैं। कई मेडिकल जानकार कहते हैं कि 130 करोड़ की आबादी के लिहाज से भारत में मानव अंगों की मांग और अंगदाताओं के अनुपात में काफी बड़ा अंतर है। मिसाल के लिए भारत में हर साल ट्रांसप्लांट के लिए ढाई लाख किडनी, लीवर और हृदय की जरूरत होती है, लेकिन अंगदान की कमी के चलते केवल 6,000 से 7,000 लोगों का ही प्रत्यारोपण हो पाता है।

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देश में अंग प्रत्यारोपण की मांग और आपूर्ति के लिए साल 2015 में भारत सरकार ने नेशनल ऑर्गन एंड टिशूज ट्रांसप्लांन रजिस्ट्री की व्यवस्था शुरू की थी। इसका उद्देश्य था कि देश में अंगदान की कमी को पूरा किया जाए। हालांकि ऐसे कई प्रयासों के बाद भी अंगदान की दर अब भी बहुत कम है।

कितने वक्त तक जीवित रहते हैं दान किए गए अंग?
myUpchar से जुड़े डॉक्टरों के एक पैनल ने इस सवाल के जवाब में बताया कि सभी अंगों को जीवित रखने का अलग-अलग समय होता है। इनमें आंखों को सबसे ज्यादा देर तक जीवित रखा जा सकता है। डॉक्टरों के मुताबिक, किसी व्यक्ति की मौत होने के चार से छह घंटे बाद भी आंखों को डेड बॉडी से निकाला जा सकता है। इसके बाद 12-24 घंटों तक आंखों को फॉर्मलिन (formalin) में जीवित रखा जा सकता है और इसी दौरान जरूरतमंद व्यक्ति में प्रत्यारोपित किया जा सकता है।

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वहीं, हृदय, लीवर, किडनी और फेफड़े को मृत शरीर से दो से तीन घंटे में निकालना जरूरी होता है। अगर हृदय की बात करें तो शरीर से निकाले जाने के बाद इसे चार घंटे से कम समय में ट्रांसप्लांट कराने की जरूरत होती है। ऐसा न हो पाने की सूरत में हृदय के सेल्स मर जात हैं। वहीं, लीवर को 24 घंटे और किडनी को जांच प्रक्रिया के बाद अधिकतम 48 घंटों तक जीवित रखा जा सकता है।

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ब्रेन डेड क्या होता है?
मेडिकल साइंस के मुताबिक, जब व्यक्ति का दिमाग पूरी तरह से काम करना बंद कर देता है, तो ऐसी स्थिति को 'ब्रेन डेड' कहा जाता है। दिमाग के मृत घोषित होते ही व्यक्ति को मरा हुआ घोषित कर दिया जाता है। 'ब्रेन डेड' घोषित व्यक्ति को कानूनन मृत मान लिया जाता है। myUpchar से जुड़ीं डॉक्टर शहनाज जफर बताती हैं कि हालांकि 'ब्रेन डेड' की स्थिति में वेंटिलेटर पर रखने पर व्यक्ति के कुछ अंग (जैसे हृदय, किडनी और लीवर) थोड़े समय के लिए काम करते हैं। इस दौरान वेंटिलेटर मशीन हृदय को पंप करती है, जिससे बाकी अंगों को ऑक्सीजन मिल रहा होता है। लेकिन मेडिकली उस व्यक्ति को ब्रेन डेड घोषित किया जा चुका होता है। 

किसी व्यक्ति को कब 'ब्रेन डेड' घोषित किया जाता है?
डॉक्टरों के मुताबिक, अगर एक से दो मिनट तक ब्रेन को ऑक्सीजन नहीं मिलती तो उस स्थिति को हाइपोक्सिया (Hypoxia) कहा जाता है। इसमें खून पर्याप्त मात्रा में मस्तिष्क के ऊतकों (टिशूज) तक ऑक्सीजन नहीं पहुंचा पाता। ऐसे में ऊतकों में ऑक्सीजन की कमी होने लगती है और धीरे-धीरे मस्तिष्क काम करना बंद कर देता है। डॉक्टर शहनजा बताती हैं कि मेडिकली शरीर के बाकी अंगों की कोशिकाएं को रीजेनरेट किया जा सकता है, लेकिन ब्रेन सेल्स के साथ ऐसा नहीं हो सकता। इसीलिए व्यक्ति को मरा हुआ मान लिया जाता है।

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