एक नवीन (इनोवेटिव) रेडियोथेरेपी तकनीक की मदद से एडवांस सर्वाइकल कैंसर के मरीजों के इलाज में फायदा होने का दावा किया गया है। इस तकनीक को मेडिकल यूनिवर्सिट ऑफ विएना (एमयूवी) में विकसित किया गया है, जो कैंसर ट्यूमर को कंट्रोल करने का काम बहुत कम साइड इफेक्ट के साथ करती है। खबर के मुताबिक, एमयूवी के डिपार्टमेंट ऑफ रेडिएशन ओन्कोलॉजी के नेतृत्व में हुए एक अंतरराष्ट्रीय, मल्टी-सेंटर अध्ययन में इस तकनीक को सर्वाइकल कैंसर के मरीजों पर आजमाया गया था, जिसके काफी सकारात्मक परिणाम आए हैं। हाल में अध्ययन के परिणामों को यूरोपियन रेडिएशन ओन्कोलॉजी कॉन्फ्रेंस में प्रस्तुत किया गया था। माना जा रहा है कि स्टडी से जुड़ा डेटा सर्वाइकल कैंसर ट्रीटमेंट को लेकर भरोसेमंद जानकारियां दे सकता है।
(और पढ़ें - कैंसर के खतरे को कम करने में एक्सरसाइज हमारी इम्यूनिटी की कैसे मदद कर सकती है: जानें अध्ययन)
सर्वाइकल कैंसर जब लोकली एडवांस स्टेज (जब कैंसर प्रभावित अंग से बाहर फैल जाता है, लेकिन दूसरे अंगों में नहीं घुसता) में होता है तो ट्यूमर एक निश्चित आकार से ज्यादा बड़ा हो जाता है या कहें ऑर्गन के आकार की सीमा से बाहर निकला जाता है। तब रेडियोथेरेपी और कीमोथेरेपी आधारित कॉम्बिनेशनन ट्रीटमेंट का इस्तेमाल ट्यूमर का आकार कम करने के लिए किया जाता है। फिर बाकी बचे ट्यूमर का ब्रैकीथेरेपी के जरिये ट्रीटमेंट किया जाता है। यह एक रेडियोथेरेपी आधारित तकनीक है, जिसमें रेडिएशन सोर्स को स्थायी रूप से एक ऐप्लिकेटर की मदद से गर्भाशय में डाला जाता है। रिमोट कंप्यूटर कंट्रोल की मदद से ऐप्लिकेटर द्वारा रेडिएशन सोर्स को ठीक उसी जगह स्थापित किया जा सकता है, जहां से ट्यूमर को सीधे ट्रीटमेंट दिया जा सकता है।
(और पढ़ें - कैंसर मरीजों में इम्यूनोथेरेपी रेस्पॉन्स को बेहतर कर सकती है ब्लड प्रेशर की दवा प्रोप्रेनोलॉल: वैज्ञानिक)
नए अध्ययन में वैज्ञानिकों ने इस तकनीक को और बेहतर करने की दिशा में काम किया है। इसके लिए दुनिया के 24 विशेषज्ञता प्राप्त हेल्थकेयर सेंटर के 1,341 सर्वाइकल कैंसर मरीजों का दस सालों तक इलाज और निगरानी का काम किया गया। अध्ययन में शोधकर्ताओं ने मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग यानी एमआरआई का इस्तेमाल करने का फैसला किया। चूंकि एक्स-रे की तुलना में एमआरआई ट्यूमर की ज्यादा बेहतर तस्वीरें मुहैया कराता है, इसलिए इलाज को व्यक्तिगत रूप से ज्यादा लक्षित तरीके से अंजाम दिया जा सकता है। ऐप्लिकेटर के जरिये जिस ट्यूमर के लिए रेडिएशन सोर्स को ऑर्गन में स्थापित किया गया, उसकी बिल्कुल सटीक पहचान की सजा सकती है। इस तरह ट्यूमर को कम करने के लिए दवा का डोज बढ़ाया जा सकता है और नजदीकी ऑर्गन (जहां ट्यूमर नहीं है) में डोज कम हो सकता है।
(और पढ़ें - जटिल कैंसर ट्यूमरों के खिलाफ प्लेरिक्साफोर बढ़ा सकती है इम्यूनोथेरेपी की क्षमता, अध्ययन में मिले महत्वपूर्ण परिणाम)
परिणामों में यह नवीन तकनीक बेहतर परिणाम देने वाली साबित हुई है। वैज्ञानिकों की मानें तो अध्ययन में शामिल जिन मरीजों का इलाज इस इनोवेटिव तकनीक से किया गया था, उनमें से 92 प्रतिशत के सर्विक्स में प्राइमरी ट्यूमर इलाज के पांच साल बाद भी डिटेक्ट नहीं हुआ था। अच्छी बात यह है कि यह सुधार उन मरीजों में देखने को मिला, जो एडवांस ट्यूमर (स्टेज IIIबी) से जूझ रहे थे। इसके अलावा मरीजों के जीवित रहने की संभावना को भी इस तकनीक से नई उम्मीद मिली है। अध्ययनकर्ताओं ने परिणामों के हवाले से बताया है कि स्टडी में शामिल कुल 1,341 मरीजों में से 74 प्रतिशत में सर्वाइवल रेट ओवरऑल पांच साल तक बढ़ गया था।
इस कामयाबी पर अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता और विएना वर्किंग ग्रुप के सदस्य मैक्समिलियन स्कमिड ने कहा, 'हमने साबित किया है कि रेडियोथेरेपी के जरिये सर्वाइकल कैंसर का पर्सनलाइज्ड ट्रीटमेंट अप्रोच के तहत इलाज संभव है। यह कॉन्सेप्ट इतना प्रभावशाली है कि हमारे अध्ययनकार्य के आधार पर अब इसे दुनियाभर में अपनाया जाने वाला है।'