हांगकांग, नीदरलैंड और बेल्जियम के बाद अब अमेरिका में कोविड-19 के रीइन्फेक्शन का पहला मामला सामने आया है। खबर है कि अमेरिका के नवाडा राज्य की एक सरकारी प्रयोगशाला ने दावा किया है कि दुनिया में कोविड-19 रीइन्फेक्शन के इस चौथे मामले से जुड़े संक्रमित व्यक्ति के लक्षण हल्के नहीं, बल्कि गंभीर थे। इससे पहले हांगकांग और यूरोप के दो देशों नीदरलैंड और बेल्जियम में रीइन्फेक्शन के जो मामले सामने आए, उनमें संक्रमित लोगों में कोविड-19 लक्षण बहुत कम या न के बराबर थे। लेकिन अमेरिका में सामने आए मामले में मरीज के शरीर में पाया गया कोरोना वायरस न सिर्फ पिछली बार डिटेक्ट किए गए वायरस से अलग था, बल्कि उसमें इसके संक्रमण के गंभीर लक्षण भी दिखे हैं।
गौरतलब है कि दुनियाभर के वैज्ञानिक और मेडिकल विशेषज्ञ रीइन्फेक्शन के इन मामलों को लेकर हैरान नहीं हैं। वे पहले से इसकी आशंका जताते रहे हैं। उनके बीच बहस का मुद्दा यह रहा है कि कोरोना वायरस का रीइन्फेक्शन होने पर कोविड-19 मामूली रहती है या गंभीर रूप से सामने आती है। अभी तक यह कहा जाता रहा है कि रीइन्फेक्शन के मामलों में मरीजों के लक्षण हल्के रहते हैं। लेकिन नवाडा में आया चौथा केस इस थ्योरी को चुनौती देता है। इसके अलावा जानकार यह भी जानना चाहते हैं कि रीइन्फेक्शन के मामलों - खास तौर पर गंभीर वाले - में विषमता बनी रहेगी या आगे चलकर ऐसा होना सामान्य बात हो सकती है। फिलहाल इस बारे में स्थिति साफ नहीं है।
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बहरहाल, न्यूयॉर्क टाइम्स (एनवाईटी) की रिपोर्ट के मुताबिक, नवाडा में जिस व्यक्ति को दोबारा कोरोना संक्रमण हुआ है, उसकी आयु 25 वर्ष है। राज्य के स्वास्थ्य अधिकारियों ने बताया है कि यह युवक दूसरी बार बीमारी होने से 48 दिन पहले भी सार्स-सीओवी-2 की चपेट में आया था। उस समय उसके शरीर में पाया गया वायरस स्ट्रेन मौजूदा दूसरे संक्रमण के स्ट्रेन से अलग था। इसी आधार पर इस मामले को अमेरिका का पहला कोविड रीइन्फेक्शन केस बताया गया है। बता दें कि हांगकांग, बेल्जियम और नीदरलैंड में भी इसी तथ्य के आधार पर रीइन्फेक्शन के संक्रमितों की पुष्टि की गई थी।
एनवाईटी के मुताबिक, नवाडा के संक्रमित में 25 मार्च के आसपास कोविड-19 के लक्षण दिखे थे। 18 अप्रैल को वह कोरोना वायरस से संक्रमित पाया गया था। बाद में 27 अप्रैल तक वह रिकवर हो गया और उसका टेस्ट दो बार नेगेटिव आया। लेकिन बीती 28 मई को उसे अपनी तबीयत फिर खराब महसूस होने लगी। तीन दिन में उसमें फिर कोविड-19 के लक्षण दिखने लगे, जो इस बार गंभीर रूप से सामने आए थे। ऐसे में पांच जून को पीड़ित को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। बताया गया है कि उसे सांस लेने में तकलीफ हो रही थी और ऑक्सीजन की जरूरत पड़ रही थी। एनवाईटी ने बताया कि एक्स-रे में पीड़ित के फेफड़े में कुछ भी ठीक से नहीं दिख रहा था, जोकि शरीर में कोविड-19 के प्रभाव की एक विशिष्टता है।
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ऐसे में शोधकर्ताओं ने वायरस को जेनेटिकली सीक्वेंस में रखा और पाया कि वे पिछली बार से अलग थे। इसके बाद नवाडा की प्रयोगशाला ने परिणामों को समीक्षा के लिए जानी-मानी मेडिकल पत्रिका लांसेट इन्फेक्शियस डिसीजिज को भेज दिया। यहां बता दें कि पहली बार संक्रमित होने के बाद ठीक होने पर डॉक्टरों ने मरीज के शरीर में एंटीबॉडी होने का पता लगाने के लिए उसका टेस्ट नहीं किया था। अब उनका कहना है कि दूसरी बार संक्रमित होने पर उसमें रोग प्रतिरोधक पैदा हो गए होंगे। कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि दूसरे संक्रमण में गंभीर लक्षण सामने आने का मतलब है कि पहली बार इन्फेक्शन की चपेट में आने पर मरीज के शरीर में एंटीबॉडी पैदा नहीं हुए थे या उसके इम्यून रेस्पॉन्स को दूसरी बार आए वायरस ने ज्यादा मात्रा के साथ दबा दिया था। इस मामले के सामने आने के बाद विशेषज्ञों ने एक बार फिर जोर देकर कहा है कि कोरोना वायरस को नियंत्रण में करने के लिए बड़े लेवल पर टेस्टिंग करने की आवश्यकता है।
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